उलूक टाइम्स: दूध
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रविवार, 2 दिसंबर 2018

गिरोहबाज गिरोहबाजी सब बहुत अच्छे हैं हाँ कहीं भी नहीं होना कुछ अलग बात है

गिरोह बनाना
अलग बात है
गिरोह बनाते बनाते
एक गिरोह हो जाना

अलग बात है

पिट्सबर्ग़
के कुत्तों का
कुछ दिनों तक
खबरों में रहना

अलग बात है

पैंसेल्विनिया
के सियारों का
सब कुछ हो जाना
समय बदलने के साथ

अलग बात है

गिरोह में
शामिल होकर भी
कुछ अलग नजर आना

अलग बात है

गिरोहबाज
के साथ रहकर भी
गिरोहबाज का
नजर नहीं आना

अलग बात है

अलग बात है

किसी भी गिरोह में
शामिल ना होकर
जिंदा रह लेना

गिरोहों का जलवा होना
जलवों से कुछ अलग रह लेना

अलग बात है

अलग अलग दिखना
अलग अलग गिरोहों को
कितनी अलग बात है

इस गिरोह से
उस गिरोह तक
बिना दिखे
कहीं भी
नहीं दिखायी देना

सबसे अलग बात है

मलाई की
एक मोटी परत
दूध के ऊपर से दिखना

अलग बात है

दूध का
नीचे नीचे से
यूँ ही कहीं और
को खिसक लेना

अलग बात है

गिरोहबाजों
के आसपास ही
भीड़ का हर समय
नजर आना

अलग बात है

इस गिरोह से
उस गिरोह
किसी के
आने जाने को
नजर अन्दाज
कर ले जाना

अलग बात है

‘उलूक’
किसी ने
नहीं रोका है
किसी को

किसी भी
गिरोह के साथ
आने जाने के लिये

तेरी
मजबूरी
तू जाने

गिरोहबाजों
के बीच
रहकर भी
गिरोहबाजी
लिख ले जाना

अलग बात है

www.fotosearch.com

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

एक रंग से सम्मोहित होते रहने वाले इंद्रधनुष से हमेशा मुँह चुरायेंगे

अपने
सुर पर
लगाम लगा

अपनी
ढपली
बजाने से
अब
बाज
भी आ

बजा
तो रहा हूँ
मैं भी ढपली
और
गा भी
रहा हूँ कुछ
बेराग ही सही

सुनता
क्यों नहीं

अब सब
अपनी अपनी
बजाना शुरु
हो जायेंगे तो

समझता
क्यों नहीं
काँव काँव
करते कौए
हो जायेंगे

और
साफ सफेद
दूध से धुले हुऐ
कबूतर फिर
मजाक उड़ायेंगे

क्या करेगा
उस समय

अभी नहीं सोचेगा
समय भूल जायेगा
तुझे
और मुझे

फिर
हर खेत में
कबूतरों की
फूल मालाऐं
पहने हुऐ
रंग बिरंगे
पुतले
नजर आयेंगे

पीढ़ियों दर
पीढ़ियों के लिये

पुतलों पर
कमीशन
खा खा कर

कई पीढ़ियों
के लिये
अमर हो जायेंगे

कभी
सोचना
भी चाहिये

लाल कपड़ा
दिखा दिखा कर

लोग क्या
बैलों को
हमेशा
इसी तरह
भड़काऐंगे

इसी तरह
बिना सोचे
जमा होते
रहेंगी सोचें

बिना
सोचे समझे
किसी एक
रंग के पीछे

बिना रंग के
सफेद रंग
हर गंदगी को
ढक ढका कर

हर बार
की तरह

कोपलों को
फूल बनने
से पहले ही

कहीं पेड़ की
किसी डाल पर

एक बार
फिर से

बार बार
और
हर बार
की तरह ही

भटका कर
ले जायेंगे ।

चित्र साभार: www.allposters.com

शुक्रवार, 12 जून 2015

अक्ल वालों की नजर गाय पर होती है बेवकूफ खुद ही बैल हो जाते हैं

दूध से रोज
ही नहाते हैं
दूध के धुले
भी कहलाते हैं

ऐसे
शुद्ध लोगों पर
ना जाने कैसे
आप जैसे
अशुद्ध लोग


मिलावटी होने
का इलजाम
लगा ले जाते हैं

काम तो
होते ही हैं
करने के लिये
किये भी जाते हैं

अब कौन से काम
जरूरी होते हैं
कौन से गैर जरूरी
इस बात को
काम करने वाले
ही बता पाते हैं

कुछ काम
अपने नहीं
भी होते है
पर दुधारू गाय
की तरह
पहचाने जाते हैं

कुछ काम
अपने ही
काम होते हैं
और
सींग मारने वाले
बैल माने जाते हैं

बेवकूफ लोग
सींग पकड़े
लटके नजर आते हैं

होशियार
गाय के
दूध से
रोज नहाते है
इसीलिये दूध के
धुले भी कहलाते हैं

‘उलूक’
देखता रहता है
गाय और
गाय के दूध
की धार को

उसकी
सोच में
बैलों की
सींगों के घाव

रोज
ही बनते हैं
और
रोज ही
हरे हो जाते हैं ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

आज के दिन अगर तू नहीं मारा जाता तो शहर का साईरन कैसे टेस्ट हो पाता

सुबह सुबह आज भी
सुनाई दिया जो
रोज सुनाई देता था
आप सोच रहे होंगे
अलार्म जी नहीं
उसकी जरूरत
उनको पड़ती है
जिनको साउंड स्लीप
रोज आती है
किसी भी बात की
चिंता जिन्हे कभी
नहीं सताती है
अपने यहाँ नींंद
उस समय ही
खुल पाती है
जब एक आवाज
कुछ देर हल्की
फिर होते होते
तेज हो जाती है
दूध नहीं लाना है आज
तब महसूस होता है
क्यों दूध भी नल
में नहीं आता है
पानी मिला हुआ
ही तो होता है
पानी के नल में ही
क्यों नहीं दे
दिया जाता है
बाकी सब वही
होना था रोज रोज
का जैसा रोना था
बस ग्यारा बजे
सायरन मेरे शहर में
आज कुछ नया
सा जब बज उठा था
पहले लगा कहीं
आग लग गई होगी
फिर पुराना दिमाग
सोता हुआ सा
कुछ कुछ जगा था
आज की तारीख
पर ही तो कभी
गांंधी मारा गया था
देश के द्वारा
हर साल इसी दिन
मौन रख रख कर
उसका एहसान
उतारा गया था
कितनी किश्ते
बचीं हैं अभी तक
बताया नहीं गया था
क्या पता कुछ
ब्याज जोड़ कर
कुछ और वर्षों के
लिये सरकाया गया था
दो मिनट बाद
फिर बजा साईरन
मेरा शहर उठा उठा
एक साल के लिये
फिर से सो गया था
और मैं भी उठा
दूध की बाल्टी
पकड़ कर घर की
सीढ़ियांं उतरना
शुरु हो गया था । 

बुधवार, 8 अगस्त 2012

दूध मत दिखा दही जमा

सब 
सब देखते हैं
तू भी देख कर आ
किसी ने नहीं है तुझको कहीं रोका

थोड़ा बतायेगा
चलेगा
सब कुछ मत बता
हमको भी तो रहता ही होगा
कुछ पता

कोई नई छमिंंया
देख कर आया है अगर तो 
किस्सा सुना जा

काले बादल की तरह रोज 
कड़कड़ाता है यहाँ
कभी रिमझिम सी बारिश की फुहार भी
दिखा जा

कभी कभी 
कहीं पर थोड़ी मेहनत भी कर लिया कर 
कहाँ जा रही है दुनियाँ नये जमाने में 
देख भी कुछ लिया कर

देखते सुनते सभी आते हैं
कुछ ना कुछ इधर उधर बनाते हैं 
अपने सपने अपने ख्वाब भी मगर

एक तू है 
लकीर को पीटने वाला फकीर बन जाता है
जो जो देख कर आता है
यहाँ ला कर उलट पलट जाता है

अरे
कुछ अच्छा होता 
तो अखबार में नहीं आ रहा होता
साथ में माला पहने हुऎ तेरी 
फोटो भी दिखा रहा होता 

कब
सुधरेगा 
अब तो सुधर जा
लोगों से कुछ तो सीख 
कब ये सब सीखेगा

दूध देख कर आता है तो 
थोड़ा जामुन भी मिला लिया कर
दही बना कर चीनी के संग भी
कभी किसी को खिला दिया कर

'उलूक'
खाली खाली
दूध यहाँ मत लाया कर

लाता ही है
किसी मजबूरी में अगर
रख दिया कर

कम से कम
रोज तो
ना फैलाया कर । 

चित्र सभार: https://economictimes.indiatimes.com/