उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

आदमी बना रहा है एक आदमी को मिसाइल अपने ही किसी आदमी को करने के लिये नेस्तनाबूत

कलाम तू
आदमी से
पहले एक
मुसलमान था

तूने ही सुना है
मिसाइल बनाई
तू ही तो बस
इन्सानो के बीच
एक इन्सान था

तेरी मिसाइल
को भी ये
पता था
या नहीं था
किसे पता था

मिसाइल थी
नहीं जानती थी
आदमी को

ना हीं
पहचानती थी
आदमी और
मिसाइल
का अन्तर

पर तू मिसाइल
मैन हो गया
इतिहास बना कर
मिसाइल का
इस देश के लिये
खुद भी एक
इतिहास हो गया

देख बहुत
 अच्छा है
आज का
हर आदमी
एक मिसाइल
मैन है
और उसकी
मिसाइल भी
एक मैन है

आदमी
बना रहा है
एक आदमी
को मिसाइल
एक आदमी
को बरबाद
करने के लिये

ऐसी एक
मिसाइल
जिसका
ईंधन
धर्म है
क्षेत्र है
जाति है

शहर के
गली मोहल्ले
बाजार में
इफरात से
घूम रहें हैं
आज के सारे
मिसाईल मैन
और
बड़ी बात है
कि सारे
मिसाईल मैन
पढ़े लिखे हैं
सौ में से
निन्यानबें
पीएच डी
कर चुके हैं

मिसाईलें भी
बहुत ज्यादा
पढ़ चुकी हैं
दिमाग को
अपने खाली
कर चुकी हैं

वो आदमी
नहीं बस
एक जाति
क्षेत्र या धर्म
हो चुकी हैं

चल रही हैं
किसी के
बटन
दबाने से

सारी
मिसाईलें
आज
समाज
हो
चुकी हैं

किस की
मौत हो
रही है
इन
मिसाइलों से
बस ये
ही खबर
किसी को
नहीं हो
रही है

रुकिये
तो सही
कुछ दिन
जनाब
'उलूक'

आप को
किसलिये
इतनी
जल्दी
किसी के
मरने की
खबर
पाने
की हो
रही है

जब
मिसाइलें
ही अपनी
मिसाइलों
को
उनके ही
खून से
धो रही हैं ।

 चित्र साभार: www.canstockphoto.com

बुधवार, 31 अगस्त 2016

मरे घर के मरे लोगों की खबर भी होती है मरी मरी पढ़कर मत बहकाकर

अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
दिख रही थी
घिरी हुई
राष्ट्रीय
खबरों से
सुन्दरी का
ताज पहने हुऐ
मेरे ही घर की
मेरी ही
एक खबर

हंस रही थी
बहुत ही
बेशरम होकर
जैसे मुझे
देख कर
पूरा जोर
लगा कर
खिलखिलाकर

कहीं पीछे के
पन्ने के कोने में
छुप रही थी
बलात्कार की
एक खबर
इसी खबर
को सामने
से देख कर
घबराकर
शरमाकर

घर के लोग सभी
घुसे हुऐ थे घर में
अपने अपने
कमरों के अन्दर
हमेशा की तरह
आदतन
इरादातन
कुंडी बाहर से
बंद करवाकर

चहल पहल
रोज की तरह
थी आँगन में
खिलखिलाते
हुऐ खिल रहे
थे घरेलू फूल
खेल रहे थे
खेलने वाले
कबड्डी
जैसे खेलते
आ रहे थे
कई जमाने से
चड्डी चड़ाये हुए
पायजामों के
ऊपर से
जोर लगाकर
हैयशा हैयशा
चिल्ला चिल्ला कर

खबर के
बलात्कार
की खबर
वो भी जिसे
अपने ही घर
के आदमियों
ने अपने
हिसाब से
किया गया
हो कवर
को भी कौन सा
लेना देना था
किसी से घर पर

‘उलूक’
खबर की भी
होती हैं लाशें
कुछ नहीं
बताती हैं
घर की घर में
ही छोड़ जाती हैं
मरी हुई खबर
को देखकर
इतना तो
समझ ही
लिया कर ।

चित्र साभार: worldartsme.com

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

समाज की बहती हुई किसी धारा में क्यों नहीं बहता है बेकार की बातें फालतू में रोज यहाँ कहता है

हर किसी
को दिखाई
देती है

अपने
सामने वाले
इन्सान में


इशारों इशारों
में चल देने
वाली एक
आधुनिक कार

जिसके
गियर
स्टेरिंग
क्लच
और
ब्रेक
उसे
साफ साफ
नजर आते हैं


वो बात
अलग है

बारीक
इन्सान
जानते हैं
सारी
बारीकियाँ


किसके
हाथ से
बहुत दूर से
बिना चश्मा
लगाये भी
क्या क्या
चल पाता है


और

किस आदमी
से कौन सा
आदमी

रिमोट
से ही
घर बैठे
बैठे कैसे
चलाया
जाता है


समाज की
मुख्य धाराओं
में बह रहे
इन्सानो को

जरा सा भी
पसन्द नहीं
आते हैं

अपनी
मर्जी से
धाराओं के
किनारे खड़े
हुऐ दो चार
प्रतिशत
इन्सान

जो मौज में
मुस्कुराते हैं


जिस समाज
की धाराओं
के पोस्टर
गंगा के
दिखाई
देते हैं

भगीरथ के
जमाने के
होते हैं

मगर
आज के
और
अभी के
बताये
जाते हैं


और

तब से
अब तक
के सफर
में

जब
गंगा घूम
घाम कर
जा भी
चुकी
होती है

बस रह
गई होती हैं
धारायें
इन्सानी
सीवर की

जिसकी
खुश्बू को
भी सूँघने
से लोग
कतराते हैं


सीवर
नीचे से
निकलने
वाले मल
का होता
तब भी
अच्छा होता

उसमें बहने
से कुछ
तो मिलता
इन्सान को
ना सही

उसके
आस पास
की मिट्टी
को ही सही


पर
सीवर
और गंगा
नंगे इन्सानों
के ऊपर
के हिस्से
में बह रही
गंदगी का
होता है


नजर वाले
ही
देखने में
सोचने में
धोखा
खाते हैं


हर कोई
डुबकी
लगा रहा
होता है

मजबूरी
होती है
लगानी
पड़ती है

नहीं लगाने
वाले किनारे
फेंक दिये 

जाते हैं

करम में
भागीदारी
कर नहीं
तो मर

करमकोढ़ियों
को जरा
सा भी
पसन्द नहीं
आते हैं

वो इन्सान
जो धाराओं
से दूर
रहते हैं
किनारे
खड़े हुए 

होते हैं

इसीलिये
उनको
सुझाव
दिया
जाता है

समाज में
रहना
होता है
तो किसी
ना किसी
धारा में 

बहना
होता है


‘उलूक’
तुझे क्या
परेशानी है

तू तो
जन्मजात
नंगा है

छोटी सी
बात है

तेरी छोटी
सी ही तो
समझदानी है 


जहाँ सारे
कपड़े
पहने हुए
धारा में
तैरते नजर
आ रहे
होते हैं

हिम्मत
 करके
थोड़ा सा
सीवर में
कूदने में
क्या जाता है

क्यों नहीं
कुछ
थोड़ा सा
सामाजिक
तू भी
नहीं हो
जाता है ?

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

अच्छे लोग और उनके उनके लिये मिमियाते बकरे


बकरे कटने के लिये ही होते हों 
या 
बकरे हर समय हर जगह कटें ही 

जरूरी नहीं है 

हर कोई 
बकरे नहीं  काटता है 
कुछ लोग जानते हैं 
बहुत ही अच्छी तरह 

कुछ बकरे 
शहर में मिमियाने के लिये 
छोड़ने भी जरूरी होते हैं 
जरूरी नहीं होता है उन्हें 
कुछ खिलाना या पिलाना 

कुछ बकरे 
खुद अपनी हरी पत्तियाँ खाये हुए 
पेट भरे होते हैं 

बकरे
शहर 
में छोड़ना 
इस लिये भी जरूरी होता है 
ताकि सनद रहे 

और 
बकरे भी हमेशा 
खुद के लिये ही नहीं मिमियाते हैं 

बकरे
वो सब 
बताते हैं जो उन्हें खुद 
मालूम नहीं होता है 

बकरों को 
गलत फहमी होती है
अपने 
खुलेआम आजादी से घूमने की 
वजह की जानकारी होने की 

अच्छे लोग 
बकरों को कभी काटा नहीं करते हैं 

बकरे
हमेशा 
बताते हैं 
अच्छे लोगों की अच्छाइयाँ 
शहर की गलियों में मिमिया मिमिया कर 

देश को भी 
बहुत ज्यादा जरूरत होती है 
ऐसे अच्छे लोगों की 
जिनके पास 
बहुत सारे बकरे होते हैं 
सारे शहर में मिमिया लेने वाले 
बिना हरी घास की चिंता किये हुऐ 

‘उलूक’ 
कब से पेड़ पर बैठा बैठा 
गिनती भूलने लगा है 
अच्छे लोगों और उनके 
उनके लिये मिमियाते 
बकरों को गिनते गिनते । 

चित्र साभार: www.speakaboos.com

गुरुवार, 18 अगस्त 2016

मुर्दा पर्दे के पीछे सम्भाल कर जीना सामने वाले को पर्दे के सामने से समझाना होता है

मेहनताना
खेत खोदने का
अगर मिलता है

चुपचाप
जेब में
रख कर
आना होता है

किसने पूछना
होता है हिसाब 


घरवालों
के खुद ही
बंजर किये
खेत में
वैसे भी
कौन सा
विशिष्ठ
गुणवत्ता
के धान ने
उग कर
आना होता है

घास
खरपतवार
अपने आप
उग जाती है

रख रखाव
के झंझट
से भी
मुक्ति मिल
जाती है

छोड़ कर
खेत को

हिसाब किताब
की किताब को
साफ सुथरे
अक्षरों से
सजा कर
आना होता है

झाड़ झंकार
से बनने वाली
हरियाली को
भूल कर

इकतीस
मार्च तक
बिल्कुल
भी नहीं
खजबजाना
होता है

 सबसे
महत्वपूर्ण
जो होता है

वो खेत
छोड़ कर
और कहीं
जा कर

गैर जरूरी
कोई दीवार
सीढ़ी सड़क
का बनाना
होता है

पत्थर भी
उधर के लिये
खेत में से ही
उखाड़ कर
उठा कर
लाना होता है

चोखे
मेहनाताने
पर आयकर देकर

सम्मानित
नागरिक
हो जाने
का बिल्ला
सरकार
से लेते हुए

एक फोटो
अखबार में
छपवाने
के वास्ते

प्रसाद
और फूल
के साथ
दे कर
आना होता है

‘उलूक’
की बकवास
की भाषा में
कह लिया जाये

बिना किसी
लाग लपेट के

अगर सौ बातों
की एक बात

अपने अपने
बनाये गये
मुर्दों को

अपने अपने
पर्दों के पीछे
लपेट कर
सम्भालकर
आना होता है

फिर सामने
निकल कर
आपस में
मिलकर
सामने वालों को
मुस्कुराते हुऐ

जिंदगी क्या है

बहुत
प्यार से
समझाना
होता है ।


चित्र साभार: www.canstockphoto.com