तपती रेत है
बहुत तेज धूप है
हैरान नहीं होना है
रोज की परेशानी है
यहाँ की रेत की
बात यहीं तक रखनी है
किसी को नहीं बतानी है
बस हरी दूब लानी है
बहुत जगह उगी है
बहुत सारी उगी है
हरी हरी दूब है
पानी नहीं होने की
बात ही बेमानी है
बहुत तेज जोरों से
प्यास ही तो लगी है
धैर्य रख
ज्ञानी हैं विज्ञानी हैं
बस यहीं कहीं हैं
सच बात है
नहीं कोई कहानी है
करना कुछ नहीं है
सपने उगाने तो हैं
पर बोना कुछ नहीं हैं
बीज ही नहीं हैं
देखनी रेत है
दूब बस सोचनी है
कौन सा उगानी है
पानी नहीं है
पीना कुछ नहीं है
प्यास
बस एक सोच है
बातें की बहती हुई
नदी एक दिखानी है
एक साफ
चादर ही तो लानी है
गरम रेत
के ऊपर से बिछानी है
दूब हरी हरी
दूर से कहीं से भी
लाकर फैलानी है
बोनी नहीं है
उगानी नहीं है
बस एक दिन
की बात ही है
कुछ नहीं होना है
सूखनी है सुखानी है
गाय भैंस बकरी हैं
कम ज्यादा
कुछ भी मिले
बिकनी बिकानी है
कुछ खड़े होना है
कुछ देर सोना है
इसको उसको सबको
एक साथ एक बार
एक ही बात बतानी है
चोंच नीचे लानी है
पूँछ ऊपर उठानी है
‘उलूक’
कुछ भी कह देने की
तेरी आदत पुरानी है
भीड़ नहीं कहते हैं
बहुत सारे लोगों को
दूर तलक दूर दूर
कतारें खूबसूरत
सारी की सारी
बहुत सारी
बस आज
और आज
ऐसे ही
बनानी हैं।
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झंडों को
हो रही
इधर की
बैचेनी
कुछ कुछ
समझ में
आ रही है
शहर में
आज एक
नयी भीड़
एक नये
रंग के
एक नये
झंडे के नीचे
एक नया
झंडा गीत
गा रही है
पुराने
झंडों के
आशीर्वादों
से भर चुके
झंडा
बरदारों
को नींद से
लग रहा है
जैसे
नयी हवा
जगा रही है
कुछ उस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर
कुछ इस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर
कुछ बेरंगे
हो चुके रंगों
में नया रंग
भरने
जा रही है
एक नये रंग
के झंडे का
पुराने झंडों
में से ही
मिल जुल कर
पैदा हो जाने
की खबर
कल के
अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
सुबह सुबह
आने जा रही है
अवसरवादियों
की बाँछें
फिर से एक बार
और जोर लगा कर
मुस्कुरा रही हैं
इस झंडे को
उठाने वालों को
उस झंडे को
उठाने वालों से
मिलजुल कर
रहने का अभ्यास
नये झंडे तले
करा रही हैं
लाल गेरुआ
नीला पीला
हरा बैगनी
की बात
करने की
रुत जा रही है
मेला नजदीक है
सुनाई दे रहा है
झंडों की
नई दुकाने
सजाने के लिये
फड़ों
की लाईन
लगायी
जा रही है
झंडों के
ठेकेदारों की
नयी योजना से
बेपेंदे के लौटों
के लुढ़कने की
आदत सुना है
बदलने जा रही है
झंडे खुश हैं
झंडा बरदार
भी खुश हैं
धीरे धीरे
हौले हौले
टोपियाँ
इस सर से
उस सर
की ओर
खिसकायी
जा रही हैं
‘उलूक’
तू दो हजार
में उन्नीस
जोड़ या
इक्कीस घटा
तेरी
बकवास
करने की
आदत का
सरकार
पेटेंट कराने
फिर भी
नहीं जा
रही है।
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खोल
जरूरी है
साफ
सफेद झक्क
फटी हुई
रजाई को
ढकने के लिये
सारे
सफेद खोल
लटके हुऐ
करीने से
चमचमाती
धूप में
सूखते हुऐ
खुशनसीब
खुशफहमी
की रूईयाँ
उधड़ी
दरारों से
झाँकती हुई
घर के अन्दर
अंधेरे की
खिड़कियों को
समझाती हुई
परहेज करना
रोशनी से
फटी
रजाई ओढ़ते
आदमी का
बाहर
झाँकता चेहरा
साँस लेने के लिये
साफ हवा
भी जरूरी है
लेकिन खोल
ज्यादा जरूरी है
और
जरूरी है
उसका
धुला होना
साफ होना
झक्कास रहना
चमकना
धूप में
फिर स्त्री
किया जाना
फटी हुयी
रजाइयाँ
और
आदत
में शामिल
बाहर
को लटकते
रूई के फाहे
खोल
मजबूरी
नहीं होते हैं
किसी के लिये
एक
पाठ्यक्रम
हो जाते हैं
बिना
खोल के
उधड़ा
हुआ आदमी
बेकार है
बेमानी है
आइये
सजायें
ला ला कर
सफेद
झक्कास
खोलों को
अलग अलग
जगह के
अलग अलग
आदमी के
आदमी के
लिये ही
बनाने
और
दिखाने के
लिये इंद्रधनुष
सात रंगों
के नशे में
चूर के लिये
नशे की सोच
भी पाप है
और
प्रायश्चित
बस
एक ही है
साफ
सफेद
धुले हुऐ
धूप में
लाईन
लगा कर
सुखाये
गये खोल
फटी हुई
रजाई
कहीं भी
नजर नहीं
आनी चाहिये
'उलूक'
किसे
जरूरत है
आँखें
अच्छा देखें
कान
अच्छा सुनें
अच्छे
की आशायें
खोल में
समाहित
होती हैं
यही
फलसफा है
बकवास
करते चले
जाने का।
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बहुत
दिन हो गये
चुपचाप बैठे
चलिये
बैठे ठाले
के
जमा किये
का
कुछ बाहर
निकालें
कथा
करा लें
ठीक नहीं
होता है
देखा भाला
सुना समझा
सम्भाल लेना
पोटली में
कहीं अंदर
अपनी
भाषा में
फिर से
कुछ
जुगाली
कर डालें
आईये
बिना तीरों
की
कमान से
कुछ तीखे
तीर निकालें
मरना
मारना
किस को
करना है
कुछ
हल्ला गुल्ला
हल्ले गुल्ले
के लिये
कर डालें
दर्ज करें
उपस्थिति
समाज में
सामाजिक
होने का दावा
मुट्ठी बन्द कर
हवा में उछालें
बैठे बैठे
इधर उधर
बिखरे
कंकड़ पत्थर
जमा करें
कुछ फैलायें
कुछ उछालें
कुछ लाईन
में लगा कर
रास्ते दिखाने
भर के लिये
दीवारों में
चिपका कर
पोस्टर बाजी
ही कर डालें
आईये
चीटियों के
काटने के
निशानों की
कुछ फोटो
खिंचवालें
कुछ
फाईल में
दबा लें
कुछ
धो पोछ कर
अखबार
नवीसों
के घर जा
कर दे डालें
कुछ तो करें
कभी ही सही
थोड़ी देर
के लिये
ही सही
कहीं भी
एक लाईन
लगवालें
आईये
कुछ
कबूतरों को
कुछ
कौओं को
कुछ
चूहों को
कुछ
शेरों को
जंगल गीत
गाने
का न्योता
शहर के
पाँँच सितारा
में दे डालें
आईये
अन्धे बन कर
कुछ आइने
ही सही
आँख वालों
को बेच डालें
कुछ बदलें
कुछ बदलने
का आह्वाहन
बस कर डालें
कुछ
श्रँगार रस
विधवाओं के
श्रँगार करने
के लिये
रच डालें
आईये रूप बदलें
बहुरूपियों
को ललकारें
शब्दों की
निकाल कर
कुछ कटारें
सफेद
पृष्ठभूमि पर
काले खून से
होली
काली सफेद
ही सही मनालें
आईये
नासमझ
‘उलूक’ को
कुछ
पढ़ालें
कुछ
समझालें
ढोंगियों
के बीच
रहकर
लिलार
पढ़ने
की आदत
बहुत हो गया
अब तो
डाल ही डाले
‘आम’
को ‘राम’
और
‘राम’ को
‘आम’
समझाना
सीखे
जगह जगह
हर जगह
‘उल्लू’ के
मन्दिर
ढलवा ले
‘आमकथा’
लिखवाले
कथावाचकों
को तैयार करे
अपनी पूजा
खुद करने
की आदत
खुद भी डाले
और भी
जिस जिस
से करवा
सके
करवाले ।
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सारे
होशियार
होशियारों
में शामिल
होते जा रहे हैं
सारे
होशियार
होशियारों
के लिये
होशियारी
के साथ
होशियारी
के गीत
गा रहे हैं
बचे हुओं
को महसूस
करा रहे हैं
उनका हो
खो जाना
और सियार
हो जाना
सियार सारे
मिलकर भी
मातम नहीं
मना पा रहे हैं
बहुत
नाइन्साफी है
सोचना
ठीक नहीं है
इन्साफ
करने वाले
लगे हुऐ तो हैं
अपने तराजू के
पलड़े धुलवा कर
जमी हुयी धूल
मिट्टी उड़ा रहे हैं
बेवकूफों को
साफ समझ
में आने लगा है
अपना मन भर
बेवकूफ हो जाना
पता नहीं
फिर भी क्यों
चारों तरफ से
हो रहे होशियारों
के हल्ले गुल्ले में से
होशियारी निकाल
कर होशियार
हो लेने के
मंसूबे बना रहे हैं
होशियारों को भी
समझ में आ रही है
अपनी होशियारी
होशियारी
के महलों में
पहुँच लेने के
होशियार पुल
बना रहे हैं
घर की कहानी
घर में समझ
रहे हैं अपने अपने
सारे
बेवकूफ
दूरदर्शन में
चल रही
होशियारी की
बहसों को
सुन सुन कर
होशियारी
पका पका
कर खा रहे हैं
होशियारी
गली मुहल्ले
गाँव शहर में
फैलती जा रही है
बेवकूफों के
जीने मरने के
लाले पड़ने के
दिन आ रहे हैं
‘उलूक’ बैचेन है
गणित देख कर
होशियार की
होशियारी का
उसे
बेवकूफों के
होशियारों में
शामिल होकर
उजड़ने के दिन
बहुत नजदीक
नजर आ रहे हैं ।
चित्र साभार: zenzmurfy.deviantart.com