कोई कुछ देखता है कोई कुछ देखता है
कोई कुछ भी कभी यहाँ नहीं देखता है।
तू जहर देखता है वो शहर देखता है
बैचेनी तुम्हारी कोई बेखबर देखता है।
कोई आता इधर है और उधर देखता है
कहता कुछ भी नहीं है अगर देखता है।
चमचा धीरे से आकर एक नजर देखता है
बताने को उसको एक खबर देखता है।
भटकना हो किस्मत तो कुवां देखता है
बंदा मासूम सा एक बस दुवा देखता है।
अपने सपनो को जाता वहाँ देखता है
उसके कदमों की आहट यहां देखता है।
सबको मालूम है कि वो क्या देखता है
हर कोई यहाँ नहीं एक खुदा देखता है।
कोई कुछ भी कभी यहाँ नहीं देखता है।
तू जहर देखता है वो शहर देखता है
बैचेनी तुम्हारी कोई बेखबर देखता है।
कोई आता इधर है और उधर देखता है
कहता कुछ भी नहीं है अगर देखता है।
चमचा धीरे से आकर एक नजर देखता है
बताने को उसको एक खबर देखता है।
भटकना हो किस्मत तो कुवां देखता है
बंदा मासूम सा एक बस दुवा देखता है।
अपने सपनो को जाता वहाँ देखता है
उसके कदमों की आहट यहां देखता है।
सबको मालूम है कि वो क्या देखता है
हर कोई यहाँ नहीं एक खुदा देखता है।
वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गजल!
तू जहर देखता है....वो शहर देखता है,,,,,,,,,,,,,,,,आभार..............
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत बढ़िया रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।