चेहरे दर चेहरे
कुछ
लाल होते हैं
लाल होते हैं
कुछ होते हैं
हरे
हरे
कुछ
बदलते हैं
बदलते हैं
मौसम के साथ
बारिश में
होते हैं
गीले
गीले
धूप में हो
जाते हैं
पीले
पीले
चेहरे चेहरे
देखते हैं
छिपते हुवे
चेहरे
चेहरे
पिटते हुवे
चेहरे
चेहरे
चेहरों
को कोई
को कोई
फर्क पढ़ना
मुझे नजर
नहीं आता है
मेरा चेहरा
वैसे भी
चेहरों को
नहीं भाता है
चेहरा शीशा
हो जाता है
चेहरा
चेहरे को
चेहरे को
देखता तो है
चेहरे में चेहरा
दिखाई दे जाता है
चेहरे
को चेहरा
को चेहरा
नजर नहीं आता है
चेहरा अपना
चेहरा देख कर
ही
ही
मुस्कुराता है
खुश हो जाता है
सबके
अपने अपने
चेहरे हो जाते हैं
चेहरे
किसी के
चेहरे को
किसी के
चेहरे को
देखना कहाँ
चाहते हैं
चेहरे बदल
रहे हैं रंग
किसी
को दिखाई
नहीं देते हैं
चेहरे
चेहरे को
चेहरे को
देखते जा रहे हैं
चेहरे अपनी
घुटन मिटा रहे हैं
चेहरे
चेहरे को
चेहरे को
नहीं देख पा रहे हैं
चेहरे पकड़े
नहीं जा रहे हैं
चेहरे चेहरे
को
भुना रहे हैं
भुना रहे हैं
चेहरे दर चेहरे
कुछ
लाल होते हैं
लाल होते हैं
कुछ होते हैं
हरे
हरे
कुछ
बदलते हैं
बदलते हैं
मौसम के साथ
बारिश में
होते हैं गीले
धूप में हो
जाते हैं पीले।
इक चेहरा है चेहरई, चारुहासिनी चाह ।
जवाब देंहटाएंचंचलता लख चक्रधर, भरते रहते आह ।
भरते रहते आह, गुलाबी से हो जाते ।
करते हैं आगाह, गुणी नारद को भाते ।
चेहरा होय सफ़ेद, उठे लेकिन जब पर्दा ।
कर देता है मित्र, चेहरई चेहरा गर्दा ।
प्रस्तुती मस्त |
जवाब देंहटाएंचर्चामंच है व्यस्त |
आप अभ्यस्त ||
आइये
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
आओ हम सब पहन ले आईने ....
जवाब देंहटाएंसब देखेंगे अपना ही चेहरा...
सब को सब हसीं नजर आएंगे यहाँ.... (गुलज़ार)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन,हमेशा की तरह।
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