इस पर लिखा उस पर लिखा
ताज्जुब की बात
तुझ पर कभी कुछ नहीं लिखा
तुझ पर कभी कुछ नहीं लिखा
कोई बात नहीं
आज जो कुछ देख कर आया हूँ
उसे अभी तक
यहाँ लिख कर नहीं बताया हूँ
ऎसा करता हूँ
आज कुछ भी नहीं बताता हूँ
सीधे सीधे
तुझ पर ही कुछ
लिखना शुरू हो जाता हूँ
लिखना शुरू हो जाता हूँ
इस पर या उस पर लिखा
वैसे भी किसी को
समझ में कब कहाँ आता है
काम सब
अपनी जगह पर होता चला जाता है
अपनी जगह पर होता चला जाता है
इतने बडे़ देश में बडे़ बडे़ लोग
कुछ ना कुछ करते जा रहे हैं
अन्ना जैसे लोग
भीड़ इकट्ठा कर गाना सुना रहे हैं
अपने कनिस्तर को
आज मैं नहीं बजा रहा हूँ
छोड़
चल आज तुझ पर ही
बस कुछ कहने जा रहा हूँ
बस कुछ कहने जा रहा हूँ
अब ना कहना
तुम्हें भूलता ही जा रहा हूँ ।
तुम्हें भूलता ही जा रहा हूँ ।
सन्डे पर क्यूँ न लिखा, उसके कारण तीन |
जवाब देंहटाएंहफ्ते भर की साड़िया, कुरता पैंट मशीन |
कुरता पैंट मशीन, इन्हें प्रेस करना पड़ता |
ख़ाक मिले अवकाश, किचेन का काम अखरता |
जाती वो बाजार, बैठ मैं देता अंडे |
हाय हाय यह दिवस, बनाया क्यूँ रे सन्डे ||
आपकी रचना सोना उस पर रविकर जी की टिप्पणी सुहागा
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना | बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट:- वो औरत
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक कुछ कहना है पर है ।।
जवाब देंहटाएंसंड़े का फंड़ा अच्छा लगा.. अति सुन्दर...
जवाब देंहटाएंलिखता जाता हूँ,पर आह सबकी अपनी समझ है...मैं कहकर भी अनकहा रह जाता हूँ
जवाब देंहटाएंकर डालो घर का काम,आज दिन है सन्डे
जवाब देंहटाएंछुट्टी मनालो आज,कल आ जायेगा मन्डे,,,,,,
RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
गाफिल जी अति व्यस्त हैं, हमको गए बताय ।
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना देख के, चर्चा मंच ले आय ।
कुछ न करने की भी आदत होनी चाहिए .ऐसे काम जिनमें आपकी कोई दिलचस्पी न हो .तब आप महान बन सकते हैं .किसी दिन कुछ न लिखना भी ऐसा ही एक काम है .सन्डे हो या मंडे ,बने रहो मुस्टंडे ,,पण्डे ,क्लिअर कर लो फंडे.,, कभी न खाना अंडे .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
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सोमवार, 8 अक्तूबर 2012
अथ वागीश उवाच :ये कांग्रेसी हरकारे
उस पर लिखा..
जवाब देंहटाएंमगर उसका ज़िक्र नहीं.....
बहुत बढ़िया..
:-)
सादर
अनु
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 25 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना हमेशा की तरह सटीक और सार्थक आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमेरी भूरि-भूरि प्रशंसा वाला एक उपन्यास लिखो और साहित्याकाश मेरे साथ ही अपना नाम भी अमर कर दो.
जवाब देंहटाएंसत्ताधारियों की स्तुति करते हुए एक उपन्यास लिखो और फिर ऊंची कुर्सी पर फ़ेविकोल लगा कर उस पर चिपक जाओ.
जवाब देंहटाएं''...
जवाब देंहटाएंइतने बडे़ देश में बडे़ बडे़ लोग
कुछ ना कुछ करते जा रहे हैं
अन्ना जैसे लोग
भीड़ इकट्ठा कर गाना सुना रहे हैं
...''
ये पढकर पता नहीं क्यूँ मुझे अफसोस हुआ। खैर।
प्रकाश जी आपको अफसोस हुआ और आप ने व्यक्त कर दिया | व्यंग में यही कमी है पूर्णता में पढ़ें तो अलग अर्थ होता है और अलग कर के पढ़ लें तो अफसोस होता है | खैर |
हटाएंछोड़
जवाब देंहटाएंचल आज तुझ पर ही
बस कुछ कहने जा रहा हूँ
अब ना कहना
तुम्हें भूलता ही जा रहा हूँ ।
अच्छा किया आपने, किसी की शिकायत दूर हो !
वाह! बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह लाजवाब।