सुना है
बहुत कुछ
बहुत तेजी से
बदल रहा है
पुराना
कुछ भी
कहीं भी
नहीं चल
रहा है
जितना भी है
जो कुछ भी है
सभी कुछ
खुद बा खुद
नया नया
निकल रहा है
लिखना नहीं
सीख पाया
है बेवकूफ
तब से अब तक
लिखते लिखते
अब तक
लिखता
चल रहा है
बेशरम है
फिर से
लिख रहा है
कब तक
लिखेगा
क्या क्या
लिखेगा
कितना
लिखेगा
कुछ भी
पता नहीं
चल रहा है
पुराना
लिखा सब
डायरी से
बिखर कर
इधर
और उधर
गिरता हुआ
सब मिल
रहा है
गली
मोहल्ले
शहर में
बदनाम
चल रहा है
बहुत दूर
कहीं बहुत
बड़ा मगर
नाम चल
रहा है
सीखना
जरूरी
हो रहा है
लिख कर
बहुत दूर
भेज देना
गली
में लिखा
गली में
शहर
में लिखा
शहर में
बिना मौत
बस कुछ
यूँ ही
मर रहा है
लत लग
चुकी है
‘उलूक’ को
बाल की खाल
निकालने की
बाल मिल
रहा है मगर
खाल
पहले से
खुद की
खुद ही
निकाला हुआ
मिल रहा है ।
चित्र साभार: Inspirations for Living - blogger
कुछ
कहने का
कुछ
लिखने का
कुछ
दिखने का
मन
किसका
नहीं होता है
सब
चाहते हैं
अपनी बात
को कहना
सब
चाहते हैं
अपनी
बात को
कह कर
प्रसिद्धि
के शिखर
तक पहुँच
कर उसे छूना
लिखना
सब
को आता है
कहना
सब
को आता है
लिखने
के लिये
हर कोई
आता है
अपनी बात
हर कोई
चाहता है
शुरु करने
से पहले ही
सब कुछ सारा
बस
मन की बात
जैसा कुछ
हो जाता है
ऐसा हो जाना
कुछ अजूबा
नहीं होता है
नंगा
हो जाना
हर किसी को
आसानी
से कहाँ
आ पाता है
सालों
निकल
जाते हैं
कई सालों
के बाद
जाकर
कहीं से
कोई निकल
कर सामने
आता है
कविता
किस्सागोई
भाषा की
सीमाओं
को बांधना
भाषाविधों
को आता है
कौन रोक
सकता है
पागलों को
उनको
नियमों
में बाँधना
किसी को
कहाँ
आता है
पागल
होते हैं
ज्यादातर
कहने वाले
मौका
किसको
कितना
मिलता है
किस
पागल को
कौन पागल
लाईन में
आगे ले
जाता है
‘उलूक’
लाईन मत
गिना कर
पागल मत
गिना कर
बस हिंदी
देखा कर
विद्वान
देख कर
लाईन में
लगा
ले जाना
बातों की
बात में
हमेशा ही
देखा
जाता है ।
चित्र साभार:
लोग
खुद के
बारे में
खुद को
बता रहे
हों कहीं
जोर जोर से
बोलकर
लिखकर
बड़े बड़े
वाक्यों में
बड़े से
श्याम पट पर
सफेद चौक
की बहुत लम्बी
लम्बी सीकों से
लोग
देख रहे हों
बड़े लोगों के
बड़े बड़े
लिखे हुऐ को
श्याम पट
की लम्बाई
चौड़ाई को
चौक की
सफेदी के
उजलेपन को भी
बड़ी बात
होती है
बड़ा
हो जाना
इतना बड़ा
हो जाना
समझ में
ना आना
समझ
में भी
आता है
आना
भी चाहिये
जरूरी है
कुछ लोग
लिखवा
रहे हों
अपना बड़ा
हो जाना
अपने ही
लोगों से
खुद के
बारे में
खुद के
बड़े बड़े
किये धरे
के बारे में
लोगों को
समझाने
के लिये
अपना
बड़ा बड़ा
किया धरा
शब्द वाक्य
लोगों के भी हों
और खुद के भी
समझ में आते हों
लोगों को भी
और खुद को भी
आइने
के सामने
खड़े होकर
खुद का बिम्ब
नजर आता हो
खुद को और
साथ में खड़े
लोगों को
एक जैसा
साफ सुथरा
करीने से
सजाई गयी
छवि जैसा
दिखना
भी चाहिये
ये भी जरूरी है
इन लोग
और
कुछ लोग
से इतर
सामने
से आता
एक आदमी
समझाता हो
किसी
आदमी को
जो वो
समझता है
उस आदमी
के बारे में
समझने वाले के
अन्दर चल रहा हो
पूरा चलचित्र
उसका अपना
उधड़ा हुआ हो
उसको खुद
पानी करता
हुआ हो
बहुत बड़ी
मजबूरी है
कुछ भी हो
तुझे क्या
करना है
‘उलूक’
दूर पेड़ पर
बैठ कर
रात भर
जुगाली कर
शब्दों को
निगल
निगल कर
दिन भर
सफेद पन्ने
खाली छोड़ना
भी मीनोपोज
की निशानी होता है
तेरा इसे समझना
सबसे ज्यादा
जरूरी है
बहुत जरूरी है ।
चित्र साभार: People Clipart
पुराने
जमाने
की सोच
से निकल
बहुत
हो गया
थोड़ा सा
कुछ सम्भल
खाली सफेद
पन्नों को
पलटना छोड़
हवा में
ऊँचा उछल
कर कुछ गोड़
जमीन पर
जो जो
होना था
वो कबका
हो चुका
बहुत हो चुका
चुक गये
करने वाले
करते करते
दिखा कर
खाया पिया
रूखा सूखा
ऊपर की
ओर अब
नजर कर
ऊपर की
ओर देख
नीचे जमीन
के अन्दर
बहुत कुछ
होना है बाकि
ऊपर के बाद
समय मिले
थोड़ा कुछ
तो नीचे
भी फेंक
किसी ने नहीं
देखना है
किसी ने नहीं
सुनना है
किसी ने नहीं
बताना है
अपना
माहौल
खुद अपने
आप ही
बनाना है
सामने की
आँखों से
देखना छोड़
सिर के पीछे
दो चार
अपने लिये
नयी आँखें फोड़
देख खुद को
खुद के लिये
खुद ही
सुना
जमाने को
ऊँचाइयाँ
अपने अन्दर
के बहुत उँचे
सफेद
संगमरमरी
बुत की
आज मिली
खबर का
‘उलूक’
कर कुछ
खयाल
जेब में
रखना छोड़
दे आज से
अपना रुमाल
सौ फीट
का डंडा
रख साथ में
और कर
कमाल
लहरा सोच
को हवा में
कहीं दूर
बहुत दूर
बहुत ऊँचे
खींचता
चल डोर
दूर की
सोच की
बैठ कर
उसी डन्डे
के नीचे
अपनी
आँखें मींचे ।
चित्र साभार: http://www.nationalflag.co.za
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समय गवाह है
पर गवाही
उसकी किसी
काम की
नहीं होती है
समय साक्ष्य
नहीं हो पाता है
बिना बैटरी की
रुकी हुयी
पुरानी पड़
चुकी घड़ियों
की सूईयों का
अब इसे
शरम कहो
या बेशर्मी
कबूलने में
समय के साथ
सीखे हुऐ झूठ
को सच्चाई
के साथ
क्या किया जाये
सर फोड़ा जाये
या फूटे हुऐ
समय के टुकड़े
एकत्रित कर
दिखाने की
कोशिश
की जाये
समझाने को
खुद को
गलती उसकी
जिसने
सिखाया गलत
समय के
हिसाब से
वो सारा
गलत
हस्ताँतरित
भी हुआ
अगली पीढ़ी
के लिये
पीढ़ियाँ आगे
बढ़ती ही हैं
जंजीरे समय
बाँधता है
ज्यादातर
खोल लेते हैं
दिखाई देती है
उनकी
उँचाइयाँ
जहाँ गाँधी
नहीं होता है
गाँधी होना
गाली होता है
बहुत छोटी सी
कोई किसी को
छोटी गालियाँ
नहीं देता है
ऊपर पहुँचने
के लिये बहुत
जरूरी होता है
समय के
साथ चलना
समय के साथ
समय को सीखना
समय के साथ
समय को
पढ़ लेना
और समझ कर
समय को
पढ़ा ले जाना
गुरु मत बनो
‘उलूक’
समय का
अपनी
घड़ी सुधारो
आगे बड़ो
या पीछे लौट लो
किसी को
कोई फर्क
नहीं पड़ता है
समय समय
की कद्र
करने वालों
का साथ देता है
जमीन पर
चलने की
आदत ठीक है
सोच
ठीक नहीं है
जमाना सलाम
उसे ही ठोकता है
जिसकी ना
जमीन होती है
और जिसे
जमीन से
कोई मतलब
भी नहीं होता है ।
चित्र साभार: Can Stock Photo