कविता करते करते निकल पड़ा
एक कवि हिमालयों से
हिमालय की कविताओं को बोता हुआ
हिमालयी पहाड़ों केबीच से
छलछल करती नदियों के साथ
लम्बे सफर में दूर मैदानों को
साथ चले
उसके विशाल देवदार के जंगल उनकी हरियाली
उसके विशाल देवदार के जंगल उनकी हरियाली
साथ चले
उसके गाँव के टेढ़े मेढे रास्ते
उसके गाँव के टेढ़े मेढे रास्ते
साथ चली
उसके गोबर मिट्टी से सनी
उसके गोबर मिट्टी से सनी
गाय के गोठ की दीवारों की खुश्बूएं
और
वो सब कुछ
वो सब कुछ
जिसे समाहित कर लिया था उसने
अपनी कविताओं में
ब्रह्म मुहूर्त की किरणों के साथ
चाँदी होते होते
गोधूली पर सोने में बदलते
हिमालयी बर्फ के रंग की तरह
आज सारी कविताएं
या तो बेल हो कर चढ़ चुकी हैं आकाश
या बन चुकी हैं छायादार वृक्ष
बस वो सब कहीं नहीं बचा
जो कुछ भी रच दिया था उसने
अपनी कविताओं में
आज भी लिखा जा रहा है समय
पर कोई कैसे लिखे तेरी तरह का जादू
वीरानी देख रहा समय वीरानी ही लिखेगा
वीरानी को दीवानगी ओढ़ा कर लिखा हुआ भी दिखेगा
पर उसमें तेरे लिखे का इन्द्रधनुष कैसे दिखेगा
जब सोख लिये हों सारे रंग आदमी की भूख ने
‘सुमित्रानन्दन पन्त’
हिमालय में अब सफेद बर्फ
दूर से भी नजर नहीं आती है
काले पड़ चुके पहाड़ों को शायद
रात भर अब नींद नहीं आती है
पुण्यतिथी पर नमन और श्रद्धाँजलि
अमर कविताओं के रचयिता को ‘उलूक’ की ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२६ -०६-२०२०) को 'उलझन किशोरावस्था की' (चर्चा अंक-३७४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
कविता
जवाब देंहटाएंकरते करते
निकल पड़ा
एक कवि
हिमालयों से
हिमालय
की
कविताओं को
बोता हुआ
वाह!!!
उत्कृष्ट सृजन
श्रद्धाँजलि
अमर कविताओं
के
रचयिता को
‘उलूक’ की ।
अनूठा एवं उम्दा...
आदरणीय सुशील जी , चर्चा मंच पर बहुत दिन पहले ये रचना पढ़ी थी पर लिख ना सकी क्योकि इन दिनों बहुत व्यस्तताएं हावी हैं पर कोई रचना ना पढूं एसा कभी नहीं होता |
जवाब देंहटाएं|वैसे भी हर अच्छी रचना मेरी स्मृतियों में बनी रहती है | इस पर ना लिखती तो मुझे बहुत खेद रहता | प्रकृति के सुकुमार कवि के लिए ये सादा सी रचना असाधारण भावों से सजी है | हर शब्द मानों दिल की गहराइयों में उतरता चला जाता है |सचमुच शब्दों के इस जादूगर सरीखा कौन प्रकृति को परिभाषित करेगा ?
कौन है जो इस कुदरत के स्नेहिल सानिध्य हेतु सर्वस्व लुटाने की कुव्वत रखता है ? कौन है जो लिखदे --छोड़ द्रुमों की मृदु छाया//तोड़ प्रकृति से भी माया //बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?////
| ये पंक्तियाँ मुझे भी सुधा जी की तरह बहुत विशेष लगी --
कविता करते करते //निकल पड़ा //एक कवि //हिमालयों से//हिमालयकी //कविताओं को //बोता हुआ/////
और सच है उनकी कवितायेँ आज साहित्य प्रेमियों के लिए एक सघन वृक्ष -सी ही तो हैं | साहित्य और काव्य माधुरी के पुरोधा को शत- शत नमन !और आपको विशेष आभार और शुभकामनाएं इस भावपूर्ण अद्भुत काव्य सृजन के लिए | सादर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 17 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंकविवर सुमित्रा नन्दन पंत जी की रचनात्मकता को समर्पित बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंकविता करते करते निकल पड़ा
जवाब देंहटाएंएक कवि हिमालयों से
हिमालय की कविताओं को बोता हुआ
हिमालयी पहाड़ों केबीच से
छलछल करती नदियों के साथ
लम्बे सफर में दूर मैदानों को
.
बेहतरीन पंक्तियाँ 🙏
बेहद खूबसूरत
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