उलूक टाइम्स: पुण्यतिथी
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गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

हिमालय में अब सफेद बर्फ दूर से भी नजर नहीं आती है काले पड़ चुके पहाड़ों को शायद रात भर अब नींद नहीं आती है


कविता करते करते निकल पड़ा 
एक कवि  हिमालयों से
हिमालय की कविताओं को बोता हुआ 

हिमालयी पहाड़ों केबीच से 
छलछल करती नदियों के साथ 
लम्बे सफर में दूर मैदानों को 

साथ चले
उसके विशाल देवदार के जंगल उनकी हरियाली 
साथ चले
उसके गाँव के टेढ़े मेढे‌ रास्ते 
साथ चली
उसके गोबर मिट्टी से सनी 
गाय के गोठ की दीवारों की खुश्बूएं 
और
वो सब कुछ 
जिसे समाहित कर लिया था उसने 
अपनी कविताओं में 

ब्रह्म मुहूर्त की किरणों के साथ 
चाँदी होते होते 
गोधूली पर सोने में बदलते 
हिमालयी बर्फ के रंग की तरह 
आज सारी कविताएं 
या तो बेल हो कर चढ़ चुकी हैं आकाश 
या बन चुकी हैं छायादार वृक्ष 
बस वो सब कहीं नहीं बचा 
जो कुछ भी रच दिया था उसने 
अपनी कविताओं में 

आज भी लिखा जा रहा है समय 
पर कोई कैसे लिखे तेरी तरह का जादू 
वीरानी देख रहा समय वीरानी ही लिखेगा 
वीरानी को दीवानगी ओढ़ा कर लिखा हुआ भी दिखेगा 
पर उसमें तेरे लिखे का इन्द्रधनुष कैसे दिखेगा 
जब सोख लिये हों सारे रंग आदमी की भूख ने 

‘सुमित्रानन्दन पन्त’ 
हिमालय में अब सफेद बर्फ 
दूर से भी नजर नहीं आती है 
काले पड़ चुके पहाड़ों को शायद 
रात भर अब नींद नहीं आती है 

पुण्यतिथी पर नमन और श्रद्धाँजलि 
अमर कविताओं के रचयिता को  ‘उलूक’ की । 

शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

बापू इस पुण्यतिथी पर आप ही कुछ नया कर लीजिये

बापू अब तो
कुछ नया
कर लीजिये
बहुत पुरानी
हो गई
धोती आपकी
नई डिजायन
कर करवा कर
डिजायनर
कर लीजिये
इतना गरीब
भी नहीं रहा
अब देश कि
आप धोती से
ही बदन
छुपाते रहें
आठ दस लाख
की सिल्क धोती
कम से  कम
पहन कर
जनता के
सामने आने
की अपनी
आदत कर लीजिये
जन्मदिन के तोहफे
जन्मदिन पर फिर
सुझा देंगे आपको
अभी बहुत दिन हैं
पुण्यतिथी पर
पहनियेगा नहीं भी
कोई बात नहीं
खरीद कर
बिकवाने की बात
ही कर लीजिये
गुजरात की या
हिंदुस्तान की सफेद
धोती हो ये भी
जरूरी नहीं
कौन पूछ रहा है
ग्लोबलाइजेशन
का फंडा सिखा
कर लंदन से ही
आयात कर लीजिये
हमने तो ना
आप को देखा बापू
ना ही आपकी
धोती को कभी
कहीं नजर तो
आइये कभी
धोती हाथ में
लेकर ही सही
आमना सामना
तो कर लीजिये
आदत हो गई है
‘उलूक’ को अब
झूठ के साथ
सफल प्रयोग
कर लेने की
कुछ हमें कर
लेने दीजिये नया
नये जमाने की
नयी चोरियाँ
आप बस फोटो में
बने रहने की
अपनी आदत अब
पक्की कर लीजिये ।

चित्र साभार: shreyansjain100.blogspot.com

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

चार सौवाँ पन्ना : समर्पित तुझे तीसरी पुण्यतिथि पर गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’



जल जंगल जमीन
जानवर और
जनसरोकार
इन सबको
आत्मसात किया
हुआ एक जनकवि
रंगकर्मी गायक
और साहित्यकार
हिमालय सा
विशाल व्यक्तित्व
उत्कृष्ट संप्रेषण कला
कोमल हृदय
जैसे सरस्वती
का हो अवतार
आज तेरी तीसरी
पुण्यतिथि पर ये
घृष्टता करने की
कोशिश कर रहा हूँ
गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’
आज का ये
पन्ना तुझ को
दिल से समर्पित
कर रहा हूँ
पता है मुझे
सूरज को
एक दिया
दिखाने की
बस कोशिश
कर रहा हूँ
तू तो है एक
विशाल सागर
जनमानस में
हमेशा ही रहेगा
जीते जी तुझसे
नहीं हुई मुलाकात
कभी इसका बहुत
अफसोस रहेगा
तेरे किस आयाम
की बात की जाये
पता नहीं कहाँ
कौन सी चीज
मुझ से छूट जाये
तूने अपने गीतों से
जनमानस को
हमेशा ही सहलाया
भूत बताया और
वर्तमान बताया
तेरे ही जनगीतों
ने केदारनाथ
हादसे का भविष्य 
साफ साफ बताया
तेरी कविताओं ने
जन जन में आशा
का दीप जलाया
तेरे ही शब्दों में (अनुवाद)
"क्यों उदासी
ले कर आता है
क्यों मुहँ तू
अपना झुकाता है
किसलिये घुटने
जमीन पर टिकाता है
ऎसा हमेशा ही
नहीं हो जाता है
जल्दी ही देखेगा
सामने अपने
अच्छा दिन भी
जरूर आता है"
सरकारी और
सरकारी कुनबा
तुझे कभी सम्मानित
नहीं कर पाया
पर उसे कहाँ
जरूरत थी
इस सम्मान की
जिसने जीवन व्यापन
के लिये रिक्शा
तक हो चलाया
लगी लगाई नौकरी
को तक जन
आन्दोलनों की खातिर
लात मारने में
एक मिनट का समय
भी नहीं लगाया
ऎसा कौन सा
आन्दोलन था
जो तेरे गीतों के
बोलों के बिना
ही हो चल पाया
जन जन के
मानस में जितना
स्थान तूने
अपना बनाया
उसके सामने
हर सम्मान
बौना हो आया
माना आज तू
नहीं है शरीर से
कहीं हमारे आस पास
तेरे गीतों ने
तेरे होने का अहसास
हमेशा ही है दिलाया
आभार जयमित्र सिंह बिष्ट
और मनमोहन चौधरी
आज मुझे ‘गिर्दा’
से आपने सच में
है रुबरू करवाया !