कितना भी पोत लिया
जाए
एक सफ़ेद पन्ने को कूंची से या कलम से
आंखे मानती नहीं है देखने वाले की यूं ही
कुछ भी कभी भी कसम से
एक सफ़ेद पन्ने को कूंची से या कलम से
आंखे मानती नहीं है देखने वाले की यूं ही
कुछ भी कभी भी कसम से
काला लिखा हुआ होता है कुछ खूबसूरत सा सामने से
क्या फर्क पढ़ता है
क्या फर्क पढ़ता है
पलकें खुली होती हैं मगर ढकी हुई आँखे होती हैं
किसी और की सोच से
सपने कोई और गढ़ता है
किसी और की सोच से
सपने कोई और गढ़ता है
उछालते रहिये सिक्के जिन्दगी पड़ीं है
एक तरफ हेड दूसरी और टेल ही रहेगा
एक तरफ हेड दूसरी और टेल ही रहेगा
सिक्का खडा करने की ताकत के साथ खडा है
सामने से कोई आज
तू क्या करेगा
सामने से कोई आज
तू क्या करेगा
सोचने और करने में बहुत साफ दिखाई देता है अंतर
किसी का सामने से
किसी का सामने से
बातों में जलेबी बना के परोसने वालों का
कौन क्या कभी कुछ कर सकेगा
कौन क्या कभी कुछ कर सकेगा
मन आयेगी तो कभी नहा भी लेगा
‘उलूक’ तेरे सोचने और करने में फर्क ही नहीं है
जो भी उखाडेगा तेरा ही कुछ उखाड़ लेगा |
जो भी उखाडेगा तेरा ही कुछ उखाड़ लेगा |
चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/
बहुत खूब सर
जवाब देंहटाएंजो हुआ सो हुआ,
जवाब देंहटाएंबाकी की चिंता करिए
शुभ प्रभात..
पलकें खुली होती हैं मगर ढकी हुई आँखे होती हैं
जवाब देंहटाएंकिसी और की सोच से सपने कोई और गढ़ता है
-सच्चाई
लाजबाब लेखन
सुन्दर सृजन सर !
जवाब देंहटाएंजीवन का सत्य है यह। बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंकितना भी लीप-पोत लिया जाए रहेगा तो रंगा सियार ही जब मुँह खोलेगा हुआँ हुँआ ही बोलेगा।
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही उलूक हमें अच्छी राह भी दिखाएगा
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना गुरुजी 🙏
जवाब देंहटाएंवाक़ई सोचने और करने में अंतर जब मिट जाता है, तभी कोई ज्ञानी जग को राह दिखा पाता है
जवाब देंहटाएं