उलूक टाइम्स: सिक्के
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मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

जब भी करेगा ‘उलूक’ कुछ फालतू सी बकवास ही करेगा

कितना भी पोत लिया जाए
एक सफ़ेद पन्ने को कूंची से या कलम से
आंखे मानती नहीं है देखने वाले की यूं ही
कुछ भी कभी भी कसम से

काला लिखा हुआ होता है कुछ खूबसूरत सा सामने से
क्या फर्क पढ़ता है
पलकें खुली होती हैं मगर ढकी हुई आँखे होती हैं
किसी और की सोच से 
सपने कोई और गढ़ता है

उछालते रहिये सिक्के जिन्दगी पड़ीं है
एक तरफ हेड दूसरी और टेल ही रहेगा
सिक्का खडा करने की ताकत के साथ खडा है
सामने से कोई आज
तू क्या करेगा

सोचने और करने में बहुत साफ दिखाई देता है अंतर
किसी का सामने से
बातों में जलेबी बना के परोसने वालों का
कौन क्या कभी कुछ कर सकेगा

 पाप किये हैं पापी भी है साथ में बह रही गंगा भी है
मन आयेगी तो कभी नहा भी लेगा
‘उलूक’ तेरे सोचने और करने में फर्क ही नहीं है  
जो भी उखाडेगा तेरा ही कुछ उखाड़ लेगा |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



 

शनिवार, 18 जुलाई 2020

जमाने को पागल बनाओ


दूर कहीं आसमान में
 उड़ती चील दिखाओ 

कुछ हवा की बातें करो
कुछ बादलों की चाल बताओ

कुछ पुराने सिक्के घर के
मिट्टी के तेल से साफ कर चमकाओ

कुछ फूल कुछ पौंधे
कुछ पेंड़ के संग खींची गयी फोटो
जंगल  हैंं बतलाओ

तुम तब तक ही लोगों के
समझ में आओगे
जब तक तुम्हारी बातें
तुम्हें खुद ही समझ में नहीं आयेंगी
ये अब तो समझ जाओ 

जिस दिन करोगे बातें
किताब में लिखी
और
सामने दिख रहे पहाड़ की

समझ लो कोई कहने लगेगा
आप के ही घर का

क्या फालतू में लगे हो
जरा पन्ने तो पलटाओ

कुछ रंगीन सा दिखाओ
कुछ संगीत तो सुनाओ

नहीं कर पा रहे हो अगर

एक कनिस्तर खींच कर
पत्थर से ही बजा कर टनटनाओ

जरूरी नहीं है
बात समझ में ही आये समझने वाली भी
पढ़ने सुनने वाले को
जन गण मन साथ में जरूर गुनगुनाओ

जरूरी नहीं है
उत्तर मिलेंं नक्कारखाने की दीवारों से
जरूरी प्रश्नों के
कुछ उत्तर कभी
अपने भी बना कर भीड़ में फैलाओ

लिखना कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है
नजर रखा करो लिखे पर

कुछ नोट खर्च करो
किताब के कुछ पन्ने ही हो जाओ

‘उलूक’
चैन की बंसी बजानी है
अगर इस जमाने में

पागल हो गया है की खबर बनाओ
जमाने को पागल बनाओ।

चित्र साभार:
http://www.caipublishing.net/yeknod/introduction.html