उलूक टाइम्स: पाप
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मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

जब भी करेगा ‘उलूक’ कुछ फालतू सी बकवास ही करेगा

कितना भी पोत लिया जाए
एक सफ़ेद पन्ने को कूंची से या कलम से
आंखे मानती नहीं है देखने वाले की यूं ही
कुछ भी कभी भी कसम से

काला लिखा हुआ होता है कुछ खूबसूरत सा सामने से
क्या फर्क पढ़ता है
पलकें खुली होती हैं मगर ढकी हुई आँखे होती हैं
किसी और की सोच से 
सपने कोई और गढ़ता है

उछालते रहिये सिक्के जिन्दगी पड़ीं है
एक तरफ हेड दूसरी और टेल ही रहेगा
सिक्का खडा करने की ताकत के साथ खडा है
सामने से कोई आज
तू क्या करेगा

सोचने और करने में बहुत साफ दिखाई देता है अंतर
किसी का सामने से
बातों में जलेबी बना के परोसने वालों का
कौन क्या कभी कुछ कर सकेगा

 पाप किये हैं पापी भी है साथ में बह रही गंगा भी है
मन आयेगी तो कभी नहा भी लेगा
‘उलूक’ तेरे सोचने और करने में फर्क ही नहीं है  
जो भी उखाडेगा तेरा ही कुछ उखाड़ लेगा |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



 

रविवार, 4 अगस्त 2019

किसलिये खुद सोचना फिर बोलना भी खुद ही हमारे होने के डर का अहसास किसी दिन तेरे चेहरे पर भी दिखेगा



मत सोच 

हम
हैं ना 
सोचने के लिये

मत बोल

हम
बोल तो रहे हैं

मत देख

दिख रहा है
की
गलतफहमी
मत पाल

हम
देख रहे हैं
बता देंगे
खुद देख कर

क्या करेगा
वैसे भी

खुद
सोच लेना

पाप हो चुका है

देखना
और
दिख रहा है
मान लेना

उससे बड़ा
पाप बन गया है

बोलना
सोच कर
दिख रहे के
ऊपर कुछ

महापाप है

बल्कि
सबसे बड़ा
साँप कहिये

या
समझ लीजिये

खुद को
खुद दिया गया
एक श्राप है

मान लिया
देख भी लिया
तूने
सब कुछ
या
थोड़ा कुछ भी

और
सोच भी लिया
चल

लगा कर
कुछ
अपना दिमाग ही

कोई बात नहीं

बोलना

शुरु
मत कर देना

कर भी देगा

तो भी
क्या होना

हम हैं ना
बोये हुऐ
उसके

उगे हुऐ उसके लिये

घेर लेंगे

जबान
खुलते ही तेरी

बेकार
में ही
हतोत्साहित
करना पड़ेगा

हम
एक नहीं उगे हैं

भीड़
हो चुके हैं

बच नहीं सकेगा

बोलने से
पहले
गिर पड़ेगा
अपनी ही नजर में

समझदारी कर

मान ले

कुछ नहीं
दिख रहा है

मान ले

कुछ नहीं
सुन रहा है

मान ले

सोच में
कीड़ा
लग चुका है

हम हैं ना

बता
तो रहे हैं
क्या देखना है

हम हैं ना

समझा
तो रहे हैं
क्या सोचना है

पूछ लेगा

बोलने
से पहले
अगर
‘उलूक’

लिखने लिखाने
पर
ईनाम भी
भारी मिलेगा

उस की
जय जय
हमारी भी
जय जय
के साथ

तेरी
किस्मत का
नया एक अध्याय
शुरु होगा

चैन से
जीने
 दिया जायेगा

भीड़ के
चेहरे में
तेरा चेहरा
मिलमिला कर

एक
 इतिहास 
नया

गुलामों
की मुक्ति का

फिर से

हमारा
जैसा
कोई एक

भीड़
में से
ही लिखेगा।

चित्र साभार:
http://www.picturesof.net


सोमवार, 15 जून 2015

मुद्दा पाप और मुद्दा श्राप

पापों
को धोने
का साबुन
अगर बाजार में
उतारा जायेगा

कोई बतायेगा

आज
के दिन
उस साबुन
का नाम

किसके
नाम पर
रखा जायेगा

साबुन
बिकेंगे
अपने ही पूरे
देश में

या
विदेशों में
ले जा कर भी
बेचा जायेगा

सीधे सीधे
खरीदेगा
आदमी
साबुन

खुद
अपने लिये
जा कर
किसी दुकान से

या
राशन कार्ड में
दिलवाया जायेगा

बहुत
सी बातें हैं
नई नई
आती हैं

अंदाज नहीं
लग पाता है
किसको कितना
भाव दिया जायेगा

पाप
के साथ
श्राप भी
बिकने
की चीज है
बड़ी काम की
पुराने युगों की

श्राप
देने लेने
का फैशन भी
क्या कभी
लौट कर आयेगा

पापी
बेचेगा श्राप
खुद बनाकर
अपनी दुकान पर

या
गलती से
किसी ईमानदार
के हाथ में
ठेका लग जायेगा

कितने
तरह के श्राप
बिकेंगे बाजार में

किसके
नाम का श्राप
सबसे खतरनाक
माना जायेगा ?

चित्र साभार: churchhousecollection.blogspot.com

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

इसका और उसका रहने दे ना देश सुना है जलजले से दस फिट खिसका है किसका क्या जाता है


नाम से लिखने पर बबाला हो जाता है 
इस और उस से काम चलाया जाये तो क्या जाता है 

अंधे देख रहे हैं अपने अपनो के कामों को 
कुछ कहना हो तो बहुत ही सोचना पड़ जाता है 

वैसे भी चम्मचें फैली हुई हैं इंटरनेट की दुनियाँ में 
गरीब और उसकी सोच पर बात करने वाला 
सबसे बड़ा पागल एक हो जाता है 

टी वी पर बहस देखिये 
इसका भी होता है उसका भी होता है 
देखने वाले पागलों को क्या कहा जाता है 

बूंद बूंद से भरता है घड़ा
यही बताया यही समझाया भी जाता है 
बूंद पाप की होती है बहुत छोटी सी 
उसको अंदेखा करना अभिमन्यू की तरह 
पेट के अंदर ही सिखाया जाता है 

नाम नहीं ले रहा हूँ उसका घिन आती है 
ओले पकड़ने के लिये खेतों में क्यों नहीं जाता है 
उसकी बात कही है मैंने
तेरी समझ में आ गया होगा मेरी समझ में भी आता है 

कुछ कहने की हिम्मत नहीं है तुझ में 
तेरे को क्या मतलब है

चमचे
तुझे तो उसके लिये देश को रौंदना 
अच्छी तरह आता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

बुधवार, 26 मार्च 2014

एक चोला एक देश से ऊपर होता चला जायेगा

परिवार के परिवार
जहाँ बने हैं सेवादार
डेढ़ अरब लोगों का
बना कर एक बाजार

अगर लगाते हैं मेला
करते हैं खरीद फरोख्त
भेड़ बकरियों की तरह
कहीं खोखा होता है
कहीं होता है एक ठेला

ऐसे मैं अगर कोई
बदल भी लेता है
अपना चोला
तो तेरा दिल क्यों
खाता है हिचकोला

कुँभ के समय में ही
कोई डुबकी लगायेगा
गँगा मैय्या को अपने
पापों की गठरी दे जायेगा

खुद सोच पाँच साल कैसे
एक चोला चल पायेगा
धुलेगा नहीं अगर
गंदा नहीं हो जायेगा
बिना बदले कैसे
धोबी को दिया जायेगा

अब सब तेरी तरह के
नंगे तो होते नहीं
बिना चोला पहने
चोले वालों की बात
बताने चला आयेगा

समझा कर कभी
कभी क्रिकेट फुटबाल
छोड़ कर ये वाला
खेल भी खेला कर

दिल तो सब के
सुलगते हैं पर
पूरा का पूरा कभी
भी नहीं जलते हैं

एक जगह कुर्सी
पक्की करने के
बाद ही तो कोई

देश के लिये
देश की कुर्सी
की ओर देख कर
लार टपकायेगा

हाथ में पड़ गई
वारा न्यारा हो जायेगा
नहीं भी पड़ती है
क्या होना है
वापस अपनी कुर्सी
पर जा कर बैठ जायेगा

नगद नारायण पहली
तारीख को अपने आप
खाते में आ जायेगा

शरीर तो बेवकूफ है
एक दिन आत्मा को
छोड़ कर चला जायेगा

चोला इस समय
अगर रह गया
भूल से शरीर पर

अगले पाँच सालों तक
दूसरे के चोलों को
देख देख कर
शरीर और आत्मा
दोनो को सुखायेगा

तुझे क्या करना है
चोले से “उलूक”
नंगा क्या निचोड़ेगा
और क्या नहायेगा

बस चोले इधर से
उधर आते जाते
देख देख सुलगते
दिल की आग
को भड़कायेगा

देश हित
सर्वोपरि होगा
नेता भगत राजगुरु
और सुखदेव से
ऊपर हो जायेगा ।