उलूक टाइम्स: आयकर
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गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

बातें करिए बातें बोइये बातें खेलिए करना किसी को नहीं है कुछ कहीं

कोशिश करते रहिये
कहने की सच
बात अलग है
कहने भर से ही बस काम नहीं हो जाएगा
जो कहा गया है उसको
किसी हजूर के तराजू में तोला भी जाएगा
बांट लिखने वाले के होंगे भी नहीं
कोर्ट कचहरी की अंधी मूर्ती से भी
काम नहीं चल पायेगा
आप से बस
हमेशा जोर लगा कर पूछा जाएगा
आप क्या सोच रहे हो
आपकी सोच को
इस तरह
सार्वजनिक किया जाएगा
सब शामिल हैं
इस खेल में घर से लेकर मैदान तक
बल्ला आपको दिए बिना
आपसे क्रिकेट खेलने को कहा जाएगा
बातें करिए बातों मैं कहीं भी आपको
आयकर लगा नजर नहीं आयेगा
जो जितना लंबा फेंकेगा
सोने का मैडल उसी के हाथ नजर आयेगा
प्रतिस्पर्धा कहीं है ही नहीं
मुकाबला करने आने वाले की
मुट्ठी गरम कर उसे
गीता का ज्ञान दिया जाएगा
एक ही चेहरे के साथ जीने वाले को
नरक ज्ञान की आभासी दुनियाँ
से भटका कर स्वर्गलोक में
होने का आभास
बातों से ही दे दिया जाएगा
बातें करिए बातें बोइये बातें खेलिए
करना किसी को नहीं है कुछ कहीं
‘उलूक’ तू खुद सोच ले
अपने दिन का सपना
तेरा रात का बकबकाना ही कहीं
तेरा फांसी का फंदा
तेरे लिए तो नहीं एक बन जाएगा ?

चित्र साभार : https://navbharattimes.indiatimes.com/

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

आयकर अधिकारी का निमंत्रण पत्र


आयकर अधिकारी 
ने
सूचना एक भिजवाई थी

आज ही के दिन की 
तारीख लगवाई थी

लिखा था

मिलने 
के लिये आ जाना 
जो भी पूछूंगा
यहाँ 
आकर बता जाना 

वेतनभोगी
का वेतन 
तो खाते मैं जाता है
जो भी होता है 
साफ नजर आता है 

आयकर तो नियोक्ता 
खुद
काट कर 
भिजवाता है

साल में
दो महीने का वेतन
आयकर में चला जाता है

खुशी होती है 
कुछ हिस्सा देश के 
काम में जब आता है 

समझ में
नहीं आता है 
ऎसे आदमी से 
वो और क्या नया 
पूछना चाहता है 

अरबों खरबों
के 
टैक्स चोर
घूम रहे हैं खुले आम 

उनसे
टकराने की हिम्मत तो
कोई नहीं कर पाता है 

माना कि
कोई कोई मास्टर
धंदेबाज भी हो जाता है 

वेतन
के अलावा के कामों में
लाखों भी कमाता है 

ट्यूशन की दुकान चलाता है
लाख रुपिये की कापियाँ
एक पखवाडे़ के अंदर ही जाँच ले जाता है 

उस आय से बीबी के गले में
हीरों का हार पहनाता है 

आयकर वाला
लगता है
शायद ऎसी बीबी को बस कुछ ऎसे ही 
देखता रह जाता है 
पूछ कुछ नहीं पाता है 

सड़क पर कोई 
बेशकीमती गाड़ी
दो दो भी दौड़ाता है 

बहुमंजिले
मकान पर मकान बनाता है 
अच्छा करता है 
कोई अगर तकिये के नीचे नोट छिपाता है 

उधर
पहुँचने पर
पेशी में पूछा जाता है 

कितना
राशन पानी दूध चीनी
तू हर महीने अपने घर को ले जाता है 

हिसाब किताब
लिख कर दे जाना 
अगली तारीख लगा दी है 

वो
मुस्कुराते हुवे जब बताता है

ईमानदारी
वाकई 
अभिशाप तो नहीं 

ऎसे समय में
लगने लग जाता है 

बेईमान
होने से ही 

शायद आदमी 
इन लफड़ों में
नहीं 
कभी फंस पाता है ।

चित्र साभार: 
https://in.finance.yahoo.com/