उलूक टाइम्स: बेईमान
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सोमवार, 9 नवंबर 2015

जब पकाना ही हो तो पूरा पकाना चाहिये बातों की बातों में बात को मिलाना आना चाहिये

अब
चोर होना
अलग बात है

ईमानदार होना
अलग बात है

चोर का
ईमानदार होना
अलग बात है

चोरी करने
के लिये
कुछ सामने
से होना
अलग बात है

बिना कुछ
उठाये
छिपाये भी
चोरी हो जाना
अलग बात है

कहने का
मतलब
ऐसे तो कुछ
भी नहीं है
पर
वैसे कहो
तो कुछ है
और
नहीं भी है

बात कहने में
क्या जाता है
बातें बताना
अलग बात है
बातें बनाना
अलग बात है

जैसे बात
दिशा बताने
की हो तो भी
बिल्कुल
जरूरी नहीं है
दिशा का ज्ञान हो

बच्चे का
चेहरा हो
शरीर
जवान हो
अधेड़ की
सोच हो
बुढ़ापे की
झुर्रियों
के पहले
से ही छिपे
हुऐ निशान हो

इसकी जीत में
उसकी हार हो
किसी के लिये
हार और जीत
दोनो बेकार हों

समय के
निशानों पर
छिपाये
निशान हों

जन्मदिन हो
जश्न हो
शहर हो
प्रदेश हो
ईमानदार
का ईमान हो
झूठ बस
बे‌ईमान हो

ईमानदारी
पर भाषण हो
झूठ का
सच हो
सच का
झूठ हो
शासन का
राशन हो
योगा का
आसन हो
बात का
बात से
बात पर
प्रहार हो
मुस्कुराता

अंदर
ही अंदर
अंदर का
व्यभिचार हो

पर्दा खुला
रहने रहने
तक तो
कम से कम
नाटक हो
और
जोरदार हो ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

आयकर अधिकारी का निमंत्रण पत्र


आयकर अधिकारी 
ने
सूचना एक भिजवाई थी

आज ही के दिन की 
तारीख लगवाई थी

लिखा था

मिलने 
के लिये आ जाना 
जो भी पूछूंगा
यहाँ 
आकर बता जाना 

वेतनभोगी
का वेतन 
तो खाते मैं जाता है
जो भी होता है 
साफ नजर आता है 

आयकर तो नियोक्ता 
खुद
काट कर 
भिजवाता है

साल में
दो महीने का वेतन
आयकर में चला जाता है

खुशी होती है 
कुछ हिस्सा देश के 
काम में जब आता है 

समझ में
नहीं आता है 
ऎसे आदमी से 
वो और क्या नया 
पूछना चाहता है 

अरबों खरबों
के 
टैक्स चोर
घूम रहे हैं खुले आम 

उनसे
टकराने की हिम्मत तो
कोई नहीं कर पाता है 

माना कि
कोई कोई मास्टर
धंदेबाज भी हो जाता है 

वेतन
के अलावा के कामों में
लाखों भी कमाता है 

ट्यूशन की दुकान चलाता है
लाख रुपिये की कापियाँ
एक पखवाडे़ के अंदर ही जाँच ले जाता है 

उस आय से बीबी के गले में
हीरों का हार पहनाता है 

आयकर वाला
लगता है
शायद ऎसी बीबी को बस कुछ ऎसे ही 
देखता रह जाता है 
पूछ कुछ नहीं पाता है 

सड़क पर कोई 
बेशकीमती गाड़ी
दो दो भी दौड़ाता है 

बहुमंजिले
मकान पर मकान बनाता है 
अच्छा करता है 
कोई अगर तकिये के नीचे नोट छिपाता है 

उधर
पहुँचने पर
पेशी में पूछा जाता है 

कितना
राशन पानी दूध चीनी
तू हर महीने अपने घर को ले जाता है 

हिसाब किताब
लिख कर दे जाना 
अगली तारीख लगा दी है 

वो
मुस्कुराते हुवे जब बताता है

ईमानदारी
वाकई 
अभिशाप तो नहीं 

ऎसे समय में
लगने लग जाता है 

बेईमान
होने से ही 

शायद आदमी 
इन लफड़ों में
नहीं 
कभी फंस पाता है ।

चित्र साभार: 
https://in.finance.yahoo.com/