सच को बस छोड़कर
सब कुछ चलता हुआ दिखाई देता है
सच सबके पास होता है
जेब में कमीज और पेंट की
हाथ में कापी और किताब में
एक के सच से दूसरे को
कोई मतलब नहीं होता है
अपने अपने सच होते हैं
सब का आकार अलग होता है
सच किसी के पैर की चप्पल या जूता होता है
एक का सच
दूसरे के काम का नहीं होता है
कोई किसी के सच के बारे में
किसी से कुछ नहीं कहता है
हाँ झूठ बहुत ही मजेदार होता है
सब बात करते हैं झूठ की
झूठ का आकार नहीं होता है
एक का झूठ दूसरे के भी
बहुत काम का होता है
पर किसी को पता नहीं होता है
झूठ कहाँ होता है
सूचना का अधिकार
झूठ को ढूंढने का ही हथियार होता है
सबसे ज्यादा चलता हुआ
वही दिख रहा होता है
सच
बेवकूफ
बेवकूफ
मैं सच हूं सोच सोच कर
एक जगह ही बैठा होता है
जहाँ पहुचने की कोई सोच भी नहीं सकता है
झूठ वहाँ जरूर पहले से ही पहुंचा होता है
झूठ के पैर नहीं होते है
'उलूक'
बहकाने के लिये ही
बहकाने के लिये ही
शायद यूँ ही कह दिया होता है ।
चित्र साभार: https://www.megapixl.com/