अच्छा हुआ
भगवान
अल्ला ईसा
किसी ने
देखा नहीं
कभी
सोचता
आदमी
आता जाता है
आदमी
को गली का
भगवान
बना कर यहाँ
कितनी
आसानी से
सस्ते
में बेच
दिया जाता है
एक
आदमी
को
बना कर
भगवान
जमीन का
पता नहीं
उसका
आदमी
क्या करना
चाहता है
आदमी
एक आदमी
के साथ मिल कर
खून
को आज
लाल से सफेद
मगर
करना चाहता है
कहीं मिट्टी
बेच रहा है
आदमी
कहीं पत्थर
कहीं
शरीर से
निकाल कर
कुछ
बेचना चाहता हैं
पता नहीं
कैसे कहीं
बहुत दूर बैठा
एक आदमी
खून
बेचने वाले
के लिये
तमाशा
चाहता है
शरम
आती है
आनी भी
चाहिये
हमाम
के बाहर भी
नंगा हो कर
अगर
कोई नहाना
चाहता है
किसको
आती है
शरम
छोटी छोटी
बातों में
बड़ी
बातों के
जमाने में
बेशरम
मगर
फिर भी
पूछना
चाहता है
देशभक्त
और
देशभक्ति
हथियार
हो चले हैं
भयादोहन के
एक चोर
मुँह उठाये
पूछना चाहता है
घर में
बैठ कर
बताना
लोगों को
किस ने
लिखा है
क्या लिखा है
उसकी
मर्जी का
बहुत
मजा आता है
बहुत
जोर शोर से
अपना
एक झंडा लिये
दिखा
होता है
कोई
आता हुआ
लेकिन
बस फिर
चला भी
यूँ ही
जाता है
आसान
नहीं होता है
टिकना
उस
बाजार में
जहाँ
अपना
खुद का
बेचना छोड़
दूसरे की
दुकान में
आग लगाना
कोई
शुरु हो
जाता है
‘उलूक’
यहाँ भी
मरघट है
यहाँ भी
चितायें
जला
करती हैं
लाशों को
हर कोई
फूँकने
चला
आता है
घर
मोहल्ले
शहर में
जो होता है
चिट्ठाजगत
में भी होता है
पर सच
कौन है
जो देखना
चाहता है ।
चित्र साभार: https://www.shutterstock.com
भगवान
अल्ला ईसा
किसी ने
देखा नहीं
कभी
सोचता
आदमी
आता जाता है
आदमी
को गली का
भगवान
बना कर यहाँ
कितनी
आसानी से
सस्ते
में बेच
दिया जाता है
एक
आदमी
को
बना कर
भगवान
जमीन का
पता नहीं
उसका
आदमी
क्या करना
चाहता है
आदमी
एक आदमी
के साथ मिल कर
खून
को आज
लाल से सफेद
मगर
करना चाहता है
कहीं मिट्टी
बेच रहा है
आदमी
कहीं पत्थर
कहीं
शरीर से
निकाल कर
कुछ
बेचना चाहता हैं
पता नहीं
कैसे कहीं
बहुत दूर बैठा
एक आदमी
खून
बेचने वाले
के लिये
तमाशा
चाहता है
शरम
आती है
आनी भी
चाहिये
हमाम
के बाहर भी
नंगा हो कर
अगर
कोई नहाना
चाहता है
किसको
आती है
शरम
छोटी छोटी
बातों में
बड़ी
बातों के
जमाने में
बेशरम
मगर
फिर भी
पूछना
चाहता है
देशभक्त
और
देशभक्ति
हथियार
हो चले हैं
भयादोहन के
एक चोर
मुँह उठाये
पूछना चाहता है
घर में
बैठ कर
बताना
लोगों को
किस ने
लिखा है
क्या लिखा है
उसकी
मर्जी का
बहुत
मजा आता है
बहुत
जोर शोर से
अपना
एक झंडा लिये
दिखा
होता है
कोई
आता हुआ
लेकिन
बस फिर
चला भी
यूँ ही
जाता है
आसान
नहीं होता है
टिकना
उस
बाजार में
जहाँ
अपना
खुद का
बेचना छोड़
दूसरे की
दुकान में
आग लगाना
कोई
शुरु हो
जाता है
‘उलूक’
यहाँ भी
मरघट है
यहाँ भी
चितायें
जला
करती हैं
लाशों को
हर कोई
फूँकने
चला
आता है
घर
मोहल्ले
शहर में
जो होता है
चिट्ठाजगत
में भी होता है
पर सच
कौन है
जो देखना
चाहता है ।
चित्र साभार: https://www.shutterstock.com