उलूक टाइम्स: ज्योतिष
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गुरुवार, 28 नवंबर 2013

सबूत होना जरूरी है ताबूत होने से पहले

छोटी हो या बड़ी आफत
कभी बता कर नहीं आती है 
और समझदार लोग 
हर चीज के लिये तैयार नजर आते है 

आफत बाद में आती है 
उससे पहले निपटने के हथियार लिये 
हजूर दिख जाते हैं 

जिनके लिये पूरी जिंदगी प्रायिकता का एक खेल हो 
उनको किस चीज का डर 

पासा फेंकते ही छ: हवा में ही ले आते है 

जैसे सब कुछ बहुत आसान होता है 

एक लूडो साँप सीढ़ी 
या 
शतरंज का कोई खेल 

ऐसे में ही कभी कभी 
खुद के अंदर एक डर सा बैठने लगता है 

जैसे कोई 
उससे उसके होने का सबूत मांगने लगता है 

पता होता है
सबूत सच का कभी भी नहीं होता है 
सबूतों से तो सच बनाया जाता है 
कब कौन कहाँ किस हालत में 
क्या करता हुआ
अखबार के मुख्य पृष्ठ पर दिख जाये 
बहुत से ज्योतिष हैं यहाँ 
जिनको इस सबकी गणना करना 
बहुत ही सफाई के साथ आता है 

बस एक बात सब जगह 
उभयनिष्ठ नजर आती है 
जो किसी भी हालत में 
एक रक्षा कवच 
फंसे हुऐ के लिये बन जाती है 

कहीं ना कहीं किसी ना किसी गिरोह से 
जुड़ा होना हर मर्ज की एक दवा होता है

नहीं तो क्या जरूरत है 
किसी सी सी टी वी के फुटेज की 
जब कोई स्वीकार कर रहा हो अपना अपराध 
बिना शर्म बिना किसी लिहाज 

ऐसे में ही महसूस होता है 
किसी गिरोह से ना जुड़ा होना 
कितना दुख:दायी होता है 

कभी भी कोई पूछ सकता है 
तेरे होने या ना होने का सबूत 
उससे पहले कि बने 
तेरे लिये भी कहीं कोई ताबूत 

सोच ले 'उलूक' अभी भी
है कोई सबूत कहीं 
कि तू है और सच में है 
बेकार ही सही पर है यहीं कहीं
ताबूत में जाने के लिये भी
एक सबूत जरूरी होता है।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



उपरोक्त बकवास पर भाई रविकर जी की टिप्पणी: 


छोटा है ताबूत यह, पर सबूत मजबूत |
धन सम्पदा अकूत पर, द्वार खड़ा यमदूत |
द्वार खड़ा यमदूत, नहीं बच पाये काया |
कुल जीवन के पाप, आज दुर्दिन ले आया |
होजा तू तैयार, कर्म कर के अति खोटा |
पापी किन्तु करोड़, बिचारा रविकर छोटा ||

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

ज्योतिष हो गया अखबार

जन्म पत्री बाँचते हैं
बहुत ही ज्ञानी हैं
पंडित जी का
नहीं कोई सानी है
हर साल आते हैं
मेरे घर पर दो बार
माँगते हैं जन्म पत्री
सबकी हर बार
बताते हैं कुछ भूत
और कुछ भविष्य
वैसे का वैसा ही
जैसा बता गये थे
पिछली बार
आये कल भी
उसी तरह इस बार
पोथी निकाल कर
बैठे महानुभाव
शुरू किया बाँचना
हमेशा की तरह
नक्षत्रों को
सुनाने लगे
वही पुरानी रामायण
सुनते ही पुरानी कथा
जब नहीं रहा गया
पंडित जी से मैने
तब कह ही दिया
गुरू कुछ नई बात भी
कभी कभी बताया करो
जन्मपत्री से भी अगर
कुछ खोद नहीं
पा रहे हो तो
कम से से कम
अखबार तो पढ़ कर
के आया करो
आजकल तो जो
होना है आगे वो
पहले अखबार में
ही आता है
उसके बाद ही
होना है जो तभी
तो हो पाता है
मजे की बात
इसमें ये है
कि  ग्रह नक्षत्र
को भी पता नहीं
चल पाता है
कि अखबार
वालों को
ये सब कौन जा
के बताता है
इसीलिये तो
जो वाकई में
हो रहा है वो
अखबार में
कम ही
जगह पाता है
अखबार से
बढ़िया जन्मपत्री
पंडित अब तू भी
नहीं बाँच पाता है ।