महीने के
अंतिम दिन
तक आते
जेब का
दिवाला होना
कुछ समझ
में आता है
सोच से
दिवालिया
होने के लिये
दिन साल
महीने को
कहां गिना
जाता है
बहुत
होते हैं
जेब से
दिवालिये
पर अपनी
सोच का
जनाजा
कभी
निकलने
नहीं
देते हैं
सोच का
दिवाला
खुद ही
निकाल
जेब के
हवाले
करने
वाले
पर
हर जगह
होते हैं
और
कम नहीं
होते हैं
ज्यादा
होते हैं
और
बहुत
होते हैं
सोच के
होने को
आज कौन
भाव देता है
सबकी
नजर में
जेब होती है
और
हर जेब
का भाव
बस वही
जैसे आज
बाजार में
प्याज
होता है
जो भी
होता है
बस एक
बाजार
होता है
चढ़ता है
कुछ कहीं
कहीं कुछ
उतर रहा
होता है
सबकी
अपनी
फितरत है
कहाँ इसका
फर्क पड़
रहा होता है
कहीं सोच
मर रही
होती है
कहीं
जनाजा
सोच का
लेकर सामने
से ही कोई
गुजर रहा
होता है
बहुत कुछ
होता है
किसी के
लिये जो
किसी के
लिये कुछ
भी कहीं
नहीं
होता है ।
अंतिम दिन
तक आते
जेब का
दिवाला होना
कुछ समझ
में आता है
सोच से
दिवालिया
होने के लिये
दिन साल
महीने को
कहां गिना
जाता है
बहुत
होते हैं
जेब से
दिवालिये
पर अपनी
सोच का
जनाजा
कभी
निकलने
नहीं
देते हैं
सोच का
दिवाला
खुद ही
निकाल
जेब के
हवाले
करने
वाले
पर
हर जगह
होते हैं
और
कम नहीं
होते हैं
ज्यादा
होते हैं
और
बहुत
होते हैं
सोच के
होने को
आज कौन
भाव देता है
सबकी
नजर में
जेब होती है
और
हर जेब
का भाव
बस वही
जैसे आज
बाजार में
प्याज
होता है
जो भी
होता है
बस एक
बाजार
होता है
चढ़ता है
कुछ कहीं
कहीं कुछ
उतर रहा
होता है
सबकी
अपनी
फितरत है
कहाँ इसका
फर्क पड़
रहा होता है
कहीं सोच
मर रही
होती है
कहीं
जनाजा
सोच का
लेकर सामने
से ही कोई
गुजर रहा
होता है
बहुत कुछ
होता है
किसी के
लिये जो
किसी के
लिये कुछ
भी कहीं
नहीं
होता है ।