उलूक टाइम्स: गरीबी की रेखा
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सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

तू आये निकले दिवाला वो आये होये दिवाली

एक तू है

कभी कहीं
जाता है

किसी को
कुछ भी
पता नहीं
चल पाता है

क्यों आता है
क्यों चला जाता है

ना कोई
आवाज आती है
ना कोई
बाजा बजाता है

क्या फर्क पड़ता है
अगर तुझे कुछ या
बहुत कुछ आता है

पढ़ाई लिखाई की
बात करने वाले
के पास पैसे का
टोटा हो जाता है

चंदे की
बात करता है
जगह जगह
गाली खाता है

नेता से सीखने में
काहे शरमाता है
कुछ ना भी बताये
किसी को कभी भी
अखबार में आ जाता है

शहर में लम्बी चौड़ी
गाड़ियों का मेला
लग जाता है

ट्रेफिक का सिपाही
कुछ कहना छोड़ कर
बस अपना सिर
खुजलाता है

चुनाव की बात
करने के लिये
किसी भी गरीब
को कष्ट नहीं
दिया जाता है

राजनैतिक
सम्मेलनों से
साफ नजर आता है

देश में गरीबों का
बहुत खयाल
रखा जाता है

दूर ही से नहीं
बहुत दूर से भी
सिखा दिया जाता है

क्यों परेशान होता है
काहे चुनावों में खड़ा
होना चाहता है

सूचना या समझने के
आधिकार से किसी भी
गरीब का नहीं
कोई नाता है

वोट देने का अधिकार
दिया तो है तुझे
खुश रह मौज कर

अगले साल
आने के लिये
अभी से बता
दिया जाता है

हम पे नजर
रखना छोड़
आधार कार्ड
बनाने के लिये
भीड़ में घुसने
का जुगाड़
क्यों नहीं
लगाता है

समझा कर
गरीबी की
रेखा का सम्मान
इस देश में हमेशा
ही किया जाता है

सेहत के लिये जो
अच्छा नहीं होता
ऐसा कोई भी ठेका
उनको नहीं
दिया जाता है ।