उलूक टाइम्स: पाकिस्तान
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बुधवार, 28 जनवरी 2015

उसके आने और उसके जाने का फर्क नजर आ रहा है

सात समुंदर पार
से आकर
वो आईना
दिखा रहा है
धर्म के नाम पर
बंट रहे हो
बता रहा है
पता किसी
को भी नहीं था
वो बस इतना
और इतना ही
बताने के लिये
तो आ रहा है
धूम धड़ाम से
फट रहे हों
पठाके खुशी के
कोई खुशफहमी
की फूलझड़ी
जला रहा है
दिल खोल के
खड़े हैं राम भक्त
पढ़ रहे हैं साथ में
हनुमान चालिसा भी
हनुमान अपने को
बता कर कोई
मोमबत्तियाँ
बाँट कर
जा रहा है
एक अरब
से ज्यादा
के ऊपर थोपा
गया मेहमान
मुँह चिढ़ा कर
सामने सामने
धन्यवाद
हिंदी में
बोल कर
जा रहा है
अपनी अपनी
सोच और
अपनी अपनी
समझ है यारो
तुम लोगों का
अमेरिका होगा
’उलूक’ को
दूसरा पाकिस्तान
नजर आ रहा है
कुछ नहीं हो
सकता आजाद
होने के बाद
आजादी का
नाजायज फायदा
एक गुलाम और
उसका बाप
उठा रहा है
विवेकानंद भी
हंस रहा है
ऊपर कहीं
सुना है
मेरे भाई बंधुओ
जनता से
कहने का
नुकसान उसे
आज समझ मे
आ रहा है ।
चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/

बुधवार, 5 मार्च 2014

जरूरी नहीं होती है हर बात की कब्र कहीं खुदी होना

बेरोजगार के दर्द की
दवा नहीं होती है
और रोजगारी में
बेरोजगार होने की
बात किसी से
कभी भी कहनी
नहीं होती है
बहुत तरह के होते हैं
क्या होते हैं
?
रहने दीजिये बेकार है
कुछ भी कहना
कुछ समझेंगे
कुछ नहीं समझेंगे
कुछ से तो कहनी
ही नहीं होती है
इस तरह की बातें कभी
उनके लिये कहने से
अच्छा होता है
कुछ भी नहीं कहना
इसलिये खाली पीली
क्यों बेकार का पंगा
किसी से इस तरह
का ले लेना
अच्छा है रोज की तरह
दस पाँच मिंनट
फाल्तू निकाल कर
बैठे ठाले की किताब का
एक नमूना ही
हल कर लेना
कुछ ऐसा लिख लेना
पड़े नहीं किसी के पल्ले
एक दिन आये देखने
दूसरे दिन से साफ
नजर आये रास्ता
ही बदल लेना
किसी का इस गली से
दुबारा नहीं आने की
तौबा ही कर लेना
वैसे भी अखबार
रेडियो टी वी से
ज्यादा खतरनाक
हो चुका है आज का
सोशियल मीडिया
कुछ लिखने दिखाने
का मतलब कब
निकल आये कुछ और
और मढ़ दिया जाये
कारण सिर पर
दंगों का हो लेना
अच्छा किया
नहीं बताया
पढ़े लिखों को
बन गया था नक्शा
बेलते समय रोटी आज
शाम के खाना
बनाने के समय
पाकिस्तान का
मैंने छुपाया ही छुपाया
हो सके तो तुम भी
किसी से इस बावत
कुछ भी कहीं भी
ना कह सको तो
नहीं कह देना ।

शनिवार, 18 अगस्त 2012

नागा बाबा

नागा बाबा 
एक
देखे मैंने
नंग धडंग
खडे़ 

एक टी वी 
की दुकान 
के सामने

देखते हुऎ
फ़ैशन
टी वी में
छोटे छोटे
कपड़ों में
माडलों का
कैट वाक

घर में टी वी
कभी भी
मैं नहीं
देखता हूँ
लेकिन
वहाँ
मैं भी तन
कर खड़ा
हो गया

जैसे चल
रहा हो
क्रिकेट मैच
कोई
भारत
पाकिस्तान का

फिर कीड़ा
कुलबुलाया

आम
आदमी
के पेट में
जैसे
पचती नहीं
कोई बात

टी वी को
कम
बाबा को
ज्यादा
देख रहा
था मैं
बहुत
देर तक
लेकिन
रुक
नहीं पाया
पूछ बैठा
बाबा से

बाबा जी
कौन सा
कपड़ा
आपको
पसंद आया

बाबा मुड़ा
मुझे घूरा
थोड़ा डर
भी लगा
लेकिन फिर
मुस्कुराया

पूछा मुझसे
उसने

ये बहुत
देर से
मैं भी
देख रहा हूँ
लेकिन
समझ नहीं
पा रहा था
कि
इनसे ऎसा
कौन है
जो ये
करवा
रहा था

यहाँ तो
हर आदमी
करता है
यही
कैट वाक
वो तो
टी वी में
कहीं नहीं
दिखाया
है जाता

देखते रहो
इनको
निर्विकार
भाव से
समझो
कैट और
कैट वाक
को इनके
और
मुस्कुरालो
तो जग है
जीत
लिया जाता

सभी तो
कर रहे हैं
कैट वाक
यहां
कपड़े अपने
उतार कर

पर कहलाना
नहीं चाहते
बस दिखवाना
चाहते है
अपने को
कैट वाक पर
कपड़े की बात
छोड़ कर

पर कौन
कर सकता
है ऎसा
करता तो
मेरे जैसे
बिना कपड़े
का एक
नागा बाबा
नहीं हो जाता

बच्चा
समझा कर
तू भी मुझ से
कहाँ फिर
कुछ
पूछ पाता

समझ में तेरे
कुछ आया है
तो यहाँ से
चला जा
नहीं तो
तू भी एक
नागा बाबा
बन जा
और मेरे
साथ आजा ।