उलूक टाइम्स: नागा बाबा

शनिवार, 18 अगस्त 2012

नागा बाबा

नागा बाबा 
एक
देखे मैंने
नंग धडंग
खडे़ 

एक टी वी 
की दुकान 
के सामने

देखते हुऎ
फ़ैशन
टी वी में
छोटे छोटे
कपड़ों में
माडलों का
कैट वाक

घर में टी वी
कभी भी
मैं नहीं
देखता हूँ
लेकिन
वहाँ
मैं भी तन
कर खड़ा
हो गया

जैसे चल
रहा हो
क्रिकेट मैच
कोई
भारत
पाकिस्तान का

फिर कीड़ा
कुलबुलाया

आम
आदमी
के पेट में
जैसे
पचती नहीं
कोई बात

टी वी को
कम
बाबा को
ज्यादा
देख रहा
था मैं
बहुत
देर तक
लेकिन
रुक
नहीं पाया
पूछ बैठा
बाबा से

बाबा जी
कौन सा
कपड़ा
आपको
पसंद आया

बाबा मुड़ा
मुझे घूरा
थोड़ा डर
भी लगा
लेकिन फिर
मुस्कुराया

पूछा मुझसे
उसने

ये बहुत
देर से
मैं भी
देख रहा हूँ
लेकिन
समझ नहीं
पा रहा था
कि
इनसे ऎसा
कौन है
जो ये
करवा
रहा था

यहाँ तो
हर आदमी
करता है
यही
कैट वाक
वो तो
टी वी में
कहीं नहीं
दिखाया
है जाता

देखते रहो
इनको
निर्विकार
भाव से
समझो
कैट और
कैट वाक
को इनके
और
मुस्कुरालो
तो जग है
जीत
लिया जाता

सभी तो
कर रहे हैं
कैट वाक
यहां
कपड़े अपने
उतार कर

पर कहलाना
नहीं चाहते
बस दिखवाना
चाहते है
अपने को
कैट वाक पर
कपड़े की बात
छोड़ कर

पर कौन
कर सकता
है ऎसा
करता तो
मेरे जैसे
बिना कपड़े
का एक
नागा बाबा
नहीं हो जाता

बच्चा
समझा कर
तू भी मुझ से
कहाँ फिर
कुछ
पूछ पाता

समझ में तेरे
कुछ आया है
तो यहाँ से
चला जा
नहीं तो
तू भी एक
नागा बाबा
बन जा
और मेरे
साथ आजा ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. ...सबकी अपनी मजबूरी है और वही उसका धर्म बन जाता है !

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  2. नहीं तो तू भी एक
    नागा बाब बन और
    मेरे साथ आजा !!........बेहतरीन प्रस्तुति ....आभार

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  3. नागा बाबा ढूंढता, सुन्दर दादीजान |
    करता पर अफ़सोस है, गया एक पहचान |
    गया एक पहचान, पुरानी देखी बिल्ली |
    ली चिथड़े दो डाल, गई थी ये तो दिल्ली |
    कपड़ों का संताप, कैट पर गुस्सा आये |
    इसी बीच में आप, बेवजह टांग अड़ाए ||

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  4. मित्र जोशी जी ,
    बहुत जीवंत सारगर्भित काव्य धारा में ,मुखर प्रवाह ...सुन्दर है / अग्रे बताना चाहूँ - मेरा इ.मेल -
    udaya.veeji@gmail.com

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    1. Delivery to the following recipient failed permanently:

      udaya.veeji@gmail.com

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      The email account that you tried to reach does not exist. Please try double-checking the recipient's email address for typos or unnecessary spaces. Learn more at http://support.google.com/mail/bin/answer.py?answer=6596

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  5. एक सूक्षम-दृष्‍टि और संवेदनशील मन के उद्‍गारों का यथार्थ वर्णन ! सोचने को प्रवृत्त करती रचना।

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  6. ईद मुबारक !
    आप सभी को भाईचारे के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    --
    इस मुबारक मौके पर आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (20-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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