उलूक टाइम्स: पैगाम
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बुधवार, 21 जुलाई 2021

रोके गये अन्दर कहीं खुद के छिपाये हुऐ सारे बे‌ईमान लिख दें

 



रुकें थोड़ी देर
भागती जिंदगी के पर थाम कर
थोड़ी सी सुबह थोड़ी शाम लिख दें

कोशिश करें
कुछ दोपहरी कुछ अंधेरे में सिमटते
रात के पहर के पैगाम लिख दें

फिर से शुरु करें
सीखना बाराहखड़ी
ठहर कर थोड़ा कुछ किताबों के नाम लिख दें

रोकें नहीं
सैलाब आने दें
इससे पहले मिटें धूल में लिखे सारे सुर्ख नाम
चलो खुद को खुलेआम बदनाम लिख दें

छान कर
लिख लिया कुछ कुछ कभी कुछ कभी
कभी बेधड़क होकर अपने सारे किये कत्लेआम लिख दें

किसलिये झाँके
सुन्दर लिखे के पीछे से एक वीभत्स चेहरा
आईने लिखना छोड़ दें
पर्दे गिरा सारा सभीकुछ सरेआम लिख दें 

उनको
लिखने दें ‘उलूक’
सलीके से अपने सलीके
 खुल कर बदतमीजियां अपनी
बैखोफ होकर अपने हमाम लिख दें ।

चित्र साभार: https://www.clipartmax.com/

सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

कुछ सजीव लिखें कुछ अजीब लिखें कुछ लगाम लिखें कुछ बेलगाम लिखें

कुछ
उठती उनींदी
सुबह लिखें

कुछ
खोती सोती
शाम लिखें

कुछ
जागी रातों
के नाम लिखें

कुछ
बागी सपनों
के पैगाम लिखें

कुछ
बहकी साकी
के राम लिखें

कुछ
आधे खाली

कुछ
छलके जाम लिखें

कुछ
लिखने
ना लिखने
की बातों में से

थोड़ा
सा कुछ
खुल कर
सरेआम लिखें

कुछ
दर्द लिखें
कुछ खुशी लिखें

कुछ
सुलझे प्रश्नों
के उलझे
इम्तिहान लिखें

कुछ
झूठ लिखें
कुछ टूट लिखें

कुछ
रस्ते कुछ
कुछ सच के
कुछ अन्जान लिखें

कुछ
बनते बनते से
कुछ शैतान लिखें

थोड़े से

कुछ
मिट्ठी से उगते
इन्सान लिखें

कुछ
कुछ लिखते
लिखते कुछ
खुद की बातें

‘उलूक’

कुछ
बातें उसकी
कुछ उससे
पहचान लिखें।

चित्र साभार: https://pngio.com

रविवार, 14 अगस्त 2016

एक खयाल आजाद एक खयाल गुलाम एक गुलाम आजाद एक आजाद गुलाम

गुलामों के
गुलामों की

किसी एक
श्रृंखला के
गुलाम

तेरे आजाद
होने के
खयाल को

एक गुलाम
का सलाम

सोच ले
कर ले मनन
लगा ले ध्यान

लिखना चाहे
तो लिख
भी ले
एक कलाम

कल के दिन
आने वाली

एक दिन
की आजादी
के जश्न का
आज की शाम

देख कर
दिनदर्शिका में

अवकाश के
दिनों में
दिखाये गये

लाल रंग में रंगे
पन्द्रह अगस्त
का लेकर नाम

कल
निकल जायेगा
हाथ से

एक साल तक
नहीं मिलेगा
फिर मौका

हो जायेंगे
तेरे सारे
अरमान धड़ाम

करले करले
बिना शरमाये

किसी बड़े
गुलाम के
छोटे गुलाम को

झंडा तानते समय
जोर से जूता
ठोक कर सलाम

आजाद खयाल
आजाद रूहें
करें अपने
हिसाब किताब

लिये अपने
जारी और रुके
हुए जरूरी
देश के सारे काम

एक गुलाम
‘उलूक’ का

अपने जैसे
गुलामों के लिये

है बस ये

गुलाम खयाल

आजाद पैगाम ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com