बहुत
लिख लिया
एक ही
मुद्दे पर
पूरे महीने भर
इस
सब से
ध्यान हटाते हैं
शेरो शायरी
कविता कहानी
लिखना लिखाना
सीखने सिखाने
की किसी दुकान
तक हो कर
के आते हैं
कई साल
हो गये
बकवास
करते करते
एक ही
तरीके की
कुछ नया
आभासी
सकारात्मक
बनाने
दिखाने
के बाद
फैलाने का भी
जुगाड़ अब
लगाते हैं
घर में
लगने देते हैं आग
घुआँ सिगरेट का
समझ कर पी जाते हैं
बची मिलती है
राख कुछ अगर
इस सब के बाद भी
शरीर
में पोत कर खुद ही
शिव हो जाते हैं
उसके
घर की तरफ
इशारे करते हैं
जाम
इल्जाम के बनाते हैं
नशा हो झूमे शहर
बने एक भीड़ पागल
इस सब के पहले
अपने घर के पैमाने
बोतलों के साथ
किसी मन्दिर की
मूरत के पीछे
ले जाकर छिपाते हैं
बरसात
का मौसम है
बादलों में चल रहे
इश्क मोहब्बत की
खबर एक जलाते हैं
कहीं से भी
निकल कर आये
कोई नोचने बादलों को
पतली गली
से निकल कर कहीं
किनारे
पर बैठ नदी के
चाय पीते हैं
और पकौड़े खाते हैं
ये कारवाँ
वो नहीं रहा ‘उलूक’
जिसे रास्ते खुद
सजदे के लिये ले जाते हैं
मन्दिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च की
बातें पुरानी हो गयी हैं
चल किसी
आदमी के पैरों में
सबके सर झुकवाते हैं ।
चित्र साभार: www.thecareermuse.co.in
लिख लिया
एक ही
मुद्दे पर
पूरे महीने भर
इस
सब से
ध्यान हटाते हैं
शेरो शायरी
कविता कहानी
लिखना लिखाना
सीखने सिखाने
की किसी दुकान
तक हो कर
के आते हैं
कई साल
हो गये
बकवास
करते करते
एक ही
तरीके की
कुछ नया
आभासी
सकारात्मक
बनाने
दिखाने
के बाद
फैलाने का भी
जुगाड़ अब
लगाते हैं
घर में
लगने देते हैं आग
घुआँ सिगरेट का
समझ कर पी जाते हैं
बची मिलती है
राख कुछ अगर
इस सब के बाद भी
शरीर
में पोत कर खुद ही
शिव हो जाते हैं
उसके
घर की तरफ
इशारे करते हैं
जाम
इल्जाम के बनाते हैं
नशा हो झूमे शहर
बने एक भीड़ पागल
इस सब के पहले
अपने घर के पैमाने
बोतलों के साथ
किसी मन्दिर की
मूरत के पीछे
ले जाकर छिपाते हैं
बरसात
का मौसम है
बादलों में चल रहे
इश्क मोहब्बत की
खबर एक जलाते हैं
कहीं से भी
निकल कर आये
कोई नोचने बादलों को
पतली गली
से निकल कर कहीं
किनारे
पर बैठ नदी के
चाय पीते हैं
और पकौड़े खाते हैं
ये कारवाँ
वो नहीं रहा ‘उलूक’
जिसे रास्ते खुद
सजदे के लिये ले जाते हैं
मन्दिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च की
बातें पुरानी हो गयी हैं
चल किसी
आदमी के पैरों में
सबके सर झुकवाते हैं ।
चित्र साभार: www.thecareermuse.co.in