उलूक टाइम्स: ब्लागर
ब्लागर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ब्लागर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

विनम्र श्रद्धांजलि ब्लागर निलॉय नील

जमघट
हर जगह
एक नहीं
कई सारे

एक जैसी
आकाँक्षाऐं
एक जैसी
महत्वाकाँक्षाऐं

एक सी
आवाजें
और शोर
तीखे संगीत
और गीतों के
सायों से कहीं
दूर बहुत दूर
कुकर्म की
उर्जा का जोर

सियार
एक नहीं
बहुत सारे
एक हो कर
कुचलने
को आमादा
तिमिर से
ढक कर
निचोड़ कर
हर नई भोर

कहाँ कहाँ
देखे कोई
क्या कुछ सोचे
क्या करे कोई

हताशा
अपने आस पास
बहुत नजदीक भी

हताशा
दूर बहुत दूर
उसी तरह की वही

क्रूरता
लालच
बेरहमी की
जय जयकार
से खुश हो रहे
लोग दर लोग

फिर से
एक बार
कुचल दी गई
हत्या कर
एक और
आवाज

बोलने
लिखने की
आजादी को
करने के
लिये कमजोर

पर रुक
नहीं पाये
कभी
इस तरह
दीवानों
के कारवाँ

उठ
खड़े होंगे
तेरे जैसे
एक नहीं
हजारों
हजारों
कई ओर

श्रद्धांजलि
नम आँखों
के साथ
निलॉय नील

शहादत
मारेगी
जरूर
तुम्हारी
बहुत जोर

उठेगी
आवाजें
उसी तरह
सत्य की
सत्य के लिये
बहुत सारी
पुरजोर

श्रद्धांजलि
और नमन
की आवाज है
आज हर ओर ।

चित्र साभार: www.patrika.com

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

ब्लागर होने का प्रमाणपत्र कहाँ मिल पायेगा कौन बतायेगा

चिट्ठाकार कौन है
कौन बतायेगा
खुद को समझने
लगे कोई यूँ ही
तो क्या
किया जायेगा
किसी को तो
बताना ही पढ़ेगा
या हर कोई यहाँ
बेलगाम हो जायेगा
बपौती मेरी नहीं है
मुझे मालूम है
पर सुनने में बुरा
सबसे पहले उसे
ही लगेगा
जो होगा नहीं और
इसी बात को लेकर
बात ही बात में
बड़बड़ायेगा
टिप्पणी एक
बहुत खतरनाक
चीज है
किसे पता है कौन देगा
और कहाँ दे जायेगा
जमघट होता है
दिखता है क्यों होता है
समझ में किसके
आ पायेगा
ब्लागर की ब्लागरी
का भूत कौन
उतार पायेगा
तूने कह तो दिया
सब सतह में है
तैरता हुआ जैसे
तेरे कहने पर
कौन मुहर लगायेगा
चिट्ठाकारी की इंदीरा
कौन होगी कौन मोदी
अपने को बतायेगा
‘उलूक’ तू यहाँ क्यों है
 तेरी समझ में
ना आने वाला है
ना आ पायेगा
तुझे तो बस फैलाना है
कहीं ना कहीं कुछ कूड़ा
डस्टबिन सरकारी
किसी सरकार का
तुझे कभी भी
उपलब्ध नहीं हो पायेगा
लिखता रह कुछ भी
कभी भी कहीं भी
बिना किसी प्रमाणपत्र
के तू कभी एक
ब्लागर नहीं हो पायेगा ।

 चित्र साभार: whatsupaggiehort.blogspot.com

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

आये आये देर से भी आये तो भी दुरुस्त ही आये आये तो सही चाहे कुछ भी ना कह जाये



अभी भी देर नहीं हुई 
देर कभी भी नहीं होती 
जब भी समझ में आ जाये तभी सुबह हो जाये 

पर
रुका कहाँ कहाँ जाये 
किसके लिये रुका जाये 

कहाँ
जरूरी है चलते चलना 

कहाँ
जरूरी है कुछ कुछ रुकना 
कुछ देर के लिये ही सही
बस बिना बात यूँ ही ठहर लिया जाये 

पूछा भी
किससे जाये कौन सही बताये 
कई पीढ़ियाँ
सामने ही अपने गुजरती चली जायें 

रुकी हुई कहीं भी कोई भी नहीं जो रस्ता दिखाये 

सब कुछ चलता ही चला जाये 
चलना ही सही रुकना है नहीं
किताब में भी लिखा नजर आये 
गिरता भी है कहीं कोई
किसी रास्ते पर कहीं कोई नहीं बताये 

फलसफा जिंदगी का
एक खोटा सिक्का
कभी सीधा गिरे कभी उल्टा हो जाये 

गलतफहमियाँ बनी रहें
जिसका जैसा मन कर वैसा समझ ले जाये 

कोई
उधर जा कर उसका पढ़े
कोई
इधर आ कर इधर का पढ़ ले जाये 

क्या फर्क पढ़ना है
किसी की समझ में अगर कुछ भी ना आ पाये 

आना जाना बना रहे
रोज ना भी सही दो चार दिन बाद ही आ जाये 
रुकना मना है

आ जाये अगर
तो याद करके बिना भूले भटके
चला भी जाये । 

चित्र साभार: www.instantfundas.com

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

जब नहीं दिखता है एक ‘ब्लागर’ कभी दूसरे ‘ब्लागर’ को बहुत दिनों तक

होता कुछ नहीं है वैसे
जब नहीं दिखता है
एक ब्लागर को
एक दूसरा ब्लागर यहाँ
जो दिखा करता था
कभी रोज ही
आता और जाता हुआ
यहाँ से वहाँ
और वहाँ से यहाँ
आना और जाना
तो चलता रहता है
इसका और उसके
शब्दों का वहाँ से यहाँ
और यहाँ से वहाँ
एक रोज आता जाता है
एक कभी आता है
एक कभी जाता है
रोज आने जाने
वाले को रोज
आने जाने वालों से
कोई परेशानी
नहीं होती है
परेशानी तब होती है
जब एक रोज
आने जाने वाला
अपने अगल बगल से
रोज आते जाते हुऐ को
बहुत दिनों से
आता हुआ नहीं
देख पाता है
दिन गुजरते हैं
रास्ते में कहीं पर
एक पुराना दिखता है
कहीं एक पुराने
के साथ एक
नया बिकता है
कहीं दो नयों के संग
एक पुराना दिखता है
ढूँढना चाहने वाले
ढूँढते भी हैं
एक का निशान
दूसरे के घर मिलता है
दूसरा किसी तीसरे
के घर कुछ ना कुछ
छोड़ कर चलता बनता है
अब लिखने लिखाने
की दुनियाँ है
यहाँ रोज एक नया
रिवाज कोई ना कोई
कहीं ना कहीं सिलता है
बहुत से नये दरवाजे
बंद होने से शुरु होते हैं
कहीं बहुत पुराना
दरवाजा भी
बहुत दिनों के
बाद खुलता है
याद आती है कभी
किसी की
दिखा करता था
अपने ही आस पास
रोज ही कहीं ना कहीं
बहुत दिनों से
कोई खबर ना कोई
पता मिलता है
देखिये और
ढूँढिये तो कहीं
कहाँ हैं जनाब
आजकल आप
आप ही को
ढूँढने के लिये
‘उलूक’ संदेश
एक लेकर कुछ यूँ
शब्दों के बियाबान
में निकलता है
होता कुछ नहीं है
वैसे जब कई कई
दिनों तक भी
एक ब्लागर को
एक दूसरे ब्लागर
का पता नहीं
भी चलता है ।

चित्र साभार: http://dlisted.com/

रविवार, 2 मार्च 2014

ब्लागिंग कर कमप्यूटर में डाल बाकी मत कर फालतू कोई बबाल

भाई जी
सुनिये जरा

एक
बहुत बड़े ने
लिखा है
बहुत ही कुछ
बड़ा बड़ा

बिना पढ़े
सोचे समझे
हर कोई होना
चाहता है
जहाँ पर
जा कर खड़ा

कुछ छोटों ने
भी लिखा है

लिखे को
तवज्जो
ना सही
लिखने वाले
को ही दे दीजिये
आशीर्वाद अपना

अब
मत कह देना
कह रहा है
फालतू  में ये
सब इतना

क्योंकि :)


जब गुलाब के

बाग में एक

जाते समय

काँटे तक नहीं
कोई देखते हो

पत्ते गिरे हुऐ

फूलों की तरफ
भी आशिकों की
तरह ही कुछ
देखते हो

खुश्बू नहीं भी

होती है कहीं भी
नाक बंद होगी
जैसा ही कुछ
बस सोचते हो

कभी तो

थोड़ी सी सही
नजरे इनायत
इधर भी
तो कीजिये 


बीबी रोज के 

खर्चे का पूछती
है हमेशा हिसाब


पान कभी खाते
नहीं देखा इसलिये
समझ में हमारे भी
कुछ कुछ कभी
आता है साहब

पर फिर भी
आप रोज ही
निकलते हो
पान वाली
की गली से
किनारे किनारे
लगा कर जैसे
गालों पर हाथ

पान वाली की तरफ
तिरछी नजर फेंकने
से कभी भी नहीं
देखा कि चूकते हो

सबको
सब नजर
आता है जनाब
चश्मा मोटा
जो लगाता है
आँखों पर साहब

सारा
आँखों देखा हाल
बताता है अपने आप

आने जाने को
कोई नहीं बोल
रहा है आपसे कभी

बस मेरे मोहल्ले
की तरफ कभी
पीठ करके ही सही
बैठिये तो जनाब

अच्छा लगेगा
कुछ कह
भी जायेंगे
बुरा ही सही
लिख गये तो
इससे ज्यादा
अच्छा नहीं

दुआ देगा एक
छोटा लिखने वाला
भी आपको

बड़े के बड़े बड़े
लिखे में सारे बड़े
पहुँचते हैं हमेशा

बहुत
अच्छा लगेगा
अगर कोई एक
छोटे के घर आ कर
कह देगा एक बात

लिखना
कोई बुरी
बात नहीं है
लिखा करो
अच्छा है

बहुत लिखना
खूब लिखना
कम से कम
अपने से ही
मुँह के अंदर
अंदर कर
लेने से
कोई बात ।

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

ब्लाग है या बाघ है

सपने भी
देखिये ना
कितने अजब
गजब सी चीजें
दिखाते हैं
जो कहीं
नहीं होता
ऎसी अजीब
चीजें पता नहीं
कहाँ कहाँ से
उठा कर लाते हैं
कल रात का
सपना कुछ
कुछ रहा है याद
अब किसी को
कैसे बतायेंं ये
अजीब सी बात
एक शहर जैसा
सपने में कहीं
नजर आ रहा था
घुसते ही
'ब्लाग नगर' का
बडा़ सा बोर्ड
दिखा रहा था
अंदर घुसे तो
जलसे जलूस
इधर उधर
जा रहे थे
ब्लाग काँग्रेस
ब्लाग सपा
जैसे झंडे
लहरा रहे थे
कुछ ब्लागर
कम्यूनिस्ट हैं
करके भी
समझा रहे थे
खेल का मैदान
भी दिखा जहाँ
ब्लाग ब्लाग का
खेल एक खेला
जा रहा था
टिप्पणियों का
होता है स्कोर
उस पर होती है
जीत और हार
ऎसा स्कोरबोर्ड
बता रहा था
हंसी आ रही थी
सुन सुन कर
जब सुना एक
ब्लागर ब्लाग
फिक्सिंग
करवा रहा था
टिप्पणियाँ किसी
ब्लाग की किसी
और को दे
आ रहा था
उसकी रिपोर्ट
करने दूसरा
ब्लागर ब्लाग थाने
में जा रहा था
ब्लाग पुलिस
को लाकर
घटनाक्रम की
एफ आई आर
की पोस्ट की
कापी बना
रहा था
आगे इसके
क्या हुआ
पता ही नहीं
चल पा रहा था
घड़ी का अलार्म
सुबह हो गयी
का बहुत शोर
मचा रहा था
सामने खड़ी
बिस्तरे के
श्रीमती मेरी
पूछ रही थी
मुझसे कि
तू सपने में
बाघ बाघ
जैसा क्यों
चिल्ला रहा था ।