उलूक टाइम्स: बड़बड़
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गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

पन्ना एक सफेद सामने से आया हुआ सफेद ही छोड़ देना अच्छा नहीं होता है

बकवास का
हिसाब रखने
वाले को
पता होता है

उसने कब
किस समय
कहाँ और
कितना कुछ
कहा होता है

इस जमाने
के हिसाब से
कुछ भी
कहीं भी
कभी भी
कितना भी
कह कर
हवा में
छोड़ देना
अच्छा होता है

पकड़ लेते हैं
उड़ती हवाओं
में से छोड़ी
गयी बातों को
पकड़ लेने वाले

बहुत सारे
धन्धों के
चलने में
इन्ही सारी
हवाओं का
ही कुछ
असर होता है

गिन भी लेना
चाहिये फेंकी
गयी बातों को
उनकी लम्बाई
नापने के साथ

बहुत कुछ होता है
करने के लिये
ऐसी जगह पर
सारा शहर जहाँ
हर घड़ी आँखें
खोल कर खड़े
होकर भी सोता है

सपने बना कर
बेचने वाले भी
 इन्तजार करते हैं
हमेशा अमावस
की रातों का

चाँद भी बेसुध
हो कर कभी
खुद भी सपने
देखने के
लिये सोता है

‘उलूक’
तबियत के
नासाज होने
का कहाँ
किसे अन्दाज
आ पाता है

कब बुखार में
कब नींद में
और
कब नशे में

क्या क्यों और
किसलिये
बड़बड़ाता
हुआ सा कहीं
कुछ जब
लिखा होता है ।

चित्र साभार: Clipart Library

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

कम बोला से बड़ बोला तक बम बोला हमेशा बम बम बोलता है

क्या होता है
अगर एक
कुछ भी
कभी भी
नहीं बोलता है

क्या होता है
अगर एक
हमेशा ही
कुछ ना कुछ
बोलता है

सालों गुजर
जातें हैं
खामोशी में
एक के कई

बस सन्नाटा
ही सन्नाटा
होता है
हर तरफ

कोई इधर
डोलता है
और
कोई उधर
डोलता है

बोलने वाला
बोलना शुरु
होता है

ये भी
बोलता है
और
वो भी
बोलता है

कुछ भी नहीं
कह पाने से
कुछ भी
कभी भी
कहीं भी
कह ले जाने
के बीच में

बहुत कुछ
होता है
जो अँधों की
आँखें खोलता है

बहरे
वैसे ही
हमेशा खुश
रहते है

अपने आप में
कोई बोलता है
या
नहीं बोलता है

लूला खुद ही
बोलना चाहता
है हमेशा
कुछ ना कुछ

ऊपर वाला
बेचारों का मुँह
ही नहीं खोलता है

दुनियाँ के दस्तूर
यही हैं ‘उलूक’

तुझे क्या करना
इस सब से जब

ये भी तुझे
‘उलूक’
और
वो भी तुझे
‘उलूक’
बोलता है ।

चित्र साभार : http://www.shutterstock.com/