बकवास का
हिसाब रखने
वाले को
पता होता है
उसने कब
किस समय
कहाँ और
कितना कुछ
कहा होता है
इस जमाने
के हिसाब से
कुछ भी
कहीं भी
कभी भी
कितना भी
कह कर
हवा में
छोड़ देना
अच्छा होता है
पकड़ लेते हैं
उड़ती हवाओं
में से छोड़ी
गयी बातों को
पकड़ लेने वाले
बहुत सारे
धन्धों के
चलने में
इन्ही सारी
हवाओं का
ही कुछ
असर होता है
गिन भी लेना
चाहिये फेंकी
गयी बातों को
उनकी लम्बाई
नापने के साथ
बहुत कुछ होता है
करने के लिये
ऐसी जगह पर
सारा शहर जहाँ
हर घड़ी आँखें
खोल कर खड़े
होकर भी सोता है
सपने बना कर
बेचने वाले भी
इन्तजार करते हैं
हमेशा अमावस
की रातों का
चाँद भी बेसुध
हो कर कभी
खुद भी सपने
देखने के
लिये सोता है
‘उलूक’
तबियत के
नासाज होने
का कहाँ
किसे अन्दाज
आ पाता है
कब बुखार में
कब नींद में
और
कब नशे में
क्या क्यों और
किसलिये
बड़बड़ाता
हुआ सा कहीं
कुछ जब
लिखा होता है ।
चित्र साभार: Clipart Library
हिसाब रखने
वाले को
पता होता है
उसने कब
किस समय
कहाँ और
कितना कुछ
कहा होता है
इस जमाने
के हिसाब से
कुछ भी
कहीं भी
कभी भी
कितना भी
कह कर
हवा में
छोड़ देना
अच्छा होता है
पकड़ लेते हैं
उड़ती हवाओं
में से छोड़ी
गयी बातों को
पकड़ लेने वाले
बहुत सारे
धन्धों के
चलने में
इन्ही सारी
हवाओं का
ही कुछ
असर होता है
गिन भी लेना
चाहिये फेंकी
गयी बातों को
उनकी लम्बाई
नापने के साथ
बहुत कुछ होता है
करने के लिये
ऐसी जगह पर
सारा शहर जहाँ
हर घड़ी आँखें
खोल कर खड़े
होकर भी सोता है
सपने बना कर
बेचने वाले भी
इन्तजार करते हैं
हमेशा अमावस
की रातों का
चाँद भी बेसुध
हो कर कभी
खुद भी सपने
देखने के
लिये सोता है
‘उलूक’
तबियत के
नासाज होने
का कहाँ
किसे अन्दाज
आ पाता है
कब बुखार में
कब नींद में
और
कब नशे में
क्या क्यों और
किसलिये
बड़बड़ाता
हुआ सा कहीं
कुछ जब
लिखा होता है ।
चित्र साभार: Clipart Library