उलूक टाइम्स: बड़बड़ा
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मंगलवार, 17 जुलाई 2012

सोच दिखती नहीं फैल जाती है

चल रहा था
मुस्कुरा रहा था
हाथ की अंगुलियां
हिलाये जा रहा था
बड़बड़ा रहा था
उसके आस पास
जबकि कोई भी
दूर दूर तक कहीं
नजर नहीं आ रहा था
ये सब मैं उसके
सामने से देखता
हुआ आ रहा था
बगल से जैसे ही
वो निकला
मेरा दिमाग ऎसे चला
जैसे चलने वाली मशीन
का बटन किसी ने हो
तुरंत ही दबा दिया
मुस्कुरा रहा था
पक्का कोई अच्छी
खबर अभी अभी
सुन कर आ रहा था
हाथ हिला रहा था
पक्का क्या करने
जा रहा था
उसका प्लौट
अपने सामने से
देख पा रहा था
बड़बड़ा रहा था
पक्का शादी शुदा
होगा बता रहा था
जो कुछ बीबी से
कह नहीं पा रहा था
कह ले जा रहा था
अरे अरे देखिये
उसको तो जो भी
हुऎ जा रहा था
ये सब मैं काहे
सोच ले जा रहा था
अच्छा हुआ इस सब
के बीच मेरे अपने
सामने से कोई नहीं
दूर दूर तक आ रहा था।