उलूक टाइम्स: लात
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रविवार, 31 दिसंबर 2023

‘उलूक’ बदतमीज है गांधी गांधी करता है मौक़ा लगे उसे एक लात कभी मार कर आयें



घास ना भी खाएं कोई ऐसी बात नहीं है
बस जुगाली जरूर करते चले जाएं
दांत खट्टे कर भी दिए हों किसी ने
जरा सा भी ना घबराएं थोड़ी हवा चबाएं

दीमकों ने खोखली कर भी दी हो
चारों तरफ की सारी कुर्सियां
बस मुस्कुराएँ
पालथी मार कर बैठने की जमीन पर करें कोशिश
बस एक दरी घर से ले आयें

हो रहा है हो रहा है बहुत कुछ हो रहा है ही बस कहें
देखें सुने और केवल यही फैलाएं
बातें बनाना सीखने सिखाने के स्कूल कालेज खोलें
खुद भी इनाम लें मशहूर हो जाएँ

करें कुछ भी घर में अपने गली में बस शेर हो जाएँ
शेर के ऊपर भौंके उसे कुत्ता बनाएं
सर्वश्रेष्ठ होने का ढिंढोरा खुद भी पीटे
जेबें भर कर पिटे पिटवाये भी इस काम में लगाएं

ज़माना कम से कम कपड़ों का है रुमाल पहनें
पर घर घर एक हम्माम जरूर बनवाएं
शेर और शायरी करते रहें मुहावरे याद करें
और लोगों को बुला कर कहीं मंच से सुनाएँ

दूध से धुले लोग हैं सम्मानित हैं
इज्जत उतारें उतारने दें
परेशान ना होवें खिलखिलाएं
‘उलूक’ बदतमीज है
गांधी गांधी करता है
मौक़ा लगे उसे एक लात
कभी मार कर आयें |

चित्र साभार https://www.dreamstime.com/

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

परिभाषायें बदल देनी चाहिये अब चोर को शरीफ कह कर एक ईमानदार को लात देनी चाहिये

सारे
शरीफ हैं

और

एक भीड़
हो गयी है

शरीफों की

तू
नहीं है
उसमें

और
तुझे
अफसोस
भी नहीं
होना चाहिये

किसलिये
होना है
होना ही
नहीं चाहिये

किसलिये
लपेट कर
बैठा है

कुछ कपड़े

ये
सोच कर


ढक लेंगे
सारा सब कुछ

नंगों का
कुछ नहीं
होना है

नंगा
भगवान होता है

होना भी चाहिये

एक
मन्दिर में

मन्दिर
वालों के
पाले हुऐ

कुछ
कबूतरों ने
बर्थडे
केक काटा

जन्मदिन
होता है
होना है

होना भी चाहिये

मन्दिर
प्राँगण में
शोर मचाया

कुछ
लोगों
ने देखा 

कुछ
बुदबुदाया

और 
इधर उधर
हो गये
उनमें
मैं भी एक था

आप मत मुस्कुराइये

लिखने
लिखाने से 
कभी कुछ
हुआ है क्या 

जो अब होना चाहिये

हिम्मत
होती ही
नहीं है 
नंगई
लिखने की

नंगों के
बीच में
रहते हैं
 शराफत से
कुछ नंगे

शरीफ
भी कुछ
हम जैसे

शराफत से
नंगई
छिपाते हुऐ

कुछ
कहना है

कुछ नहीं
कहना है

कहना भी नहीं चाहिये

सारा
सब कुछ
लिख भी
दिया जाये

तो भी क्या होना है

सबने
अपनी अपनी
औकात का रोना है

लिखना पढ़ना
पढ़ना लिखना

दो चारों के बीच
ही तो होना है

घर घर में
लगे हैं
ग़णेश जी के चूहे

उन्होने ही
सारा
सब कुछ
खोद देना है

‘उलूक’
गिरते
मकान को
छोड़ने की
सोचने से पहले

गणेश
की भी
और
उसके
चूहों की भी

जय जयकार
करते हुऐ

अब सबको रोना है

रोना भी चाहिये।

चित्र साभार: http://paberish.me/clip-art-of-owl-on-book/clip-art-of-owl-on-book-read-birthday-cake-ideas

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

करने वालों को लात नहीं करने वालों के साथ बात सिद्धान्ततह ही हो रहा होता है

बेवकूफों
की
दिवाली

समझदारों
की
अमावस
काली

बाकी
लेना देना
अपनी
जगह पर

होना
ना होना
होने
ना होने
की
जगह पर
पहले
जैसा ही
होना
होता है
हो रहा
होता है

अवसरवाद
को
छोड़ कर
कोई भी वाद
वाद नहीं
होता है
किसे
इस बात
से मतलब
हो रहा
होता है

किसे
समझाये
आदमी
इस
बात को
जहाँ
आदमी ही
आदमी को
खुद
खुरचता
और
खुद ही
रो रहा
होता है

पानी नहीं
होता है
फिर भी
कोई भी
किसी
को भी
खुले आम
धो रहा
होता है

सारे
हम्माम
बुला रहे
होते हैं
सब कुछ
उतारे
हुओं
को ही
फिर
किस लिये
कोई
उतारा हुआ
कुछ
ओढ़ कर
उधर
घुसने
के लिये
रो रहा
होता है

पढ़ने
पढा‌ने में
किस लिये
लगे हुए हैं
नासमझ लोग

जब
समझदार
कभी भी
नहीं
पढ़ाने वाला
पढा‌ई लिखाई
कराने वालों
की लाईन
बनाने के
लिये लाईने
बो रहा होता है

केवल एक
दो हजार
के नोट
को
निकालने
में लग
रहे होते
हैं जहाँ
सारे
समझदार लोग

लाईन लगा
कर एक
बेवकूफ
ही होता
है जो
हजारों
दो हजार
के नोटों की
लाईन
पर लाईन
अपने घर पर
कहीं लगा कर
सो रहा होता है

समझने
में लगा है
देश
समझदारी
समझदार की
जो हो
रहा होता है
वो हो
रहा होता है

कोई
नया भी नहीं
हो रहा होता है
घर मोहल्ले में
हर दिन
हर समय
हो रहा होता है
चोर के
हाथ में
चाबियाँ
खजानों
की दिख
रही होती हैं

अंधा ‘उलूक’
अलीबाबा के
खुल जा
सिमसिम
मंत्र को
कागज में
लिख लिख
कर कहीं
बिना बताये
जमीन में
बो रहा
होता है

रोना बन्द
हो रहा
होता है
सभी रोने
वालों का
छातियाँ पीटने
वालों का
काला सोना
सफेद ‘सोना’
हो रहा होता है

क्रांतिकारियों
के चित्र और
कहानियों का
उजाला लिये
हाथ में
सर पीटता
अँधेरा कहीं
कोने में रो
रहा होता है ।

चित्र साभार: Dragon Alley Journals - WordPress.com

शनिवार, 26 नवंबर 2011

थप्पड़

थप्पड़ घूंसे
और लात
बहुत पुरानी
तो नहीं
कुछ समय
पहले पैदा
हुवी संस्कृति
पूर्ण रूपेण
भारतीय
दूसरी तरफ
अन्ना
सफेद टोपी
और
उनकी आरती
वो भी पूर्ण
भारतीय
दोनों में
पब्लिक का
जबर्दस्त
देख लो ना
योगदान
ओ कदरदान
भाषण वक्तव्य
समाचार
और टी वी
के प्रोग्राम
टी आर पी
बढ़ाने के
नित नवीन
प्रयोग
इसे क्या
नहीं कहेंगे
केवल एक
संयोग
कि नहीं
समझ पाया
आज तक
कोई
भारत का
भीड़ योग
अन्ना आता है
भीड़ लाता है
सब शान्ति से
निपट जाता है
अन्ना जाता है
भीड़ ले जाता है
और परदा
गिरते ही
बेचारा
एक नेता
मुफ्त में
थप्पड़ खा
जाता है ।