उलूक टाइम्स: भाषण
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मंगलवार, 19 मार्च 2019

इस होली पर दिखा देता हजार रंग गिरगिट क्या करे मगर चुनाव उसके सामने से आ जाता है

होली

खेल
तो सही

थोड़ी सी

हिम्मत की
जरूरत है

सात रंग
तेरे
बस में नहीं

तेरी
सबसे बड़ी
मजबूरी है

बातों
में तेरे
इंद्र भी
दिखता है

धनुष भी

तू
किसी तरह
भाषण में
ले आता है

इन्द्र धनुष
लेकिन
कहीं भी

तेरे
आस पास
दूर दूर तक
नजर
नहीं आता है

रंग ओढ़ना

कोई
तुझसे सीखे

इसमें कोई
शक नहीं है

होने भी
नहीं देगा
तू

तेरे
शातिर
होने का

असर
और पता

मेरे
घर में

मेरे
अपनों की

हरकत से
चल जाता है

कुत्तों
की बात

इन्सानों
के बीच में

कहीं पर
होने लगे

अजीब
सी बात
हो जाती है

आठवाँ
आश्चर्य
होता है

जब
आदमी भी

किसी
के लिये

कुत्ते
की तरह
भौंकना

शुरु
हो जाता है

सारे रंग
लेकर
चले कोई
उड़ाने
भी लगे

किसे
परेशानी है

घर का
मुखिया
ही बस

एक लाल
रंग के लिये

वो भी
पर्दा
डाल कर

पीछे
पड़ जाता है

तो
रोना आता है

मुबारक
हो होली

सभी
चिट्ठाकारों को

टिप्पणी
करने
वालों

और
नहीं करने
वालों को भी

टिप्पणी
के साथ
मुफ्त
टिप्पणी
के ऑफर
के साथ

इन्सान
ही होता है

गलती
से चिट्ठा भी
लिखने लगता है

चिट्ठाकारों
में शामिल
भी हो जाता है

‘उलूक’
को तो
वैसे भी

नहीं
खेलनी है
होली

इस होली में

बिरादरी में
किसी का
मर जाना

त्यौहार ही
उठा
ले जाता है ।

चित्र साभार:
https://www.theatlantic.com/

मंगलवार, 31 मार्च 2015

कोई नयी कहानी नहीं अपना वही पुराना रोना धोना ‘उलूक’ आज फिर सुना रहा था


लाऊडस्पीकर से भाषण बाहर शोर मचा रहा था

अंदर कहीं मंच पर एक नंगा 
शब्दों को खूबसूरत कपड़े पहना रहा था

अपनी आदत में शामिल कर चुके
इन्ही सारे प्रपंचों को रोज की पूजा में 

एक भीड़ का बड़ा हिस्सा घंटी बजाने
प्रांंगण में ही बने एक मंदिर की ओर आ जा रहा था

कविताऐं शेर और गजल से ढकने में माहिर अपने पापों को
आदमी आदमी को इंसानियत का पाठ सिखा रहा था

एक दिन की बात हो
तो कही जाये कोई नयी बात है 
आज पता चला 
फिर से एक बार ढोल नगाड़ों के साथ
एक नंगा हमाम में नहा रहा था

‘उलूक’ कब तक करेगा चुगलखोरी
अपनी बेवकूफियों की खुद ही खुद से

नाटक चालू था कहीं
जनाजा भी तेरे जैसों का
पर्दा खोल कर निकाला जा रहा था

तालियांं बज रही थी वाह वाह हो रही थी
कबाब में हड्डी बन कर
कोई कुछ नहीं फोड़ सकता किसी का

उदाहरण एक पुरानी कहावत का
पेश किया जा रहा था

नंगों का नंगा नाच नंगो को
अच्छी तरह समझ में आ रहा था ।

चित्र साभार: pixshark.com

बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

निपट गये सकुशल कार्यक्रम

गांंधी जी
और शास्त्री जी

दो एक दिन से
एक बार फिर से 

इधर भी और उधर भी
नजर आ रहे थे

कल का पूरा दिन
अखबार टी वी समाचार
कविता कहानी और
ब्लागों में छा रहे थे

कहीं तुलना हो रही थी
एक विचार से
किसी को इतिहास
याद आ रहा था

नेता इस जमाने का
भाषण की तैयारी में
सत्य अहिंसा और
धर्म की परिभाषा में
उलझा जा रहा था

सायबर कैफे वाले से
गूगल में से कुछ
ढूंंढने के लिये गुहार
भी लगा रहा था

कैफे वाला उससे
अंग्रेजी में लिख कर
ले आते इसको

कहे जा रहा था

स्कूल के बच्चों को भी
कार्यक्रम पेश करने
को कहा जा रहा था

पहले से ही बस्तों से
भारी हो गई
पीठ वालो का दिमाग
गरम हुऎ जा रहा था

दो अक्टूबर की छुट्टी
कर के भी सरकार को
चैन कहाँ आ रहा था

हर साल का एक दिन
इस अफरा तफरी की
भेंट चढ़ जा रहा था

गुजरते ही जन्मोत्सव
दूसरे दिन का सूरज
जब व्यवस्था पुन:
पटरी पर  होने का
आभास दिला रहा था

मजबूरी का नाम
महात्मा गांंधी होने का
मतलब एक बार फिर
से समझ में आ रहा था ।

शनिवार, 28 जुलाई 2012

हिन्दी कुत्ता अंग्रेजी में भौंका

बहुत सारे कुत्ते
अगर भौंकना
शुरु हो जायें
एक साथ

क्या कोई
बता सकता है
कि हिंदी में
भौंक रहा है
या अंग्रेजी में

लेकिन
कभी कभी
ऎसा भी
देखने में
आ जाता है
हिंदी भाषी
एक कुत्ता
अचानक
अंग्रेजी में
भौंकना शुरु
हो जाता है

हाँ
ऎसा भी बस
तभी देखने
में आता है
जब वो
हवाई जहाज
से इधर
उधर जाता है

अब आप कहेंगे
कुत्ता था
ये समझ
में आता है
भौंक रहा था
वो भी समझ में
आता है

हिन्दी में
भौंका था
या
अंग्रेजी में था
ये आप को कैसे
पता चल पाता है

अब जनाब
क्या
सारी की
सारी बात
हम ही
आपको
बताते
चले जायेंगे

कुछ बातें
आप अपने
आप भी
पता नहीं
लगायेंगे

पता लगाईये
और
हमें भी बताइये

कुछ पैसा
खर्च वर्च
कर जाईये

हवाई
जहाज से
यात्रा कर
के आईये

आप जरूर
किसी ना
किसी ऎसे
कुत्ते से
टकरायेंगे

जमीन पर
उसे हिन्दी
में भौंकता
हुआ पायेंगे

और
हवाई जहाज
के उड़ते ही
आसमान मे

आप
आश्चर्य चकित
हो जायेंगे

जब उसी
कुत्ते को

अंग्रेजी में
भाषण
फोड़ता
हुआ पायेंगे । 

शनिवार, 26 नवंबर 2011

थप्पड़

थप्पड़ घूंसे
और लात
बहुत पुरानी
तो नहीं
कुछ समय
पहले पैदा
हुवी संस्कृति
पूर्ण रूपेण
भारतीय
दूसरी तरफ
अन्ना
सफेद टोपी
और
उनकी आरती
वो भी पूर्ण
भारतीय
दोनों में
पब्लिक का
जबर्दस्त
देख लो ना
योगदान
ओ कदरदान
भाषण वक्तव्य
समाचार
और टी वी
के प्रोग्राम
टी आर पी
बढ़ाने के
नित नवीन
प्रयोग
इसे क्या
नहीं कहेंगे
केवल एक
संयोग
कि नहीं
समझ पाया
आज तक
कोई
भारत का
भीड़ योग
अन्ना आता है
भीड़ लाता है
सब शान्ति से
निपट जाता है
अन्ना जाता है
भीड़ ले जाता है
और परदा
गिरते ही
बेचारा
एक नेता
मुफ्त में
थप्पड़ खा
जाता है ।