लाऊडस्पीकर से भाषण बाहर शोर मचा रहा था
अंदर कहीं मंच पर एक नंगा
शब्दों को खूबसूरत कपड़े पहना रहा था
अपनी आदत में शामिल कर चुके
इन्ही सारे प्रपंचों को रोज की पूजा में
एक भीड़ का बड़ा हिस्सा घंटी बजाने
प्रांंगण में ही बने एक मंदिर की ओर आ जा रहा था
कविताऐं शेर और गजल से ढकने में माहिर अपने पापों को
आदमी आदमी को इंसानियत का पाठ सिखा रहा था
एक दिन की बात हो
तो कही जाये कोई नयी बात है
आज पता चला
फिर से एक बार ढोल नगाड़ों के साथ
एक नंगा हमाम में नहा रहा था
‘उलूक’ कब तक करेगा चुगलखोरी
अपनी बेवकूफियों की खुद ही खुद से
नाटक चालू था कहीं
जनाजा भी तेरे जैसों का
पर्दा खोल कर निकाला जा रहा था
पर्दा खोल कर निकाला जा रहा था
तालियांं बज रही थी वाह वाह हो रही थी
कबाब में हड्डी बन कर
कोई कुछ नहीं फोड़ सकता किसी का
उदाहरण एक पुरानी कहावत का
पेश किया जा रहा था
नंगों का नंगा नाच नंगो को
अच्छी तरह समझ में आ रहा था ।
चित्र साभार: pixshark.com