जब भी
कभी
कभी
सैलाब आता है
लिखना भी
चाहो
अगर कुछ
अगर कुछ
नहीं
लिखा जाता है
लहरों
के ऊपर से
उठती हैं लहरें
के ऊपर से
उठती हैं लहरें
सूखी हुई सी कई
बस सोचना सारा
पानी पानी सा
हो जाता है
इसकी
बात से
बात से
उठती है जरा
सोच एक नयी
उसकी याद
आते ही सब
पुराना पुराना
सा हो जाता है
अचानक
नींद से
नींद से
उठी दिखती है
सालों से सोई
हुई कहीं की
एक भीड़
एक भीड़
फिर से
तमाशा
तमाशा
कठपुतलियों का
जल्दी
ही कहीं
होने का आभास
आना शुरू
हो जाता है
जंक
लगता नहीं है
लगता नहीं है
धागों में
पुराने से पुराने
कभी भी
पुराने से पुराने
कभी भी
उलझी हुई
गाँठों को सुलझाने में
मजा लेने वालों का
मजा दिखाना
मजा दिखाना
शुरु हो जाता है
पुरानी शराबें
खुद ही चल देती हैं
नयी बोतल के अन्दर
कभी
इस तरह भी
‘उलूक’
शराबों के
मजमें
लगे हुऐ
जब कभी
जब कभी
एक
लम्बा जमाना सा हो जाता है ।
लम्बा जमाना सा हो जाता है ।
चित्र साभार: recipevintage.blogspot.com