एक चिट्ठाकार
का चले जाना
कोई नयी बात
नहीं होती है
सभी
जाते हैं
जाना ही
होता है
चिट्ठेकार का
कोई बिल्ला
ना आते समय
चिपकाया जाता है
ना जाते समय
कुछ चिट्ठेकार
जैसा बताने वाला
चिपकाया हुआ
उतारा ही जाता है
तुम भी
चल दिये
चिट्ठे
कितना रोये
पता नहीं
चिट्ठों में
दिखता भी
नहीं है
चिट्ठों की
खुशी गम
हंसना या रोना
कुछ चिट्ठे
कम हो जाते हैं
कुछ चिट्ठे
गुम हो जाते हैं
कुछ गुमसुम
हो जाते हैं
विश्वास होता
है किसी को
कि ऐसा ही
कुछ होता है
इसी विश्वास
के कारण
निश्वास
भी होता है
आना जाना
खोना पाना
तो लगा रहता है
तेरे आने
के दिन
क्या हुआ
पता नहीं
चिट्ठों का
इतिहास जैसा
अभी किसी
चिट्ठेकार ने
कहीं लिख
दिया हो
ऐसा भी
दिखा नहीं
जाने के दिन
टिप्पणी नहीं
भी मिलेगी
तो भी
श्रद्धांजलि
जगह जगह
इफरात से
एक नहीं
कई बार
चिट्ठे में ही नहीं
कई जगह
दीवार दर
दीवार मिलेगी
बहुत सारे
चिट्ठेकारों
में से एक
अब बहुत
बड़ा कह लूँ
कम से कम
जाने के बाद
तो बड़ा
और
बड़े के आगे
बहुत लगा
लेना
जायज हो
ही जाता है
दुनियाँ की
यादाश्त
वैसे भी
बड़ी बड़ी
बातों को
थोड़ी देर
तक जमा
करने की
होती है
चिट्ठे
चिट्ठाकारी
चिट्ठाकार
जैसा
बहुत सारा
बहुत कुछ
गूगल में ही
गडमगड
होकर
गजबजा
जाता है
‘उलूक’
तू भी आदत
से बाज नहीं
आ पाता है
तुझे और तेरी
उलूकबाजी
को उड़ने
का हौसला
देने वाले के
जाने के दिन
भी तुझसे कुछ
उलटा सीधा
कहे बिना
नहीं रहा
जाता है
‘अविनाश जी
वाचस्पति’
अब नहीं रहे
इस दुनियाँ में
थोड़ी देर के
लिये मौन
रहकर
श्रद्धा से सर
झुका कर
श्रद्धांजलि
देने के लिये
दोनो हाथ
आकाश
की ओर
क्यों नहीं
उठाता है ।
चित्र साभार: nukkadh.blogspot.com
का चले जाना
कोई नयी बात
नहीं होती है
सभी
जाते हैं
जाना ही
होता है
चिट्ठेकार का
कोई बिल्ला
ना आते समय
चिपकाया जाता है
ना जाते समय
कुछ चिट्ठेकार
जैसा बताने वाला
चिपकाया हुआ
उतारा ही जाता है
तुम भी
चल दिये
चिट्ठे
कितना रोये
पता नहीं
चिट्ठों में
दिखता भी
नहीं है
चिट्ठों की
खुशी गम
हंसना या रोना
कुछ चिट्ठे
कम हो जाते हैं
कुछ चिट्ठे
गुम हो जाते हैं
कुछ गुमसुम
हो जाते हैं
विश्वास होता
है किसी को
कि ऐसा ही
कुछ होता है
इसी विश्वास
के कारण
निश्वास
भी होता है
आना जाना
खोना पाना
तो लगा रहता है
तेरे आने
के दिन
क्या हुआ
पता नहीं
चिट्ठों का
इतिहास जैसा
अभी किसी
चिट्ठेकार ने
कहीं लिख
दिया हो
ऐसा भी
दिखा नहीं
जाने के दिन
टिप्पणी नहीं
भी मिलेगी
तो भी
श्रद्धांजलि
जगह जगह
इफरात से
एक नहीं
कई बार
चिट्ठे में ही नहीं
कई जगह
दीवार दर
दीवार मिलेगी
बहुत सारे
चिट्ठेकारों
में से एक
अब बहुत
बड़ा कह लूँ
कम से कम
जाने के बाद
तो बड़ा
और
बड़े के आगे
बहुत लगा
लेना
जायज हो
ही जाता है
दुनियाँ की
यादाश्त
वैसे भी
बड़ी बड़ी
बातों को
थोड़ी देर
तक जमा
करने की
होती है
चिट्ठे
चिट्ठाकारी
चिट्ठाकार
जैसा
बहुत सारा
बहुत कुछ
गूगल में ही
गडमगड
होकर
गजबजा
जाता है
‘उलूक’
तू भी आदत
से बाज नहीं
आ पाता है
तुझे और तेरी
उलूकबाजी
को उड़ने
का हौसला
देने वाले के
जाने के दिन
भी तुझसे कुछ
उलटा सीधा
कहे बिना
नहीं रहा
जाता है
‘अविनाश जी
वाचस्पति’
अब नहीं रहे
इस दुनियाँ में
थोड़ी देर के
लिये मौन
रहकर
श्रद्धा से सर
झुका कर
श्रद्धांजलि
देने के लिये
दोनो हाथ
आकाश
की ओर
क्यों नहीं
उठाता है ।
चित्र साभार: nukkadh.blogspot.com