उलूक टाइम्स

शनिवार, 19 सितंबर 2009

पैंतरे


चाँदनी में मिलने की बात
अब करने लगे हैं वो ।
जान गये हैं शायद
दिये से घबराने लगा हूँ मैं ।।


साँथ उड़कर समंदर पार
करने का वादा भी है ।
मेरे पर कटने की खबर
भी मिल गयी है उनको ।। 


अपने गेसू मे उलझा के
आँखों में डुबोने को हाँ कह गये ।
जालिम ने महसूस कर लिया
मेरा खुद से उलझना शायद ।।


वो हँसते खिलखिलाते हैं
शहनाईयों सा अब ।
मेरे कानों मे अब तो
मेरी आवाज ही नही जाती ।।


सालों इसी बात का
इंतजार किया उसने ।
अब जाकर कहीं बरबादी
का नज़ारा लूंगी जीभर ।।

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

अब खुश नजर नहीं आता


आँखों में इतनी धुंध छायी है कि बस
आइने में अपना अक्स नज़र नहीं आता ।

आने वाले पल के मंज़र में खोये हो तुम
मुझे तो बीता कल नज़र नहीं आता ।

रात की बात करते हो सोच लिया करना
मुझे दिन के सूरज में नज़र नहीं आता ।

तेरी बैचेनी को महसूस तो किया है मैने
चाहता भी हूं पर देखा ही नहीं जाता ।

भटकने लगे हो अब कहते कहते भी तुम
कहना आता है तुमसे कहा ही नहीं जाता ।

अपनी रोनी सूरत से ऊब चला हूं अब
तुम खिलखिलाते रहो मुझे रोना नहीं आता ।

कैसे कह दूं तमन्ना है अब सिर्फ मर जाने की
कुछ सुहानी यादें जिनको छोडा़ ही नहीं जाता ।

अपने वीरान शहर की बात कुछ करने की नहीं अब
बसने तेरे शहर आ भी जाता पर अब नहीं आता ।

बस इंतज़ार है अब तेरे इस शहर से गुज़रने का
तब ना कहना तुम्हें तो ठहरना ही नहीं आता ।

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

आपदा

बहते
पानी का 
यूं ठहर जाना

ठंडी
बयार की 
रफ्तार
कम हो जाना

नीले
आसमान का 
भूरा हो जाना

चाँद
का निकलना

लेकिन
उस 
तरह से नहीं

सूरज
की गर्मी में 
पौंधों
का
मुरझाना

ग्लेशियर
का 
शरमा के 
पीछे हट जाना

रिम झिम
बारिश 
का
रूठ जाना

बादल
का फटना

एक गाँव
का 
बह जाना

आपदा
के नाम 
पर
पैसा आना

अखबार
के लिये 
एक
खबर बन जाना

हमारा तुम्हारा 
गोष्ठी
सम्मेलन 
करवाना

नेता जी
का 
कुर्सी मेंं आकर के 
बैठ जाना

हताहतों
के लिये 
मुआवजे
की 
घोषणांं कर जाना

पूरे गांव
मे 
कोइ नहीं बचा 

ये
भूल जाना

आपदा प्रबंधन 
पर गुर्राना

ग्लोबल वार्मिंग
पर 
भाषण दे जाना

हेलीकोप्टर 
से आना
हेलीकोप्टर 
से जाना

राजधानी
वापस 
चले जाना

आँख मूंद कर 
सो जाना

अगले साल 
फिर आना ।

बुधवार, 16 सितंबर 2009

सब्र

गिरते मकान को चूहे भी छोड़ देते सभी ।
अब इस दिल में कोइ नहीं रहता यारो ।।

चार दिन की चाँदनी बन के आयी थी वो कभी ।
उन भीगी यादों को अब कहां सम्भालूं यारो ।।

खून से सींच कर बनाया था इस दिल को आशियां ।
अंधेरा मिटाने को फिर दिल जला दिया यारो ।।

अपने हालात पे अब यूं भी रोना नहीं आता ।
जब था रोशन ये मकां बहुत नाम था इसका यारो ।।

सजने सवरने खुशफहम रहने के दिन उनके हैं अभी ।
वो जन्नत में रहें दोजख से ये दिखता रहे यारो ।।

अपनी आहों से सवारूंगा फिर से ये मकां ।
तुम भी कुछ मदद कुछ दुआ करो यारो ।।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

कम्प्यूटर / आदमी


कमप्यूटर

कुछ
वर्षों मे
संवेदनशील
भी
हो जायेगा 

क्योंकी
आदमी
अब
अपनी

संवेदनाए
खत्म कर 
चुका है 

वास्तव
में
कमप्यूटर
हो गया है ।