उलूक टाइम्स

रविवार, 27 मई 2012

एहसानमंद

एक बूढ़ा और
उसकी बुढ़िया
के एहसानो के
तले मैंने जब
अपने को गले
गले तक दबा
हुआ पाया
कुछ तो
करना ही
चाहिये उनके
लिये मेरे मन
में विचार
एक आया
हालत उनकी
देख कर
देखा नहीं
जा रहा था
एक चल नहीं
पा रहा था
दूसरे से
दाँत टूटने
के कारण
खाया ही
नहीं जा
रहा था
पैसे बच्चों
को देने से
बच्चे बिगड़
जाते हैं
किताबों में
लिखा है
आस पास
में उदाहरण
भी बहुत
मिल जाते हैं
बूढे़ लोग भी
उम्र के इस
पडा़व में
आकर बच्चे
जैसे ही तो
हो जाते हैं
ऎसा करता हूँ
समुद्र के
किनारे से
सौ कोस
दूर टापू
में एक
बडा़ सा
महल
बनाता हूँ
दोनो के
आने जाने
के लिये
दो दो
हाथी भी
रख कर
आता हूँ
खाने के
लिये एक
जहाज भर
कर अखरोट
पहुँचाता हूँ
कुछ धन
उनके नाम
से अपने
खाते में
हर महीने
जमा
करवाता हूँ
उपर वाला
जैसे ही उनको
बुलाता है
मैं समुद्र किनारे
एक मंदिर
बनवाता हूँ
उसमें दोनो
की मूर्ति
लगवाकर
माला फूलों की
पहनाता हूँ ।

शनिवार, 26 मई 2012

वकील साहब काश होते आज

मेरे शहर अल्मोड़ा
की लाला बाजार

ऎतिहासिक शहर
बुद्धिजीवियों की
बेतहाशा भरमार

बाजार में लगा
ब्लैक बोर्ड पुराना

नोटिस बोर्ड की
तरह जाता है
अभी तक भी जाना

छोटा शहर था
हर कोई शाम को
बाजार घूमने जरूर
आया करता था

लोहे के शेर से
मिलन चौक तक
कुछ चक्कर जरूर
लगाया करता था

शहर
का आदमी
कहीं ना कहीं
दिख ही जाता था

शहर की
गतिविधियाँ
यहीं आकर पता
कर ले जाता था

मेरे शहर में
मौजूद थे
एक वकील साहब

वकालत
करने वो कहीं
भी नहीं जाते थे
हैट टाई लौंग कोट
रोज पहन कर
बाजार में चक्कर
लगाते चले जाते थे

बोलने
में तूफान
मेल भी साथ
साथ दौड़ाते थे
लकडी़ की छड़ी
भी अपने हाथ
में लेके आते थे

कमप्यूटर उस
समय नहीं था
कुछ ना कुछ
बिना नागा
ब्लैक बोर्ड
पर चौक
से लिख
ही जाते थे

उस समय
हमारी समझ
में उनका
लिखा
कुछ भी
नहीं आता था

पर
लिखते गजब
का थे उस समय
के बुजुर्ग लोग
हमें बताते थे

बच्चे
उनको
पागल
कह कर
चिढ़ाते थे

आज
वकील साहब
ना जाने
क्यों याद
आ रहे हैं

भविष्य
की कुछ
टिप्पणियां
दिमाग
में आज
ला रहे हैं

मास्टर
साहब एक
कमप्यूटर
पर रोज
आया  करते थे

कुछ ना कुछ
स्टेटस पर
लिख ही
जाया करते थे।


शुक्रवार, 25 मई 2012

नंदू और पैट्रोल

पैट्रोल
के दाम
जब से
हैं बढे़

मुझे
अभी तक
नहीं दिखाई
दिये किसी के
कान खड़े

कल शाम
मैंने सोचा
आज
जब मैं
सड़क के
रास्ते से जाउंगा
गाड़ियांं स्कूटर
मोटरसाईकिल
सब को
गायब पाउंगा

पर सारे
छोरा छोरी
लोग
और जोर के
फर्राटे की
आवाज आज
बना रहे थे
कल तक
एक दो
चक्कर
टकराते थे
आज
सात आठ
चक्कर
लगा रहे थे

स्कूल
पहुंचने पर
किसी ने भी
पैट्रोल की
बात भी नहीं की
कारें सभी
लोगों ने
लाकर
मैदान में
आज जरूर
खड़ी की

ट्रक ट्राँस्पोर्ट
गाड़ियोंं
वाले नेता
जगह जगह
भीड़ लगवा रहे थे

पुतले सरकार
के बना बना कर
आग भी लगाते
जा रहे थे

पैट्रोल की
बात पर
किसी ने
जब मुझे
मुँह नहीं
कहींं लगाया

कामगार
नंदू की याद
ने मुझे घर को
वापस लौटाया

घर जल्दी
आकर
मैंने नंदू से
सहानुभूति
जब जताई

नंदू को
मेरी बात
आज
बिल्कुल भी
समझ में
नहीं आई

बोला
बाबू साहब
पैट्रोल बढे़
गैस बढे़
मेरा कुछ
भी कहीं
नहीं जाने
वाला है

मेरे परिवार
में तो कोई
घासलेट भी
नहीं खाने
वाला है

आप लोग
तो कार
गाड़ी पर
हमेशा जायेंगे

मेरे पैर
के छाले
तुम्हारी
सरकार
को
कहाँ
नजर
आयेंगे।

गुरुवार, 24 मई 2012

अंडा बिक गया

अंडे
एक टोकरी के
अपने को बस
चरित्रवान दिखाते हैं

दूसरी
टोकरी की
मालकिन को
चरित्रहीन बताते हैं

कल
दूसरी टोकरी
के अंडों ने

पहली के
एक अंडे को
फुसला लिया

चरित्रवान अंडा

चरित्रहीन
कहलाये
जाने वाले
अंडों मेंं
मिला लिया

इधर का
एक अंडा
उधर के
एक अंडे का  

रिश्तेदार भी
बताया जाता है

पहली बार
उसने चुराया था

इस बार ये वाला
बदला ले जाता है

आमलेट
बनाने वाले भी
दो तरह के
पाये जाते है

एक
माँसाहारी

दूसरे
माँस के पुजारी
बताये जाते हैं

अंडा
फोड़ों का
हर बार

इन्ही
बातों पर
झग
ड़ा
हो जाता है

ये
झगड़ा करते
रह जाते हैं

इस बीच

इनका
अपना अंडा
इनको ही
धोखा
दे जाता है

अब
पहली
टोकरी में

अंडा
जगह खाली
करके आया है

दूसरी
टोकरी का अंडा

ये बात
मुर्गी रानी को
पहुंचाके आया है

छ:
महीने के भीतर

एक
नया अंडा
मुर्गी लेकर आयेगी

अंडे
से अंडा
लड़वाया जायेगा

जो
जीत जायेगा
उसे टोकरी
का राजा
बनवाया जायेगा

आमलेट
बनाने वाले
फिर
लंगोट पहन
कर आयेंगे

चरित्र दिखा
कर लाइन के
इधर उधर जायेंगे

कब्बडी
एक बार
फिर से
मैदान में
खेली जायेगी

मैदान
के बाहर
अंडे की बोली
लगायी जायेगी

अंडों
के पोस्टर भी
बड़े बड़े
छपवाये जायेंगे

अंडे
उछलते रहेंगे
टोकरी वालों को
गंजा कर चले जायेंगे

अंडे
इस टोकरी से

उस
टोकरी में जायेंगे

टोकरी वाले

अपनी
धोती को
खिसकते हुवे

फिर से
पकड़ 
कर
खिसियायेंगे। 

बुधवार, 23 मई 2012

सुन्दर घड़ीसाज

चंदू वैसे हर
कोण से ऎलर्ट
नजर आता है
हर काम में
अपने को
परफेक्ट
वो बनाता है
मायूस होते
हुवे मैने
उसे कभी
भी नहीं पाया
समय के पाबंद
ने कल जब
अपनी घड़ी को
चलते हुवे
नहीं पाया
हाथ झटकते
हुवे तब थोड़ा
सा वो झल्लाया
पर आज सु
बह फिर से
आफिस में
सीटी बजाते
हुवे दाखिल हुवा
जैसे कल के दिन
उसकी सेहत
को रत्ती भर
भी कुछ
नहीं हुआ
घड़ी उसकी
उसकी अपनी
कलाई पर ही
नजर आ रही थी
पर टिक टिक
उसकी आज
एक बिल्कुल
नई कहानी
सुना रही थी
महिलाओं की 

ओर मुखातिब
हो कर भाई
ने बतलाया
सैल बदलने
घड़ी की
दुकान पर
कल शाम
जब वो आया
एक सुंदर
सुघड़
मोहतरमा
को काम
करते वहाँ पाया
घड़ी को बड़ी
नजाकत से
पेचकस से
खोल कर
उसने सैल
को जब से
अंदर को
सरकाया
जैसे जैसे
पूरा वाकया
सुनाता
चला गया
घड़ीसाज
के काम का
वो कायल
होता गया
चलती है
या रुकी है
अब नहीं
देखने वाला है
अपने घर की
सारी घड़ियों
के सैल एक
एक करके
बदलने वाला है
महिलायें अभी
तक चुपचाप
चंदू को सुनती
जा रही थी
बस थोड़ा
थोड़ा बीच
बीच में कभी
मुस्कुरा रही थी
बोली इस से
पहले हमारे
पतिदेव लोग
दुकान का
पता चला लेंगे
हम लोग भी
अपने घर की
सारी घड़ियों
के सारे सैल
आज ही
जा कर के
बदलवा
डालेंगे ।