उलूक टाइम्स

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

किसने बोला कलियुग में रामराज्य नहीं है आता

बाघ बकरी
कभी खेला
जाता था
अब नहीं
खेला जाता

बहुत सी जगह
ये देखा है जाता

बाघ
बकरी की
मदद कर
उसे बाघ
बनाने
में मदद
करने है आता

जहाँ बाघ
बकरी की
मदद कतिपय
कारणों से नहीं
है कर पाता

वहाँ
खुद ही
शहर की
मुर्गियों से
बकरियों के लिये
अपील करवाने
की गुहार
भी है लगाता

बाघ
जिन बकरियों
के साथ है रहता
उनको खाने की
इच्छा नहीं दिखाता

वो बाघ होता है
इतना गया गुजरा
भी नहीं होता

उसके पास इधर
उधर से भी खाने
के लिये बहुत
है आ जाता

बाघ की टीम
का हर सदस्य
बकरियों को
हमेशा ही है
ये समझाता

बाघ
बस बकरियों
को बाघ बनाने के
लिये अपनी
जान है लगाता

जिस बकरी की
समझ में नहीं
आ पाती है बात

उसके हाथ से
बाघ बनने का
स्वर्णिम अवसर
है निकल जाता

बाघ बकरियों को
बाघ बनाने के
लिये ही तो
उनकी लाईन
है लगवाता

अपनी कुछ खास
बकरियों को ही
इसके लिये
मानीटर है बनाता

अब इतना कुछ
कर रहा होता है

अपने लिये भी
कुछ माहौल इससे
बनवा ले जाता

बकरियों का इसमें
कौन सा कुछ
है चला जाता

बकरियों
की मैं मैं
का शोर जब
अखबार में उसकी
फोटो के साथ
छप है जाता

उसका कद थोड़ा
सा लम्बा इससे
अगर हो भी जाता

ये सब भी तो
बाघ बकरी के
खेल में आघे को
काम है आता

बाघ का ऎसा
आत्मविश्वास
कहानियों में भी
नजर नहीं आता

कौन कहता है
राम राज्य अब
कहीं यहा नहीं
पाया है जाता

बाघ बकरियों को
अपने साथ है
पानी तक पिलाता

बस कभी जब
महसूस करता है
बकरियों के लिये
कुछ नहीं कर पाता

शहर की
मुर्गियों से
उनके लिये
झंडे है उठवाता

बकरियों
के लिये
बन जाती है
ये एक बडी़ खबर

अखबार
तो कायल
होता है बाघ का
उसे छींक भी आये
उसकी फोटो अपने
फ्रंट पेज में
है छपवाता

बकरियों पर आई
आफत का होने
जा रहा है समाधान
बाघ का बस
होना ही
बकरियों के साथ
काम के होने का
संकेत है हो जाता

बाघ बकरी
कभी
खेला जाता था
अब
नहीं है
खेला जाता ।

सोमवार, 8 जुलाई 2013

मुझ से पूछने आता तो तेरे को कोई कैसे फंसाता

एक डी एन ए
टेस्ट करवाता है
दो नौकर के साथ
बनी सी डी मामले
में फंस जाता है
तीन का फोन
टेप करके चूजे
क्या होते हैं
टी वी पर
सरे आम सबको
बताया जाता है
हे भगवान !
इतनी पकी उम्र
होने पर भी
तेरा सब कुछ
कैसे इतनी
आसानी से
पब्लिक हो
जाता है
वो भी इतना
जिम्मेदार नेता
जो राज्य से
लेकर देश
को चला
ले जाता है
मेरी समझ
में ये नहीं
आता है
तेरे जैसे
लोगों को
उस जगह
पढ़ने कुछ
दिन के लिये
क्यों नहीं
भेज दिया
जाता है
जहाँ ऎसा
वैसा किताबों
में तो कहीं
नहीं दिखाया
जाता है
लेकिन सब कुछ
बहुत आसानी
से किया जाता है
कोई भी
किसी को
कहीं नहीं
फंसाता है
ना टी वी
में आता है
ना ही अखबार
वाला ही वो
सब बताता है
और ये सब करने
वाले को ही बस
इनाम में कुछ
साथ में दिया
भी जाता है
बाकी बचे हुओं
को अभी भी
बता दिया
जाता है
अगर वो भी
एक दो तीन
की तरह ही
कुछ करना
चाहता है
ऎसे स्कूलों
में क्यों नहीं
कुछ दिन
पढ़ने के
लिये आ
जाता है ।

रविवार, 7 जुलाई 2013

क्यों अपने बेताल की किस्मत का बाजा बजा रहा है


विक्रमादित्य
के 
समय से 

बेताल
फिर फिर पेड़ पर
लौट कर जाता रहा है 

तुझे
हमेशा खुशफहमी
होती रही है 

तेरा बेताल
तुझे छोड़ 
कर
कहीं भी नहीं 
जा पा रहा है 

पेड़ पर
लटकता है 
जाकर जैसे ही वो

तू अपनी आदत से 
बाज नहीं आ रहा है

समय के साथ
जब 
बदलते रहे हैं मिजाज 
विक्रमादित्य के भी
और बेताल के भी 

तू खुद तो
उलझता ही है
बेताल को भी
प्रश्नों में
उलझाता जा रहा है 

बदल ले
अपनी सोच को
और अपने बेताल को भी

नहीं तो
 हमेशा ही कहता
चले जायेगा उसी तरह 

बेताल
फिर फिर लौट 
के पेड़ पर जा कर 
लटक जा रहा है 

देखता नहीं
कितना 
तरक्की पसंद हो चुके हैं
लोग तेरे आस पास के 

हर कोई
अपने बेताल से 
किसी और के बेताल 
के लिये
थैलियाँ 
पहुँचा रहा है

तू इधर
प्रश्न बना रहा है 
उसी सड़क से ही
रोज आता है
जहाँ से बरसों से 
जाता रहा है 

दुख इस बात का 
ज्यादा हो जा रहा है 

ना तो तू अपना 
भला कर पा रहा है

तेरा बेताल भी 
बेचारा आने जाने में 
बूढ़ा तक भी 
नहीं हो पा रहा है 

आदमी लगा है 

अपने
काम निकालता
चला जा रहा है 

उसका बेताल 
यहाँ जो भी करे 
वहाँ तो मेरा भारत 
महान बना रहा है 

तेरे बेताल की
किस्मत
ही फूटी हुई है 

तेरे प्रश्नों
की रस्सी 
से
फाँसी भी नहीं 
लगा पा रहा है 

तू बना
संकलन 
‘ज्यादातर पूछे गये प्रश्न “

कोई
उत्तर लेने देने 
को नहीं आ रहा है 

आज
फिर उसी तरह 
दिख रहा है दूर से 
तेरा बेताल

अपने 
सिर के बाल 
नोचता हुआ

उसी
पेड़ पर 
लटकने को 
चला जा रहा है

जहाँ

तू
उसे जमाने 
से

यूँ ही
लटका रहा है ।

चित्र साभार: 
https://www.storyologer.com/

शनिवार, 6 जुलाई 2013

पता नहीं चलता, चलता भी तो क्या होता ?

पता ही कहाँ
चल पाता है
जब कोई भगवान
अल्लाह या
मसीहा
हो जाता है
पता ही कहाँ
चलता है
जब आदमी
होना बेमानी
हो जाता है
पता ही कहाँ
चलता है जब
सब संडास
हो जाता है
पता ही कहाँ
चलता है जो
मजा आ रहा है
वो सड़ांध
फैलाने से
सबसे ज्यादा
आता है
पता ही
कहाँ चलता है
सड़ांध और संडास
का कोई कब
आदी हो जाता है
पता ही कहाँ
चल पाता है
तीन तीन साल
आकर आराम करने
वालों में से एक
छ : महीने में ही
भाग जाता है
पता ही कहाँ
चल पाता है
उसके जाते ही
ऊपर का ऎक
किसी के ना
चाहते हुऎ भी
आ जाता है
पता चलता है
वो भी जल्दी
छोड़ के जाना
चाहता है
पता कहाँ
चलता है
अखबार को
ये सब सबसे
पहले कौन
जा कर
बता आता है
पता चलता है
सड़ांध का आदी ही
संडास को सबसे
आसानी से चला
ले जाता है
पता चल
जाता है
बाहर से
आने वाला
संड़ाध को झेल
ही नहीं
पाता है
तीन साल नहीं
तीन महीने में
ही भाग
जाता है ।

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

कभी बड़ा ढोल पीट



कब तक पीटेगा एक कनिस्तर 

कभी बड़ा 
एक ढोल भी पीट

घर के 
फटे पर्दे छोड़ टांगना
नंगी धड़ंगी सही 
पीठ ही पीट

आती हो 
बहुसंख्यकों को समझ में 
ऎसी अब ना कोई
लीक पीट

अपने घर के 
कूडे़ को कर किनारे 
कहीं छिपा ना दिखा

दूर की एक कौड़ी लाकर 
सरे आम शहर के
बीच पीट

क ख से 
कब तक करेगा शुरु 
समय आ गया है अब 
एक महंगा शब्दकोश 
ला कर के पीट

पीट रहे हैं 
सब जब कुछ ना कुछ 
किनारे में जा कर अपने लिये ही जब 

तू अपने लिये 
अब तो पीटना ले इन से कुछ सीख 
कुछ तो पीट 

कुछ ना 
मिल पा रहा हो कहीं अगर तुझे तो 
छाती अपनी ही खोल  
और  
खुले आम 
पीट 

मक्खियाँ भिनभिनायें 
गिद्ध लाशों को खायें 
किसने कहा जा कर के देख
समझदारी बस दिखा 
महामारी फ़ैलने की
खबर पीट

घर की मुर्गी उड़ा 
कबूतर दिल्ली से ला 
ओबामा का कव्वा
बता कर
के पीट

पीटना 
है नहीं तुझको जब छोड़ना
कुछ बड़ा सोच कर 
बड़ी बातें ही पीट

कब तक पीटेगा 
एक कनिस्तर 
कभी एक बड़ा ढोल
भी पीट । 

चित्र साभार: https://www.cffoxvalley.org/