उलूक टाइम्स

बुधवार, 18 सितंबर 2013

किसी का ठेका कभी तू भी तो ले, नहीं तो सबका ठेका हो जायेगा !

हर काम को ठेके के
हिसाब से करने की
आदतें हो जाती है
ठेकेदारी घर से ही
जब शुरु की जाती है
गली मौहल्ले शहर
राज्य से होते हुऐ
देश तक भी तभी
ले जाई जाती है
कहीं कोई निविदा
नहीं निकाली जाती है
काम ठेकेदार के हाथ में
दिखने के बाद ही
ठेके की कीमत
आंकी जाती है
ठेके लेने के लिये
किसी भी तरह की
योग्यता एक बना
ली जाती है जो
कभी कभी ठेके देने
वाले की मूंछ की
लम्बाई से भी
निकाली जाती है
आकाश पृथ्वी हवा
के ठेके तक भी
लिये जाते हैं
किसने दिये किससे लिये
कौन कहां किस किस को
जा जा कर बताते हैं
कोई भी अपने आप
को एक ठेकेदार
मान ले जाता है
जिस चीज पर दिल
आ जाये उस का वो
एक ठेकेदार हो जाता है
किसी दूसरी चीज पर
दूसरा ठेकेदार अपनी
किस्मत आजमाता है
ठेकेदार की भाषा को
ठेकेदार ही बस
समझ पाता है
एक ठेकेदार हमेशा
दूसरे ठेकेदार से
रिश्तेदारी पर
जरूर निभाता है
कभी खुद के लिये
एक तलवार कभी
दूसरे के लिये ढाल
तक हो जाता है
छोटे छोटे ठेकों से
होते हुऐ ठेकेदार
कब एक बड़ा
ठेकेदार हो जाता है
ठेकेदार को भी पता
नहीं चल पाता है
अपने घर को ठेके
पर लगाते लगाते
जिस दिन पूरे देश को
ठेके पर देने के लिये
उतर आता है
उसी दिन समझ में
ये सब आता है
ठेका लेना हो अगर
किसी भी चीज का
तो किसी से कुछ कभी
नहीं पूछा जाता है
बस ठेका ले ही
लिया जाता है।

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

उनकी मजबूरी के खेत मेरे सपनों के पेड़

किसी की
मजबूरी भी

किसी का
सपना हो
जाती है

ये बात
बहुत आसानी
से कहां समझ
में आ पाती है

आश्चर्य तो
तब होता है

जब एक ऐसे ही
सपने के आते ही
किसी की बांछें
खिल जाती हैं

यही सोच एक
दुधारू गाय
बन कर
सामने आ
जाती है

जितने ज्यादा
मजबूर लोग
होते हैं
उतना
ज्यादा दूध
बहाती है

किसी की
मजबूरी को
एक सपना
बनाना

उस सपने
को पूरा
करने के लिये
तन मन
धन लगाना

सपने की
बात को
किसी को
भी ना बताना

इसके बावजूद
उस सपने को
पूरा करने
के लिये
मिनटों में
मददगारों
के एक
जमघट का
जुट जाना

सपने का
फलना फूलना
शुरु हो जाना

दूध का
निकलने से
पहले ही
बंट जाना

कुछ लोगों
की मजबूरी पर
एक पूरा उद्योग
खड़ा हो जाना ही
एक आदमी की
प्रबंधन क्षमता
को दिखाती है

देश को चलाने
के लिये ऐसे ही
सक्षम लोगों की
जरूरत महसूस
की जाती है

इसीलिये
हर सरकार
हर जगह पर
छांट छांट कर
ऐसे महागुरुओं को
ला कर बिठाती है

इन
महागुरुओं की
मदद लेकर ही
मजबूर देश के
मजबूरों को वो
हांक ले जाती है ।

सोमवार, 16 सितंबर 2013

बाघ तू तो खाली बाघ हो रहा है

सुबह से शोर
मच रहा है
शहर के किसी
मौहल्ले में आज
झाड़ियों के बीच
एक बाघ
दिख रहा है
ऐसा आज
पहली बार
नहीं हो रहा है
कि बाघ आबादी
के बीच में
आकर के
घुस रहा है
या तो बाघ
जंगल में बहुत
हो रहे हैं
या जंगल में
बाघ बहुत
बोर हो रहे हैं
इसीलिये शायद
जंगल छोड़
शहर की ओर
हो रहे हैं
बाघ को कौन
समझाये जाकर
कि शहर के लोग
भी अब बहुत
बाघ हो रहे हैं
बाघ कुछ भी
नहीं है
उनके सामने
बताया नहीं
जा सकता कि
वो कितने
घाघ हो रहे हैं
कंकरीट के जंगल
शहर में हर ओर
बो रहे हैं
बाहर से मुलायम
दिखा कर अंदर से
कठोर हो रहे हैं
बाघ माना कि
तेरे पास खाने को
नहीं हो रहा है
तभी तो तू शहर
की ओर हो रहा है
शहर में लेकिन
बस वो ही बाघ
हो रहा है
जिसका पेट पूरे
गले गले तक
भरा हो रहा है
तू तो बाघ है
और रहेगा भी
बाघ हमेशा ही
पर वो जब जब
लाल देख रहा है
तब तब वो एक
बाघ हो रहा है ।

रविवार, 15 सितंबर 2013

गर्व से कहो फर्जी हैं


देश में
फर्जी लोगों की
कमी नहीं है

ये मैं नहीं कह रहा हूं

आज के
हिंदुस्तान के
मुख्य पृष्ठ में छपा है
और
इस बात को
देश का सुप्रीम कोर्ट
सुना है कह रहा है

फर्जी डाक्टर
फर्जी पुलिस
फर्जी पायलट
जैसे और कई
खुशी हुई बस
ये देख कर
फर्जी मास्टर कहीं
भी नहीं लिखा है

मजे की
बात देखिये
कोर्ट को जैसे
बहुत
गर्व हो रहा है

कि
इन फर्जी लोगों
के कारण ही तो
देश सही ढंग से
चल रहा है

कोर्ट
मानता है
हजारों फर्जी वकील
रोज वहां आ रहे हैं
अच्छा काम कर रहे हैं
समय पर लोगों को
न्याय दिलवा रहे हैं

ऐसे में
आप लोग
क्यों परेशान
इतना
हो जा रहे हैं

क्यों
फर्जी पायलटों
की बात
हमें बता रहे हैं

एक दो
हवाई जहाज
अगर वो कहीं
गिरा रहे हैं
तो कौन सा
देश के लिये
खतरा हो जा रहे हैं

थोड़े कुछ
अगर मर
भी जा रहे हैं
तो देश की
जनसंख्या
कम करने में
अपना योगदान
कर जा रहे हैं

देख
क्यों नहीं रहे हैं
बहुत से ऐसे लोग
देश को तक
चला रहे हैं

इतना बड़ा देश
हवा में उड़ रहा है
कई साल हो गये
इसे उड़ते उड़ते
आज तक तो कहीं
भी नहीं गिरा है

फिर काहे में कोर्ट
का समय आप
लोग खा रहे हैं

फर्जी होना ही
आज के समय में
बहुत जरूरी
हो गया है

जो
नहीं हुआ है
उसने कुछ
भी नहीं
अभी तक
किया है

सही समय पर
सही निर्णय जो
लोग ले पा रहे हैं

किसी ना किसी
फर्जी को अपना
गुरु बना रहे हैं

और
जो लोग फर्जी
नहीं हो पा रहे हैं

देश के नाम पर
कलंक एक हो
जा रहे हैं

ना ही
अपना भला
कर पा रहे हैं
ना ही किसी के
काम आ पा रहे हैं

आपको
शरम भी
नहीं आ रही है

ऐसे में भी

एक
फर्जी के ऊपर
मुकदमा ठोकने
कोर्ट की शरण में
आ जा रहे हैं ।

शनिवार, 14 सितंबर 2013

हिंदी दिवस तो हो गया

हिंदी दिवस ही
तो था हो गया
कुछ को पता था
कुछ और को भी
चलो आज इसी
बहाने से और
पता हो गया
हिंदी के अखबार में
छोटा सा समाचार
हिंदी दिवस पर
दिखा कहीं कौने
पर एक वो भी
पढ़ते पढ़ते पता
ही नहीं चला
कंहा गया और
कहां खो गया
अब किसी सँत
वैलेंटाईन का
आदेश तो था नहीं
जो कह ले जाते
मनाना बहुत ही
जरूरी हो गया
चकाचौंध कभी
थी नहीं वैसे भी
हिंदी भाषा में
सीधी सादी एक
हीरोईन को छोटे
कपड़ों में आना
लगता है अब
बहुत ही जरूरी
सा कुछ हो गया
सबसे सुन्दर और
अलंकृत मात्र भाषा
की सुन्दरता को
उसके अपनो को ही
दिखाने के लिये
एक नजदीक का
चश्मा पहनाना
लगता है अब बहुत
ही जरूरी हो गया
ज्यादा क्या लिखना
हिंदी जैसे विषय पर
घर की मुर्गी का
स्वाद एक बार फिर
से जब मूंग की दाल
के बराबर हो गया ।