उलूक टाइम्स

सोमवार, 18 अगस्त 2014

नहीं लिख पाउंगा उसके लिये कुछ भी जिसके जलवे में आदमी बन कर के कोई शामिल होता है



दिमाग से लिखना मन की बात लिखना
किताब से लिखना बेबात की बात लिखना 
सुबह सवेरे बैठ कर एक रात लिखना 
अखबार में छपने छपाने के लिये लिखना 
अलग अलग होता है भाई क्यों परेशान होता है

डाक्टर ने नहीं कहा होता है 
पढ़ने के लिये वो सब कुछ 
जो इस दुनिया में 
हर जगह किसी भी दीवार पर
ऐरे गैरे नत्थू खैरे ने 
लिखा या लिखवा दिया होता है

पैजामे और टोपी देख कर 
लिखने वाले की बात पर क्यों चला जाता है

यहाँ हर कोई 
बिना कपड़े का ही आता है 
जैसा होता है उसी तरह आता है

अपने हिसाब किताब को देख कर
दुनियाँ को पागल बनाता है

कपड़े 
के बिना जो होता है 
उसे गूगल का 
शब्दकोश क्या कहता है 
उससे क्या करना होता है

सीधे सीधे 
नंगा कह देना 
अच्छा नहीं होता है 

दुनियाँ 
ऐसे लोगों से ही चल रही है

एक 
तू है ‘उलूक’
अपनी बेवकूफियों को
हरे पत्तों से ढकने में लगा रहता है 

अखबार में छपे 
कबूतरों के मनन चिंतन से
परेशान मत हुआ कर
कबूतर अपने घोंसले में 
अपनी ही बीट पर सोता है

जनता 
उस की तरह की ही
उस की 
वाह वाही में लगी रहती है

जिनको 
पता सब होता है
वो उनकी तरह का ही होता है

अल्पसंख्यक 
बस एक संख्या है
उसी ने बिल्ली की तरह 
खंभा ही तो बस एक नोचना होता है ।

रविवार, 17 अगस्त 2014

हे कृष्ण जन्मदिन की शुभकामनाऐं तुम्हें सब मना रहे हैं और जिसे देने तुम्हें सारे कंस मामा भी हमारे साथ ही आ रहे हैं

दो ही दिन हुऐ हैं 
जश्ने आजादी का मनाये हुऐ 
हे कृष्ण 

आज तेरा जन्म दिन 
मनाने का अवसर हम पा रहे हैं 
दिन भर का व्रत करने के बाद 
शाम होते होते दावत फलाहार की
तुझे भोग 
लगा कर खुद खा 
और बाकी को साथ में भी खिला पिला रहे हैं 

दादा दादी माँ पिताजी 
से बचपन में सुनी कहानियाँ
याद 
साथ साथ करते भी जा रहे हैं 

कितने मारे 
कितने तारे गिनती करने में 
आज भी याद नहीं आ पा रहे हैं 
सभी का हो चुका था संहार सुना था 
कुछ बचे थे शायद भले लोग 
कुछ गायें कुछ ग्वाले कुछ बाँसुरी की धुन और तानें 
आज भी सुन और सुना रहे हैं 

आज ही की 
बात नहीं है कृष्ण 
तेरे बारे में सुनते सुनते 
अब खुद अपने जाने के दिनों के 
बारे में भी कुछ सोचते जा रहे हैं 

नहीं हुई भेंट तुझसे 
कहीं घर में मंदिर में 
रास्ते में आदमी ही आदमी आते जाते भीड़ दर भीड़ 
हम खुद ही खोते जा रहे हैं 

कंस से लेकर 
शकुनि ही शकुनि 
घर से लेकर मंदिर तक में नजर आ रहे हैं 

गीता देकर गये थे 
तुम अपनी याद दिलाने के लिये 
पाप करने के बाद शपथ उसी पर आज 
हम हाथ रख कर खा रहे हैं खिला रहे हैं 

हैप्पी बर्थ डे कृष्ण जी 
कहने हमेशा हर साल 
याद कर लेना तुम भी सभी संहार किये गये 
उस समय के और इस समय के
हो चुके 
तुम्हारे भक्त गण 
मेरे साथ मेरे आस पास मिलकर
हरे कृष्ण हरे कृष्ण 
गाते गाते तालियाँ भी साथ में बजा रहे हैं ।   

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

सरकारी त्योहार के लिये भी अब घर से लाना जरूरी एक हार हो गया

रोज उलझना
झूठ से फरेब से
बे‌ईमानी से
भ्रष्टाचार की
किसी ना किसी
कहानी से
सपना देखना
खुशी पाने का
ज्यादा से ज्यादा
नहीं तो कम से कम
एक को सही
अपना गुलाम
बना कर जंजीर
डाल कर नचाने से
इच्छा करना
पूरी करने की
अपनी अपूर्त
अतृप्त आकाँक्षाओं की
बिना बताये
समझाये आस
पास की जनता
को समझ कर बेवकूफ
गर्व महसूस करना
मुँह पर आती कुटिल
मुस्कुराहट को
छुपाने से
किसने देखी
कब गुलामी
कौन कब और कहाँ
आजाद हो गया
किसने लिखी
ये सब कहानी
सपना किसका
साकार हो गया
समझते समझते
बचपन से लेकर
पचपन तक का
समय कब
पार हो गया
तीन सौ चौंसठ
दर्द भरे नगमों को
सुनने का पुरुस्कार
एक दिन झंडा
उठा कर सब कुछ
भूल जाने के लिये
सरकार का एक
सरकारी त्योहार हो गया
कुछ कहेगा तो
वो कहेगा तुझसे
‘उलूक’ देशभक्त
होने और दिखाने का
एक दिन तो मिलता
है पूरे सालभर में
भाषण मूल्यों के
झंडा लहरा कर
देने के बाद का
उन सब का कभी
का तैयार हो गया
तुझे क्या हो जाता
है हमेशा ही ऐसा
अच्छे आने वाले
समय में भी बेकार
बोल बोल कर
लगता है आजाद
होने से पहले ही
तू बहुत और बहुत
बीमार हो गया ।

बुधवार, 13 अगस्त 2014

आज ही छपा है अखबार में कहने को कल परसों भी कह दिया है

पूरे पके
और
सूखे हुऐ
कददू
को हाथ में
लेकर
संकल्प
ले लिया है

ना
खुद खाउँगा
ना
खाने दूँगा

बहुत
जोर से
बहुत बड़ा
एक लाउडस्पीकर
हाथ में लेकर
कह दिया है

सावधान
बड़ा
खाने वालो

खाना पीना
दिखना
कहीं किसी
को भी नजर

भूल से
भी नहीं
आना चाहिये

बहुत पुराना
खा चुके
मोटे लोगों को भी
अपना भार
अब घटाना चाहिये

सब कुछ
बदल डालूँगा
एक नहीं कई कई
बार कह दिया है

खाने पीने को
छोड़ कर
बाकी सब कुछ
कर लेने का
लाइसेंस
बस अपने ही
ईमानदारों
को ही दिया है

अभी तो
बस बड़े बड़े
खाने वालों
के लिये
सी सी कैमरे
लगाये जा रहे हैं

कद्दू
के अंदर
पनप रहे कीड़े
कौन सा
किसी को
बाहर से कहीं
नजर आ रहे हैं

छोटे मोटे
बिल पर्चे
टी ऐ डी ऐ
कमीशन
सब हजार
दस हजार
तक के

अभी
पाँच साल
तक नोटिस में
नहीं लिये जायेंगे

अगले
पाँच साल में
छोटे खाने
वाले भी
ट्रेनिंग
रिफ्रेशर कोर्सेस
के लिये
बुला लिये जायेंगे

अभी चोगे
धो धुला के
स्त्री कर करा कर
शरीर पे डालना ही
सिखाया जा रहा है

मैले मन
को धोने
धुलाने का
पाउडर भी

जल्दी ही
चीन या
अमेरिका का ही
आने जा रहा है

देश भक्तो
बेकार की
फालतू बातों में
ध्यान क्यों
लगा रहे हो

पंद्रह अगस्त
दो ही दिन के
बाद आ रहा है

इतनी
बड़ी बात
भूल क्यों
जा रहे हो

खाना पीना
पीना खाना
होता रहता है

कम बाकी कल
परसों भी हो
ही जायेगा

अभी
झंडे बेचने हैं
उनको बेचने
और
खरीदने को

कौन
कहाँ से आयेगा
कहाँ को जायेगा

चीन से
बन कर भी
आता है तो
क्या होता है

झंडा ऊँचा
रहे हमारा

अपने
देश में ही
गाया जायेगा ।

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

गधा घोड़ा नहीं हो सकता कभी तो क्या गधा होने का ही फायदा उठा

 

लिखने लिखाने के राज 
किसी को कभी मत बता 
जब कुछ भी समझ में ना आये 
लिखना शुरु हो जा 

घोड़ों के अस्तबल में 
रहने में कोई बुराई नहीं होती 
जरा भी मत शरमा 

कोई खुद ही समझ ले तो समझ ले 
गधे होने की बात को
जितना भी छिपा सकता है छिपा 

कभी कान को ऊपर की ओर उठा 
कभी पूँछ को आगे पीछे घुमा 
चाबुकों की फटकारों को 
वहाँ सुनने से परहेज ना कर 
यहाँ आकर आवाज की नकल की 
जितनी भी फोटो कापी चाहे बना 

घोड़े जिन रास्तों से कभी नहीं जाते 
उन रास्तों पर अपने ठिकाने बना 
घोड़ो की बात पूरी नहीं तो आधी ही बता 

जितना कुछ भी लिख सकता है लिखता चला जा 
उन्हें कौन सा पढ़ना है कुछ भी यहाँ आकर 
इस बात का फायदा उठा 

सब कुछ लिख भी गया
तब भी कहीं कुछ नहीं है कहीं होना 
घोड़ों को लेखनी की लंगड़ी लगा 
बौद्धिक अत्याचार के बदले का इसी को हथियार बना 

घोड़ों की दौड़ को बस किनारे से देखता चला जा 

बस समझने की थोड़ा कोशिश कर 
फिर सारा हाल लिख लिख कर यहाँ आ कर सुना 

वहाँ भी
कुछ नहीं होना है तेरा 
यहाँ भी
कुछ नहीं है होना 
गधा होने का सुकून मना 

घोड़ों के अस्तबल का
हाल लिख लिख कर दुनियाँ को सुना

गधा होने की बात
अपने मन ही मन में चाहे गुनगुना।