कितना कुछ होता है अपने आस पास
बिल्कुल भी एक जैसा नहीं
एक ऐसा तो दूसरा वैसा
लिखने की सोचो
तब महसूस होता है कुछ अजब गजब सा
क्या छोड़ो क्या उठाओ
मदारी उठाओ जमूरा छूट जाता है
जमूरे की सोचो मदारी अकेला पड़ने लग जाता है
पर सोचिये जरा
हर आदमी का ऐंगल
दूसरे आदमी से कहीं छोटा तो कहीं बड़ा हो जाता है
किस पर क्या लिखा जाये
एक विषय सोचने तक कलकत्ता आ जाता है
बस और देर की गई तो जैसे लिखा हुआ
समुन्दर में डूब जाने के लिये तैयार हो जाता है
इस से पहले कोई डूबे कहीं
दिमाग की लेखनी का ढक्कन
कहीं ना कहीं उलझ ही जाता है
तो ऐसे ही होते होते
आज अपने ही एक शुभचिंतक का खयाल आ जाता है
ना समाचार पत्र पढ़ता है ना रेडियो सुनता है
आँखों में बस गुलाबजल डालता है
टी वी देखने के हजार नुकसान बता डालता है
बस जब भी मिलता है
उससे पूछने से नहीं रहा जाता है
जैसे एक रोबोट
कलाबाजियाँ कई एक साथ खाता है
भाई क्या हाल और क्या चाल हैं
फिर दूसरा वाक्य और कोई खबर
सबके साथ यही करता है
क्यों करता है
हर कोई इसे भी एक शोध का विषय बनाता है
उलूक दिन में नहीं देख पाता है
तो क्या हुआ
रात में चश्मा नहीं लगाता है
उलूकिस्तान में
इस तरह की बातों को समझना
बहुत ही आसान माना जाता है
समाचार पत्रों में जो भी समाचार दिया जाता है
उससे अपने आस पास के गुरु घंटालो के बारे में
कुछ भी पता नहीं लग पाता है
अच्छी जाति का कोई भी कुत्ता
विस्फोटक का पता सूंघ कर ही लगाता है
इसीलिये हर शुभचिंतक
चिंता को दूर करने के लिये
खबरों को सूंघता हुआ पाया जाता है
मिलते ही आदतन
क्या खबर है
उसके मुँह से अनायास ही निकल जाता है ।
चित्र साभार: iStock
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (05-02-2014) को "रेखाचित्र और स्मृतियाँ" (चर्चा मंच-1514) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एक साथ कई सारे पहलुओं पर तीक्ष्ण दृष्टि... बहुत बढ़िया. बधाई.
जवाब देंहटाएंकोई भी कुत्ता
जवाब देंहटाएंविस्फोटक का पता
सूंघ कर ही
लगाता है
इसी लिये हर
शुभचिंतक
चिंता को दूर
करने के लिये
खबरों को
सूंघता हुआ
पाया जाता है
बिम्ब प्रधान सुन्दर रचना सशक्त अर्थ अन्विति भाव के साथ
सूंघता हुआ
जवाब देंहटाएंपाया जाता है
मिलते ही
आदतन
क्या खबर है
उसके मुँह से
अनायास ही
निकल जाता है !
........ तीक्ष्ण सशक्त रचना !!
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंउल्लूक दिन में
जवाब देंहटाएंनहीं देख पाता है
तो क्या हुआ
रात में चश्मा
नहीं लगाता है,
- यों तो सारी ही उक्तियाँ मार्के की हैं .
सुन्दर मनोहर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 23 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसशक्त चिन्तन ।
जवाब देंहटाएंवाह हर बार की तरह लाजवाब।
जवाब देंहटाएंकरारा व्यंग।
बैठे बेगार भला हर भारतीय।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 19 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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