उलूक टाइम्स: दिसंबर 2024

मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

लिखने लिखाने की बीमारी है कौन सा हस्पताल में बिस्तर बदलना है

 

मालूम है कि कुछ भी कहीं भी बदला नहीं है सालभर में
ना ही आगे बदलना है
किसलिए तोलना है मिट्टी को हवा को पानी को
रहने दे उन्हें अभी संभलना है

सच सच है सच को रहने देना है सच कहना नहीं है
रेत पर नंगे पाँव टहलना है
निशान अपने आप ही  मिट जाएंगे समय के साथ
थोड़ा झूठ को बस संभलना है

कौन निराश है किसने कहा है बुरी बात है सब ठीक तो है
बिना डर रात में निकलना है
मौत सबको आती है एक दिन रोज का डरना अच्छा नहीं है
समय को बस फिसलना है

इसकी कुछ लिख कर उसकी कुछ लिख देने के बाद ही
घर से बाहर निकलना है
शहर में होती हैं अफवाहें ध्यान नहीं देना है
मुसकुराते हुए गली गली टहलना है

अपनी लिखने कि हिम्मत होती तो कितने होते अर्जुन उठाते गांडीव
सब बहलना है
‘उलूक’ साल को जाना ही होता है एक दिन
तुम्हें भी निकलना है
उसे भी निकलना है

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/



मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

लिख ले लिखता चल जमीर को मार दे

 


शब्द चार उधार ले जिंदगी सुधार दे
आसमां उतार ले जमीं जमीं निथार दे

कदम उठा ताल दे कहने दे बबाल दे
किसने किस को देखना आईना उबाल  दे

अपना अपना देख ना उसका उस का देखना
देखने से भर गया लिबास अब उतार दे

इसे दिखा उसे दिखा सब दिखा प्रचार दे
झूठ पकड़ प्यार दे सच जकड़ सुधार दे

इधर मिला उधर मिला मिल मिला व्यापार दे
जहर मिला जहर पिला पिला पिला मार दे

‘उलूक’ तहजीब सीख और हिसाब दे
लिख ले लिखता चल जमीर को मार दे


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