उलूक टाइम्स: आँगन
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रविवार, 23 अगस्त 2015

कहते कहते ही कैसे होते हैं कभी थोड़ी देर से भी होते हैं



तुम तो पीछे ही पड़ गये दिनों के 
दिन तो दिन होते हैं 
अच्छे और बुरे नहीं होते हैं 

अच्छी और बुरी तो सोच होती है 
उसी में कुछ ना कुछ 
कहीं ना कहीं कोई लोच होती है 

सब की समझ में सब कुछ 
अच्छी तरह आ जाये 
ऐसा भी नहीं होता है 

आधी दुनियाँ में उधर रात 
उसके इधर होने से नहीं होती है 

इधर की दुनियाँ में दिन होने से 
रात की बात नहीं होती है 

किसी से 
नाँच ना जाने आँगन टेढ़ा 
कहना भी
बहुत अच्छी बात नहीं होती है 

पहले ही
पूछ लेने की आदत ही 
सबसे अच्छी एक आदत होती है 

जो हमेशा
भले लोगों की 
हर भली बात के साथ होती है 

लंगड़ा कर
यूँ ही शौक से 
नहीं चलना चाहता है कोई भी कभी भी 

सोच में
नहीं होती है 
दायें या बाँयें पाँव में से 
किसी एक में कहीं थोड़ी बहुत 
मोच पड़ी होती है 

अच्छा अगर
नहीं
दिख रहा होता है 
सामने से कहीं 

कहीं ना कहीं 
रास्ते में होती है
उस अच्छे की गाड़ी 
और
थोड़ा सा
लेट हो रही होती है 

दिन तो
दिन होते हैं 
अच्छे और बुरे नहीं होते हैं 

किस्मत
भी होती है 
भेंट नहीं हो पा रही होती है 

वैसे भी 
सबके
एक साथ नहीं होते हैं 
जिसके हो चुके होते है 
'उलूक' 

उसके
अगली बार 
तक
तो
होने भी नहीं होते हैं । 

चित्र साभार: www.clipartsheep.com