उदघोषणा जैसे ही हुयी
बरसात के मौसम के जल्दी ही
आने की
मेंंढक दीवाने सारे लग गये तैयारी में
ढूढना शुरु कर दिये दर्जी
अपने अपने
होड़ मच चुकी है नजर आने लगी
पायजामे बिना इजहार के सिलवाने की
टर्र टर्र
दिखने लगी हर जगह
इधर भी उधर भी
आने लगी घर घर से आवाज
करने की रियाज
टर्राने की
फुदकना
शुरु हो गये मेंढक
अपने अपने
मेंढकों को लेकर मेढ़ पर कूओं के
जल्दी मची
दिखने लगी अपनी छोड़
दूसरे की पकड़ नैया पार हो जाने की
कलगी
लग गयी देख कर
कुछ मेढकों के सर पर
दिखने लगे
कुछ नोचते हुऐ बाल अपने
खबर छपनी
शुरु हो गयी अखबारों में
कुछ के बाल नोचने की
कुछ के गंजे हो जाने की
छूटनी शुरु हो गयी पकड़
कुओं की मुडेरों पर अपने
नजर आने लगी
खूबसूरती दूसरों की
नालियों धारों की पाखानों की
बरसात का
भरोसा नहीं
कब बादल चलें कब बरसें
कब
नाचें मोर भूल चुके कब से
जो आदत
अपने पंख फैलाने की
‘उलूक’
छोटे उत्सव मेंढकों के
जरूरी भी हैं
बहुत बड़ी
नहर में तैरने कूदने को जाने की बारी
किस की
आ जाये अगली बरसात
से पहले ही
बात ही तो है
तिकड़म भिड़ाने की
आये तो सही किसी तरह
हिम्मत थोड़ी सी
शरम हया छोड़
हमाम तोड़ कर अपना
कहीं बाहर निकल कर
खुले में नंगा हो जाने की ।
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