उलूक टाइम्स: देवता
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मंगलवार, 3 अगस्त 2021

लिखने में कौन सा रोका है कब रुका है लिखने वाला गर खुले आम किसी ने टोका है

 



पहेलियाँ
बनायी नहीं जाती हैं
पहेलियां
बन जाती हैं
जरूरी नहीं है बूझना
आग लग रही हो
तो देखना भी जरूरी नहीं है
और जली
कभी भी बुझायी भी नहीं जाती हैं

जो मैं करता हूँ
उसकी बात
कहाँ कभी करता हूँ

जो तुम करते हो
तुमको पता होता है
तुम क्या करते हो

जो हम करते हैं
उसकी बात
करनी ही क्यों है

करने कराने से हमारे
किसे क्या करना है
तुम तुम्हारा
और हम हमारा
ही तो करते हैं

मैं कहता हूँ कुछ
और मैं कोशिश भी करता हूँ
कुछ करने की

उस करने को
लिखना भी आसान होता है
लिख देता हूँ

तुम्हारा
करना कराना
तुमको पता होता है

तुम्हारे लिखे में
खोजता हूँ किया हुआ

वो नहीं मिलता है कहीं
मैं खुद ही कहीं
तुम्हारे किये कराये में
खो लेता हूँ

नियम नियम होते हैं
बात करने के लिये ही होते हैं
करने कराने के समय
सारे ही बहुत कम होते हैं

कर लिया जाता है
करना भी चाहिये होता है

नियम लिखने लिखाने के लिये
बात करने के लिये
करने के समय बस
अपनी सोच अपना ही दिमाग होता है

सब कुछ पहेलियों में ही होता है
दिखाना और बताना
कुछ और ही होता है

पढ़ाना सबसे सरल होता है
कुछ भी पढ़ा लिया होता है
कौन सोचता है कौन देखता है
लिखने लिखाने और पढ़ने पढ़ाने का
अलग अलग देवता होता है

कविता शेरो शायरी
कहानियाँ छंद बंद या और कुछ
कहने के रास्तों में
कोई कहीं भी खड़ा नहीं होता है

‘उलूक’ तेरी बातें
बुलबुले जैसी
समझने वाला
कोई नहीं कहीं होता है

खुदा है और खुदा खुदा होता है
किस ने कह दिया
खुद में खुदा
और खुदा में खुद को खोजना होता है

सभी लिखते हैं लिखना भी चाहिये
कुछ सजीव ही

अजीब सा कुछ
लिखने लिखाने समझने समझाने का
हमेशा ही एक अजीब कायदा होता है

ना तेरा तेरे पास
ना मेरा मेरे पास
एक समय आता है हमेशा ही
कहीं भी किसी का कुछ भी
नहीं रहता है।

 चित्र साभार: https://depositphotos.com



सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

तैंतीस करोड़ देवताओं को क्यों गिनने जाता है

तैंतीस करोड़ देवताओं
की बात जब भी होती है
दिमाग घूम जाता है
बारह पंद्रह देवताओं से
घर का मंदिर भर जाता है
कुछ पूजे जाते हैं
कुछ के नाम को भी
याद नहीं रखा जाता है
क्यों होते होंगे
इतने ज्यादा देवता
इस बात में जरूर कोई
गूढ़ रहस्य होता होगा
ऐसा कभी कभी
लगने लग जाता है
पूजा अर्चना का सही
अर्थ भी उस समय
साफ साफ पता
लग जाता है
जब कोई भी देवता
कहीं भी काम करते हुऐ
नजर नहीं आता हैं
ना तो उससे काम करने
को कहा जाता है
ना ही किसी देवता को
कोई कामचोर कहने की
हिम्मत कर पाता है
काम बिगाड़
ना दे कोई देवता
इसीलिये डर के मारे
पूजा जरूर जाता है
अपने आस पास
देवताओं को छोड़
हर किसी के पास
कुछ ना कुछ काम
नजर आता है
खुश्किस्मत
भारत देश में
हर देवता
देवताओं की संख्या
बढ़ाने में जोर शोर से
लगा हुआ नजर आता है
देवता क्यों होते होंगे
करोड़ से भी ज्यादा
अपने आसपास
के देवताओं
को देख कर
अच्छी तरह
समझ में
आ जाता है
देवता होना ही
अपने आप में
सब कुछ हो जाता है
एक देवता
दूसरे को भी
अपना जैसा
ही देवता
बनाना चाहता है
अपने पास ही हैं
सारे तैंतीस
करोड़ देवता
फिर किसलिये
मंदिर मंदिर
भटकते हुऐ गिनती
करना चाहता है ।

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

सायरन बजा देवता नचा

कुछ ही दिन पहले तक
लोगों के बीच में था
एक आदमी अब
सायरन सुना रहा है
सड़क पर खड़ी जनता को
अपने से दूर भगा रहा है
सायरन बजाने वालों
में बहुत लोगों का अब
नम्बर आ जा रहा है
जिसका नहीं आ पा रहा है
वो गड्ढे खोदने को जा रहा है
काफिले बदल रहे हैं
झंडे बदल रहे हैं
कुछ दिन पहले तक
सड़क पर दिखने वाला 

चेहरा आज बख्तरबंद 
गाड़ी में जा रहा है
पुराने नेता और उनको
शहर से बाहर तक 

छोड़ने जाने वाले लोगों
को अब बस बुखार
ही आ रहा है
गाड़ियां फूलों की माला
सायरन की आवाज
काफिले का अंदाज
नहीं बदला जा रहा है
टोपी के नीचे वाला
हर पाचं साल में
बदल जा रहा है
शहर में लाने ले जाने
वाले भी बदल जा रहे हैं
बदल बदल के पार्टियों
के राजकाज को वोटर 

सिर खुजाता जा रहा है
बस सुन रहा है सायरन
का संगीत बार बार
पहले वो बजा रहा था
अब ये बजा रहा है
देव भूमि के देवताओं
को नचा रहा है
मेरा प्रदेश बस 
मातम  मना रहा है
दिन पर दिन
धरती में समाता
जा रहा है 

उसको क्या पड़ी है
वो बस सड़क पर
गाड़ियां दौड़ा रहा है
सायरन बजा रहा है।