उलूक टाइम्स: फायदा
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शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

कुछ भी लिख और सोच ले इसी लिखे से शेयर बाजार चढ़ रहा है




ना तो
तू शेर है

ना ही
हाथी है 

फिर
किस लिये
इच्छा
करता है

दहाड़ने की
और
चिंघाड़ने की 

तेरी मर्जी
कैसे
चल सकती है

हिम्मत है
तुझे

फर्जी होने की 

जंगल में होना
और
शिकार करना 

नंगे होना
साथ में
तीर तलवार
होना

कोई
पाषाण युग

थोड़े ना
चल रहा है 

दर्जी है
खुद ही
खुदगर्जी
सिल रहा है

ऊल जलूल
लिखने से
अलग
नहीं
हो जाती है
लेखनी

बहुत से हैं
जानते हैं
पहचानते हैं

चिढ़
के मारे
जान बूझ कर

फजूल
लिख रहा है 

अलग
रह कर

आदमी
अलग नहीं
हो जाता है 

इच्छायें
तो
भीड़ की
जैसी ही हैं

बस
हिम्मत की
कमी है

किस लिये
ठंडा ठंडा
कूल
दिख रहा है 

सीख
क्यों
नहीं लेता है

वायदा कर लेना

फायदा
बहुत है

पैसे
वसूल
हो जाते हैं

दिखाई
देना चाहिये

हर
फटे कोने से
एक उसूल
दिख रहा है

रायता
फैल जाता है

फैलाना
जरूरी है

यही
एक कायदा
होता है
आज के समय में

‘उलूक’

गाँधी
बहुत पहले
बेच दिया गया था

जमाना
विवेकानंद
के
शेयरों पर

आज
नजर रख रहा है

एक
वही है
 जो
सबसे ज्यादा
प्रचलन में है

और
नारों में

खूबसूरत
नजारों में

नाचता
सामने सामने
दिख रहा है ।
चित्र साभार: https://www.dreamstime.com


सोमवार, 21 अप्रैल 2014

कूड़ा हर जगह होता है उस पर हर कोई नहीं कहता है

एक दल में
एक होता है
एक दल में
एक होता है

क्यों दुखी होता है
कुछ नहीं होता है

किसी जमाने में
ये या वो होता था
अब सब कुछ
बस एक होता है

दलगत से बहुत
ही दूर होता है
दलदल जरूर होता है

कुछ इधर
उसका भी होता है
कुछ उधर
इसका भी होता है
डूबना
खुद नहीं होता है
डुबोने को
तैयार होता है

मिलता है
सभी को कुछ कुछ
आधा
इसके लिये होता है 
आधा
उसके लिये होता है

इसकी
गोष्ठी होती है
कमरा खुला होता है
उसकी
सभा होती है
बड़ा मैदान होता है

इसकी
शिकायत
उससे होती है
उसकी
शिकायत
इससे होती है

इसकी
सभायें होती हैं
उसकी
कथायें होती है

इसकी
नाराजगी होती है
इसे मिठाई देता है
गुस्सा
उसको आता है
उसे नमकीन देता है

बिल्लियों
की रोटियाँ होती है
बंदर
का आयोग होता है

कोई
कुछ नहीं करता है
अखबार
को 
लिखना ही होता है

उलूक
तेरे बरगद
के पेड़ में ही
लेकिन ये
सब नहीं होता है

हर जगह होता है
हर कोई नहीं कहता है

क्यों
परेशान होता है
फैसला
दल दल में
अब नहीं होता है

समर्थन
निर्दलीय
का जरूर होता है
शातिर
होने का ही ये
सबूत होता है

इसका
भी होता है
और
उसका
भी होता है
ये भी
उसके होते है
और
वो भी
उसके होते हैं

तू
कहीं नहीं होने की
सोच सोच कर रोता है

दल में
होने से
कहीं अच्छा
अब तो
निर्दलीय होता है

लिखने
का बस यही
एक फायदा होता है

कहना
ना कहना
कह देना होता है

किसी
का रोकना
टोकना ही तो बस
यहाँ पर नहीं होता है ।