एक दल में
एक होता है
एक दल में
एक होता है
क्यों दुखी होता है
कुछ नहीं होता है
किसी जमाने में
ये या वो होता था
अब सब कुछ
बस एक होता है
दलगत से बहुत
ही दूर होता है
दलदल जरूर होता है
कुछ इधर
उसका भी होता है
कुछ उधर
इसका भी होता है
डूबना
खुद नहीं होता है
डुबोने को
तैयार होता है
मिलता है
सभी को कुछ कुछ
आधा
इसके लिये होता है
आधा
उसके लिये होता है
इसकी
गोष्ठी होती है
कमरा खुला होता है
उसकी
सभा होती है
बड़ा मैदान होता है
इसकी
शिकायत
उससे होती है
उसकी
शिकायत
इससे होती है
इसकी
सभायें होती हैं
उसकी
कथायें होती है
इसकी
नाराजगी होती है
इसे मिठाई देता है
गुस्सा
उसको आता है
उसे नमकीन देता है
बिल्लियों
की रोटियाँ होती है
बंदर
का आयोग होता है
कोई
कुछ नहीं करता है
अखबार
को लिखना ही होता है
‘उलूक’
तेरे बरगद
के पेड़ में ही
लेकिन ये
सब नहीं होता है
हर जगह होता है
हर कोई नहीं कहता है
क्यों
परेशान होता है
फैसला
दल दल में
अब नहीं होता है
समर्थन
निर्दलीय
का जरूर होता है
शातिर
होने का ही ये
सबूत होता है
इसका
भी होता है
और
उसका
भी होता है
ये भी
उसके होते है
और
वो भी
उसके होते हैं
तू
कहीं नहीं होने की
सोच सोच कर रोता है
दल में
होने से
कहीं अच्छा
अब तो
निर्दलीय होता है
लिखने
का बस यही
एक फायदा होता है
कहना
ना कहना
कह देना होता है
किसी
का रोकना
टोकना ही तो बस
यहाँ पर नहीं होता है ।
एक होता है
एक दल में
एक होता है
क्यों दुखी होता है
कुछ नहीं होता है
किसी जमाने में
ये या वो होता था
अब सब कुछ
बस एक होता है
दलगत से बहुत
ही दूर होता है
दलदल जरूर होता है
कुछ इधर
उसका भी होता है
कुछ उधर
इसका भी होता है
डूबना
खुद नहीं होता है
डुबोने को
तैयार होता है
मिलता है
सभी को कुछ कुछ
आधा
इसके लिये होता है
आधा
उसके लिये होता है
इसकी
गोष्ठी होती है
कमरा खुला होता है
उसकी
सभा होती है
बड़ा मैदान होता है
इसकी
शिकायत
उससे होती है
उसकी
शिकायत
इससे होती है
इसकी
सभायें होती हैं
उसकी
कथायें होती है
इसकी
नाराजगी होती है
इसे मिठाई देता है
गुस्सा
उसको आता है
उसे नमकीन देता है
बिल्लियों
की रोटियाँ होती है
बंदर
का आयोग होता है
कोई
कुछ नहीं करता है
अखबार
को लिखना ही होता है
‘उलूक’
तेरे बरगद
के पेड़ में ही
लेकिन ये
सब नहीं होता है
हर जगह होता है
हर कोई नहीं कहता है
क्यों
परेशान होता है
फैसला
दल दल में
अब नहीं होता है
समर्थन
निर्दलीय
का जरूर होता है
शातिर
होने का ही ये
सबूत होता है
इसका
भी होता है
और
उसका
भी होता है
ये भी
उसके होते है
और
वो भी
उसके होते हैं
तू
कहीं नहीं होने की
सोच सोच कर रोता है
दल में
होने से
कहीं अच्छा
अब तो
निर्दलीय होता है
लिखने
का बस यही
एक फायदा होता है
कहना
ना कहना
कह देना होता है
किसी
का रोकना
टोकना ही तो बस
यहाँ पर नहीं होता है ।
लिखने का बस यही
जवाब देंहटाएंएक फायदा होता है
कहना ना कहना
कह देना होता है
किसी का रोकना
टोकना ही तो बस
यहाँ पर नहीं होता है........बहुत बढ़िया..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-04-2014) को ""वायदों की गंध तो फैली हुई है दूर तक" (चर्चा मंच-1590) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया पूर्ण बढ़िया लेखन सर , धन्यवाद :)
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
billiyon ki roti bandar ka aayog hota hai :)
जवाब देंहटाएंकुछ ज्यादा हो गया है राजनीतिक कूड़ा -करकट इस देश में :
जवाब देंहटाएंइसके प्रबंधन के लिए टेंडर्स इनवाइट करने पड़ेंगे।
बढ़िया अप्रस्तुति है भाई सुशील जी सशक्त राजनीतिक हास परिहास व्यंग्य विडंबन
कूड़ा हर जगह होता है उस पर हर कोई नहीं कहता है
एक दल में
एक होता है
एक दल में
एक होता है
क्यों दुखी होता है
कुछ नहीं होता है
किसी जमाने में
ये या वो होता था
अब सब कुछ
बस एक होता है
दलगत से बहुत
ही दूर होता है
दलदल जरूर होता है
कुछ इधर उसका
भी होता है
कुछ उधर इसका
भी होता है
डूबना खुद नहीं
होता है
डुबौने को
तैयार होता है
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार 23 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
लिखने का बस यही
जवाब देंहटाएंकायदा होता है,
अपनी बात जम कर कह डालो
सब का फ़ायदा होता है.
लिखने को कौन रोक सकता है ...
जवाब देंहटाएंजहां तक अपना मन माने लिखते रहो ...