उलूक टाइम्स

गुरुवार, 22 मार्च 2012

चेहरे


चेहरे दर चेहरे
कुछ
लाल होते हैं
कुछ होते हैं
हरे

कुछ
बदलते हैं 
मौसम के साथ

बारिश में 
होते हैं
गीले
धूप में हो 
जाते हैं
पीले

चेहरे चेहरे 
देखते हैं

छिपते हुवे
चेहरे
पिटते हुवे
चेहरे

चेहरों
को कोई 
फर्क पढ़ना 
मुझे नजर 
नहीं आता है

मेरा चेहरा 
वैसे भी 
चेहरों को 
नहीं भाता है

चेहरा शीशा 
हो जाता है 

चेहरा
चेहरे को 
देखता तो है
चेहरे में चेहरा 
दिखाई दे जाता है

चेहरे
को चेहरा 
नजर नहीं आता है
चेहरा अपना 
चेहरा देख कर
ही
मुस्कुराता है 
खुश हो जाता है

सबके 
अपने अपने 
चेहरे हो जाते हैं

चेहरे
किसी के
चेहरे को 
देखना कहाँ 
चाहते हैं

चेहरे बदल 
रहे हैं रंग 
किसी 
को दिखाई 
नहीं देते हैं

चेहरे
चेहरे को 
देखते जा रहे हैं
चेहरे अपनी 
घुटन मिटा रहे हैं

चेहरे
चेहरे को 
नहीं देख पा रहे हैं
चेहरे पकड़े 
नहीं जा रहे हैं
चेहरे चेहरे 
को
भुना रहे हैं

चेहरे दर चेहरे
कुछ
लाल होते हैं
कुछ होते हैं
हरे

कुछ
बदलते हैं 
मौसम के साथ

बारिश में 
होते हैं गीले
धूप में हो 
जाते हैं पीले।

बुधवार, 21 मार्च 2012

गौरेया का दिन

बहुत
कम जगह
सुना है
अब वो 

पायी
जाती हैं
लेकिन
गौरेया 

बिना नागा
सुबह यहाँ 

जरूर
आती हैंं

खेत की
झाड़ियों 
में
हो कर इकट्ठा 

हल्ला मचाती
चहचहाती हैं

दाना पाने
की उम्मीद में
फिर आंगन
में आकर
सब बैठ
जाती हैं

एक लड़की
जो करती है
उनकी
रखवाली
सुबह
सवेरे ही
उठ के
आती है
झाडू़
लगाती है
आंगन में
उनके लिये

खुश हो कर
वो चावल
के दाने
भी फैलाती है

कोने कोने
के घौंसलों
में 
आजकल

उनके
बच्चों की
चीं चीं की
आवाज
कानों
में घंटी
बजाये
जाती है

दाना ले
जा कर
गौरेया
उनको
खिलाये
जाती हैं

बिल्लियाँ
मेरे पड़ौस
की रहती हैं
उनकी ताक में
बिल्लियों
को लड़की
झाडू़ फेंक
कर भगाये
जाती है

बाज
होता है
बिल्ली से
फुर्तीला
कभी एक
दो को
ले कर
ऊड़ ही
जाता है

लड़की
उदास
हो जाती है
उस दिन
लेकिन
फिर से
अपने
काम पर
हमेशा
की तरह
तैनात
हो जाती है

गौरेया
से है
उसका
बहुत याराना
चावल
ना मिले तो
लड़की के
कंधों पर
आकर
चढ़ जाती हैं

छोटी सी
गौरेया
का दिन
है आज
देखा था
अखबार में
छपा था
दिन पर दिन
कम होते
जाती हैं

घर पर
हमारे बहुत
हो गयी हैं
जो
चहचहाती हैं
रोज
आती है
दाना
ले जाती हैं
फुर्र से
उड़ जाती हैं ।

मंगलवार, 20 मार्च 2012

सौदा

अगले
पाँच वर्षों
की लूट
का खाका
लगभग
तैयार
हो गया है

एक
खेमें को
आधा हिस्सा
देने के लिये
दूसरा खेमा
पूरे से आधा
बाहर हो गया है

छोटा
घर बनवाना
घरवालों के
ही सर पर
सवार हो गया है

घरवाला
अपने ही
घर से
अपने ही
घरवालों के
कारण
घर से
बाहर हो गया है

दूल्हे
बदलना
एक परंपरा
यहाँ की
बारातों में
हर बार
हो गया है

दहेज
बहुत है
लड़की के
बाप के पास

देख कर
बारात में ही
दूल्हा
एक और
तैयार हो गया है

पहला
वाला दूल्हा
भी कहाँ
छोड़ने वाला
है मैदान

लड़की
बांटने को ही
तैयार हो गया है

कन्या
और कन्यादान
करने वाले को भी
नहीं पूछने
वाला कोई यहाँ
वो भी क्या
करे बेचारा

उसे पता है
उनको
बेचने का
दूल्हों के बीच
एक करार
हो गया है।

रविवार, 18 मार्च 2012

सच

सच तो
सच
होता है
फिर कहने
सुनने में
क्यों चुभने
लगता है

लोग अपने
घर के
छेद देख
कर आँख
बंद कर
ही लेते हैं
देश के
छेद को
दिखा
कर झंडे
बुलंद कर
लेते हैं

दूसरा
कोई
देश की
बात
कैसे करेगा
करेगा
अगर तो
पहले
अपने घर
का छेद
भरेगा

घर
का छेद
बंद नहीं
किया
जाता है
ब्लैकमेल
अगर
सामने वाले
को करना
हो तो
उसी समय
खोल दिया
जाता है

लोग
घर के
चोरों को
हमेशा
माफ कर
दिया
करते हैं
देश में
हो रही
चोरियों का
हिसाब किया
करते हैं

जब
सम्भलती
नहीं पैंट
कभी
उनसे
अपनी ही
तुरंत
सामने
वाले
की बैल्ट
पर वार
किया
करते हैं

अरे घरवालो
उन घरवालों
को तो ना
डराया करो
जो घर से
बात शुरू
किया करते हैं
और
मौका
लगता
है तो
कोशिश
करते हैं
प्रदेश की
बात करें
और देश
की भी

लेकिन इन
सब बातो
से पहले
ये तो
जान जाईये

ठेका अगर
घर देश
प्रदेश का
आप ले
 रहे हैं
तो
हिम्मत करें
अपना फोटो
जरूर अपने
प्रोफाइल
पर लगाइये।

शनिवार, 17 मार्च 2012

शेर

सारे शेर भी थे
एक जंगल के भी थे
सबके सपने
अपने अपने थे
गीदड़ों ने मिल कर
उनका शिकार किया
एक नहीं ग्यारह
शेरों पर वार किया
अब शेरों के
घर वालों को
रोना आ रहा है
हर कोई
शेर था शेर था
करके बता रहा है
गीददों से मार
खाई करके बिल्कुल
नहीं शरमा रहा है
जंगल इसीलिये
बरबाद होता जा रहा है
शेर लोग तो जायें गड्ढों में
बेचारे जानवरों को क्यों
जमीन के अंदर बिना
बात ले जाया जा रहा है ?