उलूक टाइम्स

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

सोच कपडे़ और खुश्बू नहीं बताते



मेरा
सलीकेदार सुन्दर सा पहनावा
मेरी  गर्व भरी चाल
मेरा संतुलित व्यवहार

मेरी मीठी रसीली सी बोलचाल
मेरी कविता का सौंदर्यबोध
मेरा संतुलित सामजिक समरसता
का सुन्दर सा खोल

मुझे दिखाना 
ही दिखाना है
जब भी अपने जैसे
तमीजदारों की सभाओं में कहीं
भाषण 
फोड़ कर आना है

बस वो ही 
बताना है वो ही सुनाना है
जिससे बने कुछ छवि सुन्दर सी
किसी भी तरह कैसे भी

करना क्या है
उससे किसी को क्या मतलब वैसे भी रह जाना है

मेरे बच्चे बच्चे
दूसरों के बच्चे जन्संख्या का सिद्धांत
अपनाना है

अपने घर को जाते जाते
सड़क पर झूल रहे
बिजली और दूरभाष के उलझे तारों के
किनारे से निकल

सड़क को 
घेर रहे 
मेरे घर को जाते हुऎ पानी के पाईपों से
बस नहीं टकराना है

पालीथीन में बंधे हुऎ
मेरे घर के अजैविक और जैविक
कूडे़ की दुर्गंध पर
नाक पर बस रुमाल ही तो एक लगाना है

बहुत कुछ है बताने को इस तरह से 
सैंस नहीं बस नानसैंस जैसा ही तो होता है ये सिविक सैंस

आप अपने काम से रखते हो मतलब
मेरे काम में दखलंदाजी लगती है
आप को हमेशा ही बेमतलब

इसलिये मुझे हमेशा
कोई ना कोई पुरुस्कार जरूर कुछ पाना है

समय नहीं है ज्यादा कुछ बताने के लिये

कल की मीटिंग के लिये अभी
मुझे नाई की दुकान पर
फेशियल करवाने के लिये जाना है ।

चित्र सभार: https://greatbridalexpo.wordpress.com/2013/03/11/spa-tips-for-men/

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

हुई कुछ हलचल मेरे शहर में

भारत में जन्मा
एक गोरा अंग्रेज
आज मेरे शहर
में आकर हमें
फिर आईना
दिखा गया
कुछ चटपटी
कुछ अटपटी
सी हिन्दी लेकिन
बस वो हिन्दी में ही
बोलता चला गया
इशारों इशारों में
उजागर किया
उसने कई बार
अपने देशप्रेम को
अंग्रेजों की दी
वसीयत से अब तो
मोह भंग कर जाओ
भारत और
भारतीयता
की उँचाइयाँ
कितनी हैं
गहरी अब तो
कुछ समझ में
अपनी ले आओ
भारतीय संस्कृति
में ही है ऎसा कुछ
जिससे ऎसा
वैसा रास्ता
उससे ना ही
कभी चुना गया
चीन देखो सामने
सामने कत्लोआम पर
गुजर कर तरक्की
कितनी पा गया
सरकार न्यायपालिका
नौकरशाह अगर
कर भी रहे हैं
दखलंदाजी एक
दूसरे के काम में
ऎ आदमी भारत के
तेरा ही तो
इस सब में
सब कुछ तूने
खुद ही तो
हमेशा से
है बहा दिया
उठ खडे़ हो
गौर कर सोच कुछ
मौके बहुत हैं
मुकाम पर देश
देखना ये गया
और वो गया
गाँधी और उसकी
गीता कौन
अब है देखता
वो फिर एक बार
उसकी याद हमको
अपनी बातों में
दिला गया
बहुत कुछ दिखा
उस शख्स में
अच्छा हुआ
ना जाते जाते मैं
उसको सुनने के
लिये चला गया
‘मार्क टली’
दिल से आभारी
हूँ तेरा आज मैं
मेरे सोते हुऎ
शहर को आज
तू कुछ थोड़ा सा
जो हिला गया ।

शनिवार, 30 मार्च 2013

लंगड़ा दौड़ता है दो टाँग वाला कमेंट्री करता है !

मैं दो टांग वाला
हर बार भूल
ही जाता हूँ
कि सिस्टम तो
लंगड़ों ने ही
चलाना है

मुझे याद ही
नहीं रहता
कि सारे
दो टांग वाले
दो टांग वालो
के कहने में
नहीं आते हैं
वो तो
लंगड़ों के घर
रोज ही
आते जाते हैं

 ज्यादातर
दो टांग वाले
बस वेतन ले कर
खुश हो जाते हैं
दौड़ की सोच भी
कहाँ पाते हैं

बहुत सारी दौडे़
होनी हो कहीं
अगर एक साथ
तो लंगडे़ बहुत
ही व्यस्त
हो जाते हैं

वो दौड़ में कहीं
भाग नहीं लगाते हैं
लंगड़ी कहाँ किस को
कैसे लगेगी उसका
हिसाब लगाने में
ही व्यस्त हो जाते हैं

अपने को सबसे
चालाक समझने वाला
लंगड़ा कहीं दिखाई
ही नहीं देता है
पर अपनी हरकतों से
अपने को हर जगह
एक्स्पोज कर जाता है
मजबूरी है उसकी
हर जगह हीरा हूँ
प्रमाणपत्र लेने के
लिये आ जाता है
लेकिन कोयला भी
उसको कहीं भी
मुहँ नहीं लगाता है
ऎसे लोगों से
ही भारत का लेकिन
अंदर की बात है
का नाता है
वो घर से लेकर
दिल्ली तक
नजर आता है
काम करने वाला
मेहनत करता है
लेकिन हर जगह
एक लंगड़ा
दो टाँगो वालो को
जरूर नचाता है ।

बुधवार, 27 मार्च 2013

एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया: होली है

होली
के दिन

बेटा
बाजार से
लौट कर
आ रहा था


मुस्कुराकर
अपनी बुआ
को बता
रहा था


पड़ोस के
एक
चाचा जी
को 
सड़क पर
हिलता डुलता
चलता देख
कर आ
रहा था


एक और 
पड़ोसी चाचा
उनको 
हेल्प
करने के लिये

हाथ बढ़ा रहा था

बुआ
परेशान सी
नजर आई
सोच कर
पूछने पर
उतर आई


उसकी
दुकान पर
क्या अच्छा
काम आजकल
हुऎ जा रहा है


 जो वो
रोज रोज
घूँट लगाने
लगा है
सुना जा
रहा है

बेटे ने
बुआ को
बताया
फिर फंडा
चाचा का
समझाया


बुआ जी
चाचा जी
के पिता जी
का जब से
हुआ है
स्वर्गवास


पेंशन
का पट्टा
उनका
बेवा
 बीबी
के तब से
आ गया
है हाथ


ए टी ऎम
कार्ड
खाते का
उनके
लेकिन
रहने
लगा है
चाचा
के पास

चाचा अब
रोज बस
एक पाव
लगाता है
पेंशन
पा रही
माँ के
पूछने पर
उसको भी
समझाता है


पारिवारिक
पेंशन
मिली है
तुझ बेवा
को
समझा
कर जरा


इस पैसे
से परिवार
के लोगों का
खयाल
रखा जाता है


तुझे क्यों
होती है
इसमें इतनी
परेशानी
अगर
एक पाव
मेरे हाथ भी
आ जाता है ?

शनिवार, 23 मार्च 2013

बेशरम उलूक है तू नहीं !

सबको
आता है 

बहुत
आता है

हवा देना
किसी भी बात को

नहीं आता है
लेकिन
कह देना
खुद बा खुद
उसी बात को

हर बात पर
ढूँता है वो
एक मुँह

जो कह डाले
खुले आम
उस बात को

उसकी
इसी बात
से वो खास
हो जाता है

कल तक
आम होता है
आज बादशाह
हो जाता है

बात उसकी
कहने वाला
भी बहुत
खास हो
जाता है

वो बहुत
सालों से
इसी तरह
कर रहा है
बातों की बातें

बहुत
बेशरम है वो
लेकिन
कपडे़ शानदार
पहन के आता है

देखने वाले
इज्जत से पेश
आते हैं

सारे के सारे
आस पास वाले
किसी को पता
भी नहीं होता है

घर जाता है
तो तबियत से
जूते खाता है

अब क्या क्या
कहानी सुनाये
‘उलूक’
किस किस को
यहाँ आ के

उसको तो
आदत है
कहने की

जो
किसी से
कहीं नहीं
कभी
कहा जाता है ।