उलूक टाइम्स

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

चार सौवाँ पन्ना : समर्पित तुझे तीसरी पुण्यतिथि पर गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’



जल जंगल जमीन
जानवर और
जनसरोकार
इन सबको
आत्मसात किया
हुआ एक जनकवि
रंगकर्मी गायक
और साहित्यकार
हिमालय सा
विशाल व्यक्तित्व
उत्कृष्ट संप्रेषण कला
कोमल हृदय
जैसे सरस्वती
का हो अवतार
आज तेरी तीसरी
पुण्यतिथि पर ये
घृष्टता करने की
कोशिश कर रहा हूँ
गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’
आज का ये
पन्ना तुझ को
दिल से समर्पित
कर रहा हूँ
पता है मुझे
सूरज को
एक दिया
दिखाने की
बस कोशिश
कर रहा हूँ
तू तो है एक
विशाल सागर
जनमानस में
हमेशा ही रहेगा
जीते जी तुझसे
नहीं हुई मुलाकात
कभी इसका बहुत
अफसोस रहेगा
तेरे किस आयाम
की बात की जाये
पता नहीं कहाँ
कौन सी चीज
मुझ से छूट जाये
तूने अपने गीतों से
जनमानस को
हमेशा ही सहलाया
भूत बताया और
वर्तमान बताया
तेरे ही जनगीतों
ने केदारनाथ
हादसे का भविष्य 
साफ साफ बताया
तेरी कविताओं ने
जन जन में आशा
का दीप जलाया
तेरे ही शब्दों में (अनुवाद)
"क्यों उदासी
ले कर आता है
क्यों मुहँ तू
अपना झुकाता है
किसलिये घुटने
जमीन पर टिकाता है
ऎसा हमेशा ही
नहीं हो जाता है
जल्दी ही देखेगा
सामने अपने
अच्छा दिन भी
जरूर आता है"
सरकारी और
सरकारी कुनबा
तुझे कभी सम्मानित
नहीं कर पाया
पर उसे कहाँ
जरूरत थी
इस सम्मान की
जिसने जीवन व्यापन
के लिये रिक्शा
तक हो चलाया
लगी लगाई नौकरी
को तक जन
आन्दोलनों की खातिर
लात मारने में
एक मिनट का समय
भी नहीं लगाया
ऎसा कौन सा
आन्दोलन था
जो तेरे गीतों के
बोलों के बिना
ही हो चल पाया
जन जन के
मानस में जितना
स्थान तूने
अपना बनाया
उसके सामने
हर सम्मान
बौना हो आया
माना आज तू
नहीं है शरीर से
कहीं हमारे आस पास
तेरे गीतों ने
तेरे होने का अहसास
हमेशा ही है दिलाया
आभार जयमित्र सिंह बिष्ट
और मनमोहन चौधरी
आज मुझे ‘गिर्दा’
से आपने सच में
है रुबरू करवाया !


बुधवार, 21 अगस्त 2013

हत्या हुई है एक चिन्तक की चिन्ता किसे है


चिन्तक 
डा. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या पर आना शुरु हो गये हैं वक्तव्य 

नृशंश हुई है हत्या अब कह रहे हैं लोग
समाज की भलाई की सोच लेकर चल रहे होते हैं लोग
ऎसे लोगों की ही हत्या सरेआम कर रहे होते हैं लोग

कोशिश रोज ही की जाती है हत्याऎं होती रहें 
ऎसे लोगों के विचारों की विचार ज्यादा शक्तिशाली हो जाते हैं 
काबू में आने से इन्कार कर जाते हैं ऎसे में बौखला जाते हैं लोग 

पहले बहुत कम होता था संचार माध्यम ऎसा नहीं था 
पता भी कहाँ चलता था 
अब तुरंत बात फैला देते हैं लोग 

अब तो रोज ही बेखौफ हत्या करने लगे हैं लोग 
बने हुऎ हैं इसपर भी मूकदर्शक लोग 
बस वक्तव्य देने में नहीं कतराते हैं लोग 

विचार जब तक जिंदा रहते हैं 
विचार को अनदेखा कर जाते हैं लोग 
निर्विकार भाव दिखा कर विचार से कतराते हैं लोग 

इसी श्रृंखला में आज
एक सामाजिक विचारक का मुंह बंद करा गये हैं लोग 
पता चलते ही श्रद्धांजलि देना शुरु कर
इतिश्री करने की तरफ जाने लगे हैं लोग

शर्म आ रही हो उन्हे बहुत ही जैसे शरमाने लगे हैं लोग
कहीं दूसरी ओर विचारों को कत्ल करने की
नई योजना बनाने शुरु हो गयें है लोग । 

चित्र साभार: : https://economictimes.indiatimes.com/

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

आपको रक्षाबन्धन की बधाई मुझे तो गुब्बारे की याद है आई

सोच रहा था आज
घर लौट कर
रक्षाबन्धन पर ही
थोड़ा कुछ लिख
लिया जायेगा
पर कहाँ पता था
कालेज में कोई
बात बात में
एक गुब्बारे की
याद दिलायेगा
चलिये कोई बात
नहीं आप रक्षाबन्धन
धूमधाम से मनाइये
गुब्बारा मेरे लिये
ज्यादा महत्वपूर्ण है
उससे मेरा ध्यान
ना हटवाइये
रक्षाबन्धन पर तो
बहुत से लोग
लिख ले जायेंगे
आप उन सब
को पढ़ने को
जरूर जायेंगे
पर गुब्बारे की
बात को कहना
हम तो नहीं
ही छोड़ पायेंगे
आज ही कहेंगे
और आज ही
यहाँ पर बतायेंगे
अब आप भी कहेंगे
भाई इसे आज
ऎसा क्या हो गया
ऎसा कौन सा
गुब्बारा है
जिसकी याद
आते आते ये
खुद गुब्बारा
गुब्बारा सा
हो गया
सच तो ये है
किसे पता था
भगवान बहुत
अप्रत्याशित
भी हो जायेगा
गुब्बारे की थैली
में से किसी भी
गुब्बारे को
हवा दे जायेगा
यही गुब्बारा
एक बार जो
हवा में जा के
उड़ जायेगा
फिर कहाँ लौट
के जमीन पर
वापस आ पायेगा
पर ऎसे गुब्बारे
भी तो कहीं अभी
तक नहीं पाये जाते हैं
जो हवा भरवाने के बाद
बहुत लम्बे समय तक
हवा में ही रह पाते हैं
राकेट होने लायक
हवा भरवाने की
कोशिश भी करते हैं
जोर भी इसके लिये
बहुत लगाते हैं
पर ज्यादा हवा
भर जाने से
उससे पहले ही
फूट जाते हैं
ऎसे फटे गुब्बारों को
थैली के गुब्बारे फिर
कहाँ मुँह लगाते हैं
गुब्बारे और उसमें
और हवा भर रहे
पम्पों पर मेरा
जब ध्यान गया
इस बात ने मुझे
तब बहुत ही
परेशान कर दिया
आप रक्षाबन्धन
की बहुत बहुत
बधाईयां ले लो
मुझे तो गुब्बारे
की ही बात
बस कहनी थी
कल के लिये
नहीं रुका गया
सब कुछ आज ही
आकर के कह गया ।

सोमवार, 19 अगस्त 2013

मछली एक भी जिंदा रहेगी तालाब की मुसीबत ही बनेगी !

तुझे
बहुत दिनो से कुछ हो रहा है 

ऎसा कुछ
मुझे महसूस हो रहा है 

बहुत सी बातेंं
लोग आपस में कर रहे हैं 

तेरे सामने कहने से
लगता है डर रहे हैं 

मेरी
समझ में
थोड़ा थोड़ा कुछ आ रहा है 

आजकल
तू हर जगह
गाड़ी के ब्रेक और एक्सीलेटर
अपने हाथ में लेकर
क्यों जा रहा है 

किसी के
पीछे पहुँच कर
ब्रेक लगा रहा है 
किसी के
आगे से एक्सीलेटर
जोर से दबा रहा है 

समझता
क्यों नहीं है 
ऎसे क्या
किसी को तू रोक पायेगा 

जो कर रहे हैं
खुले आम बहुत कुछ 
काबू में
ऎसे ही कर ले जायेगा 

और क्या
ऎक्सीलेटर दे कर
किसी को भी
तू चला ले जायेगा 

खाली खाली
किसी से ऎसी क्यों उम्मीदें अपनी जगायेगा 
जो किसी को रोकने
तेरे साथ दौड़ा दौड़ा चला आयेगा 

ईमानदार
होने का मतलब
बेशरम होना होता है

ये बात
ना जाने तू
कब समझ में अपनी लायेगा 

शरम
तो बस
एक बेशरम को ही आती है 
जो सामने सामने
चेहरे पर झलक जाती है 

तेरी सूरत
हमेशा से रोनी नजर आती है 
नजर डाल
उस तरफ ही
सारी लाली चली जाती है 

दर्द
बढ़ते बढ़ते दवा हो जाता है 
ये ही सोच के
तू भी थोड़ा सा बेशरम
क्यों नहीं हो जाता है 

तेरी
सारी परेशानियां
उस दिन खत्म हो जायेंगी 
जिस दिन से तुझे भी शरम थोड़ी
आनी शुरु हो जायेगी 

सारी
मछलियाँ तालाब की
तब एक सी हो जायेंगी 

एक सड़ी मछली
गंदा करती है तालाब वाली
कहावत ही बेकार हो जायेगी 

उसी दिन से पाठ्यक्रम में
नई लाईने डाल दी जायेंगी 

जिस दिन
सारी मछलियाँ
सड़ा दी जाती हैं 

तालाब की बात
उस दिन के बाद से
बिल्कुल भी
कहीं नहीं की जाती है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

रविवार, 18 अगस्त 2013

हर कोई जानता है वो क्यों जल रहा है

कहीं कुछ जल रहा है कहीं कुछ जल रहा है
कहीं लग चुकी है आग कहीं धुआँ निकल रहा है

तेरा दिल जल रहा है मेरा दिल जल रहा है
इसका दिल जल रहा है उसका दिल जल रहा है

कोई आग पी रहा है कोई धुआँ उगल रहा है
कहीं शहर जल रहा है कहीं गाँव जल रहा है

आग ही आग है सामने अपना घर जल रहा है
जैसा वहाँ जल रहा है वैसा यहाँ जल रहा है

हर कोई जानता है कितना क्या जल रहा है
क्यों जल रहा है और कहाँ जल रहा है

वो इससे जल रहा है ये उससे जल रहा है
उतनी आग दिख रही है जिसका जितना जल रहा है

अपनी आग लेकर आग से कोई कहाँ मिल रहा है
जिसको जहाँ मिल रहा है वो वहां जल रहा है

कितनी आग उसकी आग है पता कहाँ चल रहा है
हर कोई ले एक मशाल अपने साथ चल रहा है

इसके लिये जल रहा है उसके लिये जल रहा है
अपने भोजन के लिये बस उसका चूल्हा जल रहा है

कौन अपनी आग से कहीं कुछ बदल रहा है
किसको पड़ी है इस बात की कि देश जल रहा है

कहीं कुछ जल रहा है कहीं कुछ जल रहा है
कहीं लग चुकी है आग कहीं धुआँ निकल रहा है ।