उलूक टाइम्स

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

पता कहाँ होता है किसे कौन कहाँ पढ़ता है

साफ सुथरी
सफेद एक
दीवार के
सामने
खड़े होकर
बड़बड़ाते हुऐ
कुछ कह
ले जाना
जहाँ पर
महसूस
ही नहीं
होता हो
किसी
का भी
आना जाना
उसी तरह
जैसे हो एक
सफेद बोर्ड
खुद के पढ़ने
पढ़ाने के लिये
उस पर
सफेद चॉक से
कभी कुछ
कभी सबकुछ
लिख ले जाना
फर्क किसे
कितना
पड़ता है
लिखने वाला
भी शायद ही
कभी इस
पर कोई
गणित 
करता है
भरे दिमाग
के कूड़े के
बोझ को
वो उस
तरह से
तो ये
इस तरह
से कम
करता है
हर अकेला
अपने आप
से किसी
ना किसी
तरीके से
बात जरूर
करता है
कभी समझ
में आ
जाती हैं
कई बातें
इसी तरह
कभी बिना
समझे भी
आना और
जाना पड़ता है
दीवार को
शायद पड़
जाती है
उसकी आदत
जो हमेशा
उसके सामने
खड़े होकर
खुद से
लड़ता है
एक सुखद
आश्चर्य से
थोड़ी सी झेंप
के साथ
मुस्कुराना
बस उस
समय पड़ता है
पता चलता है
अचानक
जब कभी
दीवार के
पीछे से
आकर
तो कोई
हमेशा ही
खड़ा हुआ
करता है ।

बुधवार, 6 नवंबर 2013

तुझे पता है ना तेरे घर में क्या चल रहा है !

वो जब भी
मिलता है
बस ये
पूछ लेता है
कैसा
चल रहा है
वैसा ही है या
कहीं कुछ
बदल रहा है
हर बार मेरा
उत्तर होता है
भाई ठीक
कुछ भी तो
नहीं चल रहा है
वैसा अब
यहाँ पर तो
कहीं नहीं
दिख रहा है
उसका
वैसे से क्या
मतलब होता
आया है
मैं आज
तक नहीं
समझ
पाया हूँ
उसके यहाँ
ऐसा लगता
रहा है हमेशा
कुछ स्पेशियल
ही हमेशा
चल रहा है
हम दोनो
जब साथ
साथ थे तो
हमने एक
दूसरे से कभी
नहीं पूछा
कैसा चल
रहा है
लगता था
मुझे पता
है जो कुछ
इसको भी
पता होगा
जो चल
रहा है
वो बैठा है
या कहीं
उछल रहा है
अब मैं
यहाँ हूँ
और वो
कहीं और
चल रहा है
उसके यहाँ
का ना मैंने
पूछा कभी
ना ही मुझे
कुछ कहीं से
कुछ पता
चल रहा है
और वो
हमेशा ही
मौका मिलते
ही पूछ लेता
है यूं ही
कैसा चल
रहा है
मुझे मेरे
देश से बहुत
प्यार है और
वो बहुत ही
सही चल
रहा है
लेकिन
क्या करूं
कहीं एक
पतला उछल
रहा है
कहीं दूसरा
मोटा उछल
रहा है
दोनो के
बीच में
कहीं पिस
ना जाये मेरा
हिन्दुस्तान
सोच सोच
कर मेरा
दिल उछल
रहा है
वो सब कृपया
ध्यान ना दें
जिनके यहाँ
सब कुछ
हमेशा ठीक
चलता है
और अभी
भी सब कुछ
ठीक चल
रहा है ।

मंगलवार, 5 नवंबर 2013

उस पर क्यों लिखवा रहा है जो हर गली कूंचे पर पहुंच जा रहा है

लिख तो
सकता हूँ
बहुत कुछ
उस पर
पर नहीं
लिखूंगा
लिख कर
वैसे भी
कुछ नहीं
होना है
इसलिये
मुझ से
उस पर
कुछ लिखने
के लिये
तुझे कुछ
भी नहीं
कहना है
सबके अपने
अपने फितूर
होते हैं
मेरा भी है
सब पर कुछ
लिख सकता हूँ
उसपर भी
बहुत कुछ
पर क्यों लिखूं
बिल्कुल
नहीं लिखूंगा
अब पूछो
क्यों नहीं
लिखोगे भाई
जब एक
पोस्टर जो
पूरे देश की
दीवार पर
लिखा जा
रहा है और
हर कोई
उसपर
कुछ ना कुछ
कहे जा रहा है
तो ऐसे पर
क्या कुछ
लिखना जिसे
देख सब रहे हैं
पर पढ़ कोई भी
नहीं पा रहा है
मेरा इशारा उसी
तरफ जा रहा है
जैसा तुझ से
सोचा जा रहा है
उसे देखते ही मुझे
अपने यहाँ का वो
याद आ रहा है
होना कुछ
नया नहीं है
पुराने पीतल
पर ही सोना
किया जा रहा है
कुछ दिन
जरूर चमकेगा
उसके बाद
सब वही
जो बहुत
पुराने से
आज के नये
इतिहास तक
हर पन्ने में
कहीं ना कहीं
नजर आ रहा है
गांधी की
मूर्तियों से
काम निकलना
बंद हो भी
गया तो परेशान
होने की कोई
जरूरत नहीं
उन सब को
कुछ दिन
के लिये
आराम दिया
जा रहा है
खाली जगह
को भरने
के लिये
सरदार पटेल
का नया
सिक्का
बाजार में
जल्दी ही
लाया जा
रहा है | 

सोमवार, 4 नवंबर 2013

लक्ष्मी को व्यस्त पाकर उलूक अपना गणित अलग लगा रहा था

निपट गयी जी
दीपावली की रात

पता अभी
नहीं चला वैसे
कहां तक पहुंची
देवी लक्ष्मी

कहां रहे भगवन
नारायण कल रात

किसी ने भी
नहीं करी
अंधकार प्रिय
उनके सारथी
उलूक की
कोई बात

बेवकूफ हमेशा
उल्टी ही
दिशा में
चला जाता है

जिस पर कोई
ध्यान नहीं देता

ऐसा ही कुछ
जान बूझ कर
पता नहीं

कहां कहां से
उठा कर
ले आता है

दीपावली की
रात में जहां
हर कोई दीपक
जला रहा था

रोशनी
चारों तरफ
फैला रहा था

अजीब बात
नहीं है क्या
अगर उसको
अंधेरा बहुत
याद आ रहा था

अपने छोटे
से दिमाग में
आती हुई एक
छोटी सी बात
पर खुद ही
मुस्कुरा रहा था

जब उसकी
समझ में
आ रहा था

तेज रोशनी
तेज आवाजें
साल के
दो तीन दिन
हर साल
आदमी कर

उसे त्योहार
का एक नाम
दे जा रहा था

इतनी चकाचौंध
और इतनी
आवाजों के बाद
वैसे भी कौन
देख सुन पाने की
सोच पा रहा था

अंधा खुद को
बनाने के बाद
इसीलिये तो
सालभर

अपने चारों
तरफ अंधेरा
ही तो फैला
पा रहा था

उलूक कल
भी खुश नहीं
हो पा रहा था

आज भी उसी
तरह उदास
नजर आ रहा था

अंधेरे का त्योहार
होता शायद
ज्यादा सफल
उसे कभी कोई
क्यों नहीं
मना रहा था

अंधेरा पसंद
उलूक बस
इसी बात को
नहीं पचा
पा रहा था । 

रविवार, 3 नवंबर 2013

एक बच्चे ने कहा ताऊ मोबाइल पर नहीं कुछ लिखा



अपने पास
है
नहीं 

भाई

ऐसी चीज
पर 


लिखने
को 
कह जाता है 

अभी तक
पता नहीं 


हाथ 
ही में
क्यों है 

दिमाग
के
अंदर ही

क्यों
नहीं फिट
कर 
दिया जाता है 

मर जायेगा 
अगर
नहीं पायेगा 

हर कोई ऐसा जैसा 
ही
दिखाता है 

छात्र छात्राओं
की 
कापी पैन

और 
किताब
हो जाता है 

पंडित मंत्र 
पढ़ते पढ़ते 

स्वाहा करना
ही 
भूल जाता है 

पढ़ाना
शुरु बाद 
में
होता है

शिक्षक 
कक्षा के बाहर 
पहले 
चला जाता है 

लौट कर
आने 
तक 
समय ही
समाप्त हो जाता है 

मरीज की सांस 
गले में
अटकाता है 

चिकित्सक
आपरेशन
के 
बीच में

बोलना
जब 
शुरु हो जाता है 

बड़ी बड़ी
मीटिंग होती है 

कौन
कितना बड़ा
आदमी है 

घंटी की आवाज
से ही 
पता चल जाता है 

टैक्सी ड्राइवर
मोड़ों पर 
दिल जोर से
धड़काता है 

आफिस
के
मातहत को 

साहब का नंबर
साफ 
बिना चश्में के
दिख जाता है ‌‌

जवाब नहीं
देना चाहता है 

जेब में होता है
पर 

घर
छोड़ के आया है 
कह कर
चला जाता है 

कामवाली
बाई से 
बिना बात किये 
नहीं
रहा जाता है 

बर्तनो
में
बचा साबुन 
खाने को जैसे 
मुंह के अंदर ही 
धोना चाहता है 

सड़क पर चलता 
आदमी
एक सिनेमाघर 
अपना
खुद हो जाता है 

सब की
बन रही होती है 
अपनी ही
फिल्म 

दूसरे की
कोई नहीं
देखना चाहता है 

बहुत
काम की चीज है 

सब की एक 
राय बनाता है 

होना
अलग बात है 

नहीं होना 
ज्यादा फायदेमंद 

बस
एक गधे को 
ही
नजर आता है

धोबी
के पास होने 
पर भी
वो बहुत 
खिसियाता है 

गधा
खुश हो कर 
बहुत मुस्कुराता है 

धोबी
ढूँढ रहा था 
बहुत ही बेकरारी से 

जब कोई
आकर 
उसे बताता है 

इससे
भी लम्बी 
कहानी हो सकती है 

अगर कोई 
मोबाइल पर 
कुछ और भी 
लिखना
चाहता है ।

चित्र साभार:
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