साफ सुथरी
सफेद एक
दीवार के
सामने
खड़े होकर
बड़बड़ाते हुऐ
कुछ कह
ले जाना
जहाँ पर
महसूस
ही नहीं
होता हो
किसी
का भी
आना जाना
उसी तरह
जैसे हो एक
सफेद बोर्ड
खुद के पढ़ने
पढ़ाने के लिये
उस पर
सफेद चॉक से
कभी कुछ
कभी सबकुछ
लिख ले जाना
फर्क किसे
कितना
पड़ता है
लिखने वाला
भी शायद ही
कभी इस
पर कोई
गणित
सफेद एक
दीवार के
सामने
खड़े होकर
बड़बड़ाते हुऐ
कुछ कह
ले जाना
जहाँ पर
महसूस
ही नहीं
होता हो
किसी
का भी
आना जाना
उसी तरह
जैसे हो एक
सफेद बोर्ड
खुद के पढ़ने
पढ़ाने के लिये
उस पर
सफेद चॉक से
कभी कुछ
कभी सबकुछ
लिख ले जाना
फर्क किसे
कितना
पड़ता है
लिखने वाला
भी शायद ही
कभी इस
पर कोई
गणित
करता है
भरे दिमाग
के कूड़े के
बोझ को
वो उस
तरह से
तो ये
इस तरह
से कम
करता है
हर अकेला
अपने आप
से किसी
ना किसी
तरीके से
बात जरूर
करता है
कभी समझ
में आ
जाती हैं
कई बातें
इसी तरह
कभी बिना
समझे भी
आना और
जाना पड़ता है
दीवार को
शायद पड़
जाती है
उसकी आदत
जो हमेशा
उसके सामने
खड़े होकर
खुद से
लड़ता है
एक सुखद
आश्चर्य से
थोड़ी सी झेंप
के साथ
मुस्कुराना
बस उस
समय पड़ता है
पता चलता है
अचानक
जब कभी
दीवार के
पीछे से
आकर
तो कोई
हमेशा ही
खड़ा हुआ
करता है ।
भरे दिमाग
के कूड़े के
बोझ को
वो उस
तरह से
तो ये
इस तरह
से कम
करता है
हर अकेला
अपने आप
से किसी
ना किसी
तरीके से
बात जरूर
करता है
कभी समझ
में आ
जाती हैं
कई बातें
इसी तरह
कभी बिना
समझे भी
आना और
जाना पड़ता है
दीवार को
शायद पड़
जाती है
उसकी आदत
जो हमेशा
उसके सामने
खड़े होकर
खुद से
लड़ता है
एक सुखद
आश्चर्य से
थोड़ी सी झेंप
के साथ
मुस्कुराना
बस उस
समय पड़ता है
पता चलता है
अचानक
जब कभी
दीवार के
पीछे से
आकर
तो कोई
हमेशा ही
खड़ा हुआ
करता है ।
bahut sundar ......namste bhaiya
जवाब देंहटाएंbahut badhiya ....sundar anubhooti ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार को (08-11-2013) "मेरा रूप" (चर्चा मंच 1423) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : उर्जा के वैकल्पिक स्रोत : कितने कारगर