उलूक टाइम्स

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

हिमालय देखते देखते भी अचानक भटक जाती है सोच गंदे नाले की ओर


शायद
किसी 
सुबह हो या किसी शाम को ढलते 
सूरज दिखे

लालिमा सुबह की
चमकती सफेद चाँदी के रंग में
या फिर
स्वर्ण की चमक से ढले हुऐ हिमालय
कवि सुमित्रानंदन की तरह सोच भी बने

क्या जाता है 
सोच लेने में
वरना दुनियाँ ने कौन सी सहनी है
हँसी मुस्कुराहट 
किसी के चेहरे की बहुत देर तक

कहते हैं
समय 
खुद को ही बदल चुका है
और बढ़ी है भूख भी बहुत

पर
लगता कहाँ है
सारे के सारे
गली मुहल्ले से लेकर
शहर की 
पौश कौलोनी के
उम्दा ब्रीड के कुत्तों के मुँह से टपकती लार
उनके भरे हुऐ पेटों के आकार से भी प्रभावित कभी नहीं होती

सभी को नोचते 
चलना है माँस
सूखा हो या खून से सना
पुराना हो सड़ गया हो या ताजा भुना हुआ

बस खुश नहीं 
दिखना है कोई चेहरा
मुस्कुराता 
हुआ बहुत देर तक

क्योंकि
जो सिखाया 
पढ़ाया जा रहा है
वो सब
किताब 
कापियों तक सिमट कर रह गया
और
 नहीं तैयार हुई 
कुछ ममियाँ
नुची हुई
मुस्कुराहटों 
के चेहरों के साथ

समय और इतिहास 
माफ नहीं करेगा इन सभी भूखों को

जो तैयार हैं 
नोचने के लिये कुछ भी कहीं भी 
अपनी बारी के इंतजार में
सामने रखे हुऐ कुछ सपनों की लाशों को
दुल्हन बना कर सजाये हुऐ।

चित्र साभार: 
https://www.istockphoto.com/

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

चल देखते हैं किसकी सीटी कौन अब कितना बजा ले जायेगा



व्हिसल ब्लोअर
विधेयक भी 
हो गया है
राज्यसभा में
आज पास 

सीटी बजाने
की
इच्छा रखने वालों की 
चलो
पूरी हुई एक आस 
बहुत लम्बे समय से
गले में
अटकी हुई थी 
उनकी भी सुना है साँस 

अब हर
विभाग में
किसी खास को
सीटी बजाने का काम देना 
बहुत आसान हो जायेगा 

पढ़ा लिखा कर उससे
किसी के खिलाफ सीटी
बजवाने का 
आनंद भी चौगुना हो पायेगा 

सीटियाँ बजेंगी
चारों तरफ से बहुत जोर शोर से 
एक आम आदमी का ध्यान ही इन 
आवाजों से बस उलझ जायेगा 

काम होते रहेंगे
उसी तरह से
मिलबाँट कर भाईचारे के साथ 
आजाद भारत में शुरु किये धँधों का
बाजार और भी चमकदार हो जायेगा 

पहचान
गुप्त रखी जायेगी
सीटीबजाने वाले की
पास हुऐ बिल में बताया भी जा रहा है 
सीटी बजाने वाला
बहुत सारे कमीशन
पाने का हकदार भी हो पायेगा 

सीटी बजाने वाले
मरा करते थे बहुत पहले से सुना है 
अबकी बार सीटियाँ सुनने वाला ही
मार दिया जायेगा 

सीटियाँ
बहुत आसानी से
मिलने लगेंगी बाजार में 
किसी मल्टीनेशनल के साथ
सीटियाँ बनाने का कारोबार 
जल्दी सरकार द्वारा साझे में
शुरु भी करवा दिया जायेगा 

सीटी बजाने वाले
ही मिलेंगे
ज्यादातर लोग आज के बाद 

सीटी
नहीं रखने वाले को
अंदर करवा दिया जायेगा ।

चित्र साभार: 
https://www.gettyimages.in/

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

समझदार लोग़ मील के पत्थरों को हटाते हुऐ ही आगे जाते हैं

छोटी छोटी
दूरियों तक
साथ चले
कुछ लोग

कभी एक
लम्बे समय
के बाद
फिर कभी
दुबारा भी
नजर आ
जाते हैं

बहुत कुछ
बदल चुका
होता है

उनका
अन्दाज
उनकी चाल
गजब की
एक तेजी
के साथ

कहीं बहुत
दूर निकले
हुऐ खुद
अपने से ही
अजनबी
जैसे एक
हो जाते हैं

समय
सभी को
मौका देता है

लेकिन
सबके
बस में नहीं
होता है
उसे भुनाना
अपने लिये
अकेले
साथ लेकर
किसी ना
किसी का
सहारा
कूदते फाँदते
हवा हवा में
हवा जैसे ही
हो जाते हैं

सहारे
नहीं रखे
जाते हैं
हमेशा के
लिये
साथ में
कभी भी

मील के
पत्थर
बना बना
कर रास्ते
में ही कहीं
टिका दिये
जाते हैं

लौटते हैं
बहुत कम
लोग उसी
रास्ते से
जिस
रास्ते से
किसी दिन
बहुत पहले
चले जाते हैं

समझना
हर किसी
का आना
और
चले जाना
नहीं इतना
आसान
होता है

जहाँ
बहुत से
लोग
अपने साथ
नये रास्ते
हर बार
ही ले कर
चले आते हैं

कुछ नहीं
कर सकता
है “उलूक”
देख कर
किसी का
करना या
नहीं करना

जमाना जब
बदल चुका है
अपने रास्ते
खुद ही कई

उस जगह
जहाँ
कफन भी
सिले सिलाये
मिलने लगे हैं
और
जेब भी
दिखती हैं
उसमें
कई सारी
यहां तक
बटन तक
जिनमें अब
कई सारे
लगाये जाते हैं ।

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

नहीं सोचना है सोच कर भी सोचा जाता है बंदर, जब उस्तरा उसके ही हाथ में देखा जाता है

योग्यता के मानक
एक योग्य व्यक्ति
ही समझ पाता है

समझ में बस ये
नहीं आता है
“उलूक” ही
क्यों कर ऐसी ही
समस्याओं पर
अपना खाली
दिमाग लगाता है

किसी को खतरा
महसूस हो ऐसा
भी हो सकता है

पर हमेशा एक
योग्य व्यक्ति
अपने एक प्रिय
बंदर के हाथ में
ही उस्तरा
धार लगा कर
थमाता है

जब उसका
कुछ नहीं जाता है
तो किसी को
हमेशा बंदर
को देख कर
बंदर फोबिया
जैसा क्यों
हो जाता है

अब भरोसे में
बहुत दम होता है
इसीलिये बंदर को
जनता की दाढ़ी
बनाने के लिये
भेज दिया जाता है

नीचे से ऊपर तक
अगर देखा जाता है
तो बंदर दर बंदर
उस्तरा दर उस्तरा
करामात पर
करामात करता
हुआ नजर आता है

सबसे योग्य
व्यक्ति कहाँ पर
जा कर मिलेगा
पता ही नहीं
लग पाता है

बंदरों और उस्तरों
का मजमा पूरा
ही नहीं हो पाता है

यही सब हो रहा
होता है जब
अपने आसपास

दिल बहुत खुश
हो जाता है बस
यही सोच कर
अच्छा करता है
वो जो दाढ़ी कभी
नहीं बनवाता है

योग्यता बंदर
और उस्तरे के
बारे में सोच
सोच कर खुश
होना चाहिये
या दुखी का
निर्णय ऊपर
वाले के लिये
छोड़ना सबसे
आसान काम
हो जाता है

क्योंकि गीता में
कहा गया है
जो हो रहा है
वो तो ऊपर वाला
ही करवाता है

“उलूक” तुझे
कुछ ध्यान व्यान
करना चाहिये
पागल होने वाले
को सुना है
बंदर बहुत
नजर आता है ।

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

धर्म की शिक्षा जरूरी है भाई नहीं तो लगेगा यहीं पर है मार खाई

चुनाव
की आहट

धर्म ने
सुन ली है

और

भटकना
शुरु हो गई हैं

कुछ
अतृप्त आत्माऐं

मुक्ति की चाह में

चुनाव
के बाद

अपनी
नाव को किनारे
लगाने के लिये

कक्षाऐं
चालू हो चुकी हैं

जिनमें

किसी भी
परीक्षा को
लाँघने का
कोई रोढ़ा नहीं है

वैसे भी

पढ़ने
मनन करने
के लिये
नहीं होता है धर्म

बस
कुछ विशेष
लोगों को

मिला होता है
अधिकार
सिखाने का

धर्म और
धार्मिक
मान्यताऐं भी

आदमी होना

सबसे बड़ा
अधर्म होता है

सीधे सीधे
नहीं
सिखाया जाता है

कोमल
मन में
बिठाया जाता है

एक
लोमड़ी की
चालाकी से
प्रेरणा लेते हुऐ

सीखने
वाले को
पता नहीं
होता है कभी भी

जिस
दीक्षा को देकर

उसे
सड़क पर

लोगों को
धर्म का
शीशा दिखाने
के लिये
भेजा जा रहा है

उस
शीशे में

भेजने
वाले को
अपना चेहरा
देखना भी

अभी
नहीं आ
पा रहा है

आने
वाले समय
के लिये

धार्मिक
गुरु लोग

जिन
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च
की कल्पना में

अपने
अपने मन में
लड्डू बम
बना रहे होते हैं

उनके
फूटने से

वो
नहीं मरने
वाले हैं
वो अच्छी
तरह से  जानते हैं

बस

प्रयोग में
लाये जा रहे
धनुषों को

ये पता
नहीं होता है

कि
समय की
लाश पर
बहुत खुशी
के साथ

यही लोग

कल
जब ठहाके
लगा रहे होंगे

धर्म
के कच्चे
पाठ की
रोटियाँ
लिये हुऐ

कुछ
कोमल मन

अपने अपने
भविष्य के
रास्तों में
पड़े हुऐ
काँटो को
हटाते हटाते

हताशा में
कुछ भी
नहीं निगलते
या उगलते

अपने को
पाकर बस
उदास से
हो जा रहे होंगे

और

उस समय
उनके ही

धार्मिक
ठेकेदार
गुरु लोग

गुलछर्रे
कहीं दूर
उड़ा रहे होंगे

अपने अपने
काम का
पारिश्रमिक

भुना रहे होंगे।